मां बमलेश्वरी देवी डोंगरगढ़
डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ राज्य में राजनांदगांव जिले का एक शहर और नगर पालिका है तथा माँ बमलेश्वरी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है । राजनांदगांव जिले में एक प्रमुख तीर्थ स्थल, शहर राजनांदगांव से लगभग 35 किमी पश्चिम में स्थित है, 1,600 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित माँ बमलेश्वरी देवी मंदिर, एक लोकप्रिय स्थल है। यह महान आध्यात्मिक महत्व का है शिवजी मंदिर और भगवान हनुमान को समर्पित मंदिर भी यहां स्थित हैं ।
रोपेवे एक अतिरिक्त आकर्षण है और छत्तीसगढ़ में एकमात्र यात्री रोपेवे है ।यह शहर धार्मिक सद्भाव के लिए जाना जाता है और हिंदुओं के अलावा बौद्धों, सिखों, ईसाइयों और जैनों की भी यहाँ काफी आबादी हैछत्तीसगढ़ राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजित डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है। लगभग दो हजार साल पहले माधवानल और कामकंदला की प्रेम कहानी से महकने वाली कामावती नगरी में नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है।
डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर हैं। एक मंदिर पहाड़ी के नीचे है और दूसरा पहाड़ी के ऊपर। पहाड़ी के उपर के मंदिर को बड़ी बमलई का मंदिर और पहाड़ी के नीचे के मंदिर को छोटी बमलई का मंदिर कहा जाता है।मंदिर के नीचे छीरपानी जलाशय है।।
प्राकृतिक रूप से चारों ओर से पहाड़ों में घिरे डोंगरगढ़ की सबसे ऊंची पहाड़ी पर मां का मंदिर स्थापित है। पहले मां के दर्शन के लिए पहाड़ों से ही होकर जाया जाता था लेकिन कालांतर में यहां सीढियां बनाई गईं और मां के मंदिर को भव्य स्वरूप देने का काम लगातार जारी है। पूर्व में खैरागढ़ रियासत के राजाओं द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती थी। बाद में राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने ट्रस्ट का गठन कर मंदिर के संचालन का काम जनता को सौंप दिया।
मां बमलेश्वरी बगलामुखी का रूप हैं तो वहीं हिमाचल के कांगड़ा में सुंदर पहाड़ियों के बीच साक्षात विजारती हैं मां बगलामुखी. 10 महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी के इस दरबार में भगवान राम ने तपस्या कर रावण पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद पाया था.मां बगलामुखी के दरबार में हवन करने की विधि बेहद अनूठी है क्योंकि यहां हवन सामग्री में लाल मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है. कहते हैं लाल मिर्च को शत्रु नाशक माना जाता है, जिसका पूजा में इस्तेमाल करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है.
प्राचीन काल में यह स्थान कामावती नगर के नाम से विख्यात था।।।।।। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था. वे नि:संतान थे. संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा. मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया।बाद में मदनसेन के पुत्र कामसेन ने राजगद्दी संभाली। कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे. कला, नृत्य और संगीत के लिए विख्यात् कामाख्या नगरी में राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत-कला के प्रेमी थे. उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुंदर राज नर्तकी और माधवानल जैसे संगीतकार थे. एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधवानल को अपने गले का हार दे दिया.माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए वह हार उसको पहना दिया. इससे राजा ने अपने को अपमानित महसूस किया और गुस्से में आकर माधवानल को राज्य से बाहर निकाल दिया. माधवानल उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गए और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार स्वरूप कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही.
राजा विक्रमादित्य ने दोनों के पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया. राजा के इनकार करने पर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया. दोनों वीर योद्धा थे और एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा विमला माता का. दोनों ने अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान किया तो एक ओर से महाकाल और दूसरी ओर भगवती विमला मां अपने-अपने भक्तों की सहायता करने पहुंचे. युद्ध के दुष्परिणाम को देखते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की प्रार्थना की और कामकंदला और माधवानल को मिलाकर वे दोनों अंतर्ध्यान हो गए.वही विमला मां आज बमलेश्वरी देवी के रूप में छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री देवी हैं.
*जय मां बमलेश्वरी*
Published By DeshRaj Agrawal
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