ऐतिहासिक, धार्मिक पर्यटन स्थल तुरतुरिया Turturiya
छग मे कई एतिहासिक ,धार्मिक पर्यटन स्थल है उनमे से एक तुरतुरिया है।। तुरतुरिया एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल है।। यह बलौदाबाजार जिला से लगभग 29 किमी की दूरी पर स्थित है इस स्थल को सुरसुरी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ एक मनोरम स्थान है जो कि पहाड़ियो से घिरा हुआ है। इसके समीप ही बारनवापारा अभ्यारण भी स्थित है। तुरतुरिया ,बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है।
सन 1914 में तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर एच.एम्.लारी ने इस स्थल का महत्त्व समझने पर यहाँ खुदाई करवाई थी. जिसमे अनेक मंदिर और सदियाँ पुरानी मूर्तियाँ प्राप्त हुयी. जनश्रुति है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यही पर था और लवकुश की यही जन्मस्थली थी।
इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानों के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है। इसका जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड में गिरता है जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मोख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर होता है।
गोमुख के दोनों ओर दो प्राचीन प्रस्तर की प्रतिमाए स्थापित हैं जो कि विष्णु जी की हैं इनमें से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति में है तथा दूसरी प्रतिमा में विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है।
कुंड के समीप ही दो वीरों की प्राचीन पाषाण प्रतिमाए बनी हुई हैं जिनमें क्रमश: एक वीर एक सिंह को तलवार से मारते हुए प्रदर्शित किया गया है तथा दूसरी प्रतिमा में एक अन्य वीर को एक जानवर की गर्दन मरोड़ते हुए दिखाया गया है। इस स्थान पर शिवलिंग काफी संख्या में पाए गए हैं इसके अतिरिक्त प्राचीन पाषाण स्तंभ भी काफी मात्रा में बिखरे पड़े हैं जिनमें कलात्मक खुदाई किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ शिलालेख भी यहां स्थापित हैं। कुछ प्राचीन बुध्द की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित हैं। कुछ भग्न मंदिरों के अवशेष भी मिलते हैं। इस स्थल पर बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों का पाया जाना भी इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनों संप्रदायो की मिलीजुली संस्कृति रही होगी।
ऎसा माना जाता है कि यहां बौद्ध विहार थे जिनमे बौद्ध भिक्षुणियों का निवास था। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौध्द संस्कृति का केन्द्र रहा होगा। यहां से प्राप्त शिलालेखों की लिपि से ऎसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओं का समय 8-9 वीं शताब्दी है।
आज भी यहां स्त्री पुजारिनों की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। पूष माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है तथा बड़ी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
कथा:- तुरतुरिया के बारे मे कहा जाता है। कि भगवान श्री राम द्वारा परित्याग करने पर वैदेहि सीता को फिगेश्वर के समीप सोरिद अंचल ग्राम के(रमई पाठ )मे छोड गये थे वहीं माता का निवास स्थान था सीता कि प्रतिमा आज भी उस स्थान पर है। जब मां सीता के बारे मे महर्षि वालमिकी को पता चला तो माता को अपने साथ तुरतुरिया ले आये और सीता मां यही आश्रम मे निवास करने लगी ,यही लव कुश का जन्म हूवा।
रोड की दूसरी ओर से एक पगडंडी पहाड़ के ऊपर जाती है जहां माता दुर्गा का एक मंदिर है जिसे मातागढ़ कहा जाता है। पहाड़ के ऊपर से भव्य प्राकृतिक दृश्य दिखाई देता है। पहाड़ से दूसरा पहाड़ दिखाई देता है जहाँ पर एक गुफा भी है जो बहुत ही खतरनाक प्रतीत होता है।पर्यटन स्थल धार्मिक, प्राकृतिक, आस्था,खतरा,रोमांच और पहाड़ों के अद्भुत नजारे का संयोग है।।
Published by DeshRaj Agrawal
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