Is there a coup in Bangladesh?

0708,2024

बांग्लादेश में तख्तापलट

एक नाटकीय घटनाक्रम में, बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति में उथल-पुथल मच गई है,क्योंकि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने व्यापक विरोध और नागरिक अशांति के बीच इस्तीफा दे दिया है।

 इसके जवाब में, सेना प्रमुख वकर-उज़-ज़मान ने घोषणा की है कि अस्थिरता के इस दौर में देश का मार्गदर्शन करने के लिए एक अंतरिम सरकार की स्थापना की जाएगी।

जमात-ए-इस्लामी

  •  1 अगस्त, 2024 को बांग्लादेश सरकार ने आधिकारिक तौर पर जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र संगठन छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगा दिया
  •  और उन्हें आतंकवाद विरोधी अधिनियम 2009 की धारा 18/1 के तहत आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया।
  •  गृह मंत्रालय के सार्वजनिक सुरक्षा प्रभाग की अधिसूचना द्वारा पुष्टि किए गए इस निर्णय के बाद समूह के खिलाफ़ कई वर्षों तक आरोप और कानूनी कार्रवाइयां चलीं।
  •  सरकार ने पार्टी पर हिंसक विरोध प्रदर्शन भड़काने का आरोप लगाया जिसके परिणामस्वरूप 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई और हज़ारों लोग घायल हो गए।
  •  विरोध प्रदर्शन सरकारी नौकरियों के लिए कोटा प्रणाली के कारण शुरू हुए थे।

उत्पत्ति और विचारधारा

  • जमात-ए-इस्लामी की स्थापना मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े एक व्यक्ति सैय्यद अबुल अला मौदूदी ने की थी, जिसका उद्देश्य इस्लामी राज्य की स्थापना करना था।
  • इसका नाम "इस्लाम की सभा" है, जबकि छात्र शिबिर, जो इसका छात्र विंग है, का अर्थ है "छात्र शिविर"।
  • संगठन की विचारधारा इस्लामी विजय को बढ़ावा देती है, जिसका उद्देश्य दुनिया को इस्लामी शासन के अधीन लाना है।

 ऐतिहासिक संदर्भ और कानूनी कार्रवाइयां

  • बांग्लादेश की आज़ादी के बाद से ही जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियाँ विवादास्पद रही हैं।
  • 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ सहयोग करने के कारण बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली पहली सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • जमात के सदस्यों पर रजाकार, अल-बद्र, अल-शम्स और शांति समिति जैसे सहायक बलों के गठन में शामिल होने का आरोप लगाया गया था,
  •  जो बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अत्याचारों में शामिल थे, खासकर हिंदुओं को निशाना बनाकर।
  • 2013 में, बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने एक अदालती फैसले के बाद जमात का पंजीकरण रद्द कर दिया था,
  •  इस निर्णय को 2023 में सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय प्रभाग द्वारा बरकरार रखा गया।
  •  नवीनतम प्रतिबंध कानून मंत्रालय की सिफारिशों और अवामी लीग के नेतृत्व वाले 14-पार्टी गठबंधन के निर्णय के बाद लगाया गया है,
  •  जिसमें कोटा सुधार आंदोलन के आसपास की हिंसा में जमात की संलिप्तता के आरोप हैं।

वैश्विक उपस्थिति और प्रभाव

  • जमात-ए-इस्लामी ने बांग्लादेश से बाहर भी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति स्थापित की है।
  • पाकिस्तान में, यह अपनी छात्र शाखा इस्लामी जमीयत-ए-तलाबा के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के बावजूद एक प्रमुख राजनीतिक ताकत बनी हुई है।
  • इस संगठन के गाजा स्थित हमास, फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद और मुस्लिम ब्रदरहुड सहित विभिन्न आतंकवादी समूहों के साथ संबंध हैं।
  •  यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में, जमात-ए-इस्लामी ने दक्षिण एशियाई अप्रवासी समुदायों के माध्यम से एक नेटवर्क स्थापित किया है।
  • यह यूनाइटेड किंगडम में विशेष रूप से सक्रिय है, जहाँ यह इस्लामी संगठनों और सामुदायिक राजनीति को प्रभावित करता है।
  •  संयुक्त राज्य अमेरिका जमात की राजनीतिक भागीदारी का एक मजबूत समर्थक रहा है, अक्सर बांग्लादेश से समूह पर प्रतिबंध हटाने का आग्रह करता है।

