Contribution of Chaubey brothers in the national movement in Rajnandgaon:

0307,2024

राजनांदगांव में चौबे बंधुओ का राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान

1. कुंज बिहारी चौबे : -

(1) इनका जन्म 1916 को राजनांदगांव में हुआ था। उनके पिता का नाम छविलाल चौबे एवं माता का रामबती था। राजनांदगांव के हाई स्कूल में पढ़ते हुये उनमें देशभक्ति की उम्र भावना दिखाई पड़ने लगी और उन्होंने स्कूल के निकट एक खंभे में लगा यूनियन जैक उतारकर उसको जला दिया तथा उसके स्थान पर तिरंगा झंडा लगा दिया। हेडमास्टर को पता लगने पर चैबे जी को कोड़े मारने की सजा दी गयी और उन्हें 2 सप्ताह का जेल भी हुई।

(2) कुंजबिहारी चौबे ने अपनी लेखनी के माध्यम से लोगों में जनजागृति लाना शुरू किया और अल्पायु में ही

राष्ट्रभक्ति पूर्ण गीतों की रचना कर युवाओं में देश प्रेम की भावना जागृत की और उन्हें विद्रोह के लिए तैयार किया।

(3) उन्होंने मद्यपान के विरोध में भी कवितायें लिखी थी। उनकी रचनायें वर्तमान में महाविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं।

(4) राजनांदगांव रियासत के अंग्रेज दीवान मैकगेटिन ने कुंजबिहारी का राजनांदगांव रियासत में प्रवेश निषिद्ध कर दिया। तब वे गांधी आश्रम वर्धा में विनोबा भावे जी के साथ रहे।

(5) सन् 1942 में वे रायपुर के परसराम सोनी के संपर्क में आये और क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गये और पुनः अपने परिवार के साथ राजनांदगांव में निवास करने लगे।

(6) कुंजबिहारी जी विनोबा एवं गांधीजी के संपर्क में आकर आध्यात्मिक हो गये थे। अतः उनमें अपने शरीर का मोह समाप्त हो गया था। उनमें क्रांतिकारी एवं अध्यात्मिक भावना अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी थी। अतः वे लोगों में राष्ट्रीय चेतना का संचार करने के लिये अपने को रजाई में लपेटकर भारत माता की जय, वंदे मातरम् का नारा लगाते हुए 5 जनवरी सन् 1944  को सार्वजनिक रूप से आत्मदाह कर देश के लिये बलिदान हो हो गये। इस समय उनकी आयु मात्र 28 वर्ष थी | आज उनके नाम से विद्यालय एवं महाविद्यालय तथा मार्ग भी हैं।

2. दशरथ चौबे : -

(1) यह रायपुर के परसराम सोनी के संपर्क में आये और क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गये और राजनांदगांव से गिरफ्तार कर लिये गये।

(2) मजिस्ट्रेट श्री केरावाला की अदालत में 9 माह तक केस की सुनवाई हुई थी। जिसमें संदेह के आधार पर दोषमुक्त कर दिये गये किंतु इन्हें 9 महिने सुनवाई के काल में जेल में ही रहना पड़ा था तथा शासकीय रिकार्ड के अनुसार इसके पूर्व भी सन् 1936 में एक सप्ताह एवं सन् 1938 में दो सप्ताह का कारावास की सजा हुई थी।

(3) परसराम सोनी जी के संगठन के आदर्श सरदार भगत सिंह एवं शचींद्र सन्याल थे जो स्वयं की आहुति देकर लोगों के हृदय में उग्र राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करते थे।

01:58 am | Admin


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