बस्तर राज के अंतिम व महान शासक प्रवीर चन्द्र भंजदेव
⇒जीवन परिचय :- महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव का जन्म 12 जून 1929 को हुआ था। वे 28 अक्टूबर 1936 को मात्र 7 साल की आयु में राजा बने। मप्र में विधानसभा के भी बतौर कांग्रेस विधायक चुने गए पर बाद में कतिपय कारणों से इस्तीफा दे दिया। इनका विवाह 4 जुलाई 1961 को पाटन के राज राव साहब उदय सिंह की पुत्री महारानी शुभ राजकुमारी के साथ हुआ।
उनकी माता का नाम प्रफुल्ल कुमारी देवी तथा पिता का प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव था। यह एक सुखद संयोग था कि माता और पिता के नाम का प्रथम पद एक ही था। बस्तर का राजसिंहासन माता को विरासत में प्राप्त हुआ था। क्योंकि महाराज रूद्रप्रताप देव का कोई पुत्र नहीं था ।
1.प्रवीरचंद्र भंजदेव अंतिम काकतीय शासक रहे थे, इनका शासन काल 1936 –1966 तक रहा।
इनकी माता बस्तर की पहली महिला शासिका रही ,माता प्रफूल्ल कुमारी देवी की असमय मृत्यु होने के बाद कम उम्र मे लंदन मे ही इनका राजतिलक कर दिया गया, इनकी माता को पेट मे समस्या जो संभवत: एपेंडिसाइटिस था ।
ऑपरेशन के दौरान इनकी मृत्यु हो गई हालांकि कुछ लोग सरकार पर आरोप लगाते हैं कि उनको मारा गया ।।
प्रवीर चंद्र भजदेव की शिक्षा दीक्षा ,पालन पोषण ब्रिटिश द्वारा इस तरीके से किया गया कि वो ब्रिटिशर्स के आधीन रहकर उनके लिए काम करें।
जब वे गद्दी पर बैठे, तब बस्तर के प्रशासक EC हाइड थे। इनके द्वारा नियुक्त समिति के द्वारा बस्तर का शासन संचालित था। महाराजा प्रवीर की शिक्षा राजकुमार कालेज रायपुर, व इंदौर और देहरादून की मिलेट्री अकादमी में हुई। कर्नल जे. सी. गिप्सन को प्रवीर और उनके भाई बहनो का अभिभावक बनाया गया था।
एक बार गिप्सन छुट्टियों में कही बाहर गया हुआ था, तब गौरी दत्त नाम के सेक्रेटरी ने प्रवीर की देखभाल की। तब गौरी दत्त ने प्रवीर को भारतीय खाने जैसे दाल, चावल, रोटी, सब्जी खाने की आदत लगा दी। जब गिप्सन वापस आये तो प्रवीर ने भारतीय खाने की जिद की ,तो गिप्सन ने इंकार कर दिया, इतना ही नहीं उसने गली गलोच शुरू कर दी। प्रवीर को गुस्सा आ गया और उन्होंने गिप्सन के मुँह में तमाचा जड़ दिया। यही उनका स्वभाव था और यही से ही प्रवीर के अंदर लड़ने की भावना जगी।
जब ये 18 वर्ष के हुए तब इन्हे सारