Cast Census in Bihar

0710,2023

जातिगत जनगणना की मांग पहले से चली आ रही है लेकिन आखिरकार बिहार   में जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल की मौजूदा सरकार ने इस काम को पूरा किया और  इसके निष्कर्षों पर आधारित आंकड़े जारी कर दिए। 

इसके मुताबिक, बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग की कुल    आबादी 63% फीसद है।अनुसूचित जातियों की संख्या 19.65 फीसद और अनुसूचित जनजाति की 1.68 फीसद है। सामान्य वर्ग में आने वाली जातियों के लोगों की तादाद 15.52 फीसद है। 

Cast Census in Bihar

धार्मिक आधार पर देखें तो कुल हिंदू आबादी 81.9 % और मुस्लिम आबादी 17.7%हैं। यानी जाति आधारित जनगणना के बाद राज्य में अलग-अलग जातियों और धर्मों के लोगों की संख्या के बारे में अब तस्वीर साफ हो गई है।  राज्य सरकार की दलील है कि इसके जरिए सभी जातियों की आर्थिक स्थिति की भी जानकारी मिली है और इसी के आधार पर अब सभी सामाजिक वर्गों के विकास और उत्थान के लिए काम किया जाएगा।

जाति आधारित जनगणना के आंकड़े आने के बाद सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में भागीदारी का सवाल हल करने और जरूरतमंद तबकों की स्थिति में सुधार के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। मगर यह देखने की बात होगी कि इसका उपयोग विकास और उत्थान में कितना होगा और कितना इसका इस्तेमाल राजनीतिक मुद्दे के तौर पर किया जाएगा।

 सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को लक्षित सरकारी नीतियों में जिन तबकों की हिस्सेदारी तय की जाती है, उनके बीच के कुछ समर्थ समूह उसका लाभ उठा लेते हैं और एक बड़ा हिस्सा वंचित रह जाता है। खासकर पिछड़े वर्गों को हिस्सेदारी के संदर्भ में यह दावा किया जाता रहा है कि अब इस तबके की आबादी काफी ज्यादा हो गई है और इसके मुकाबले इन्हें मिलने वाला आरक्षण काफी कम है।

इसके अलावा, जाति और वर्ग के आधार पर बनाई गई मौजूदा योजनाओं और कार्यक्रमों में कुछ खास सामाजिक समुदायों को आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी नहीं मिल पाती है, क्योंकि उनकी संख्या से संबंधित कोई अद्यतन पुख्ता आंकड़े नहीं हैं। हो सकता है कि जाति और वर्ग के आधार पर बनने वाली नीतियों पर इसका असर दिखे। हालांकि यह बिहार सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर होगा कि वह आबादी के अनुपात में सबकी भागीदारी और इसके साथ-साथ न्यायपूर्ण    तरीके से बिना भेदभाव किए वंचित वर्गों के हित कैसे सुनिश्चित कर पाती है।ऐसा न हो यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक लाभ का बन जाए।।

बिहार में हुई इस कवायद का राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक असर यह पड़ सकता है कि देश भर में जाति आधारित जनगणना की मांग जोर पकड़े और यह एक चुनावी मुद्दा भी बने।अन्य राज्यों मे यह मांग उठ सकती है।।

मगर यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वक्त के साथ जाति के आधार पर पूर्वाग्रह-दुराग्रहों को कमजोर करना राजनीतिकों का दायित्व होना चाहिए। इसलिए बिहार में हुई जाति आधारित जनगणना को राजनीति का जरिया न बना कर इसे वंचित तबकों के लिए न्याय मुहैया कराने का ही आधार बनाया जाए, अन्यथा इसका मकसद बेमानी हो जाएगा

 
साल 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी. साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया.साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.
इसी बीच साल 1990 में केंद्र की  वीपी सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, की एक सिफ़ारिश को लागू किया था.
ये सिफारिश अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की थी. इस फ़ैसले ने भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया.

जानकारों का मानना है कि भारत में ओबीसी आबादी कितनी प्रतिशत है, इसका कोई ठोस प्रमाण फ़िलहाल नहीं है.
मंडल कमीशन के आँकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है. हालाँकि, मंडल कमीशन ने साल 1931 की जनगणना को ही आधार माना था.

बहरहाल जातिगत गणना कराने  मे कोई समस्या नही है इससे जो जातियां पिछड़ी है उन्हे जनसंख्या के अनुपात मे             प्रतिनिधित्व मिलेगा ,राजस्थान जैसे राज्यों मे भी पार्टियों ने इसे राजनीतिक लाभ का मुद्दा बना लिया है ,कुल मिलाकर यदि इस गणना का सही उपयोग किया जाए तो यह सार्थक है वरना इसका कोई औचित्य नही होगा।।।

 

 

11:20 am | Admin


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