वर्तमान स्थिति और सरकारी कार्रवाई

  • प्रतिबंध के बाद, बांग्लादेश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने जमात-ए-इस्लामी और उसके सहयोगियों पर कार्रवाई शुरू कर दी है।
  •  समूह से जुड़े कार्यालयों और प्रकाशन गृहों को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि अधिकारी देश के भीतर इसके संचालन को खत्म करना चाहते हैं।
  •  इन प्रयासों के बावजूद, रिपोर्ट बताती है कि जमात के कार्यकर्ता विभिन्न क्षेत्रों में लामबंद होकर विरोध प्रदर्शन करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में मौजूदा सरकार की निर्णायक कार्रवाइयों का उद्देश्य जमात-ए-इस्लामी के प्रभाव को कम करना है,
  • जो ऐतिहासिक रूप से हिंसा और उग्रवाद से जुड़ा हुआ समूह है।
  •  हालाँकि, संगठन के गहरे संबंध और समर्थन आधार बांग्लादेश के राजनीतिक और सुरक्षा परिदृश्य में निरंतर चुनौतियाँ पेश करते हैं।

क्यों होते हैं तख्तापलट ?

  •  भारत का एक और पड़ोसी देश बांग्लादेश, जो कभी पाकिस्तान का ही हिस्सा था, वहां एक बार फिर से तख्तापलट हो गया.
  •  हालांकि बांग्लादेश का इतिहास भी पाकिस्तान की ही तरह तख्तापलट वाला रहा है.
  •  आज जिस स्थिति में पूर्व पीएम शेख हसीना और बांग्लादेश हैं, यह स्थिति दक्षिण एशिया के कई देशों की रही है,
  •  जिनमें बांग्लादेश और पाकिस्तान के ही साथ म्यांमार, अफगानिस्तान और श्रीलंका भी शामिल है.

पाकिस्तान में क्यों स्थापित नहीं है स्वस्थ लोकतंत्र ?

  •  पाकिस्तान पर लौटते हैं. यहां लोकतंत्र का ढिंढोरा तो खूब पीटा गया, लेकिन हकीकत ये है > कि 1947 में भारत से विभाजन के ही साथ यहां सेना का हस्तक्षेप सत्ता में रहा है
  • और इस पड़ोसी मुल्क ने कई दशक सैन्य शासन में ही गुजारे हैं.
  •  आज तक पाकिस्तान के इतिहास में एक भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया, या फिर कि उन्हें करने नहीं दिया गया. या तो सेना ही सत्ता में रही है
  •  या फिर सत्ता में सेना ऐसा दांव चलती है कि सत्ता और यहां तक कि अफसरों को खुद भी सेना के सांठ-गांठ में ही चलना होता है.
  •  आजाद होने के साथ ही सेना ने अपने प्रभुत्व का ऐसा अहसास कराया है कि पड़ोसी मुल्क की आवाम इससे निकल ही नहीं पायी है.

बांग्लादेश के इतिहास में कब-कब हुए तख्तापलट ?

  •  15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ जूनियर अधिकारियों ने शेख मुजीब के घर पर
  • टैंक से हमला कर दिया. इस हमले में मुजीब सहित उनका परिवार और सुरक्षा स्टाफ मारे गए, 
  •  1975 में जब मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई तो अगले डेढ़ दशक तक बांग्लादेशी सेना ने सत्ता संभाली.
  •  1978 और 1979 के बीच राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव पूर्व सेना प्रमुख जियाउर रहमान के नेतृत्व में हुए, लेकिन धांधली के आरोपों से ये भी नहीं बच सके.
  •  साल 1981 में, जियाउर रहमान की हत्या के बाद, उनके डिप्टी अब्दुस सत्तार ने 15 नवंबर को आम चुनाव कराए.
  •  बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने फिर से 65 प्रतिशत वोट के साथ जीत हासिल की. सेना प्रमुख रहे हुसैन मुहम्मद इरशाद ने 1982 में तख्तापलट करके सत्ता संभाली.

बांग्लादेश में भी सेना का सत्ता में सीधा हस्तक्षेप

  • 1988 में हुसैन मुहम्मद इरशाद को सत्ता से हटाने की मांग को लेकर बांग्लादेश में एक बार फिर बड़े विरोध प्रदर्शन हुए, इसके परिणामस्वरूप 1990 का लोकप्रिय विद्रोह हुआ जिसने हुसैन इरशाद को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया. इस तरह बांग्लादेश में भी तख्तापलट का एक लंबा इतिहास रहा है, जो सेना के राजनीति में हस्तक्षेप के कारण रहा है.

शेख हसीना ये स्थिति कैसे बनी ?

  •  हालांकि शेख हसीना का इस बार का तख्तापलट सैन्य तख्तापलट नहीं कहा जा रहा है, लेकिन इसमें विपक्षी दलों की मिलीभगत, आतंकी साजिश और विदेशी ताकतों के हस्तक्षेप की बात कही जा रही है, जिन्होंने छात्र आंदोलन की बहती गंगा में अपने हाथ धोए हैं.

12:41 pm | Admin


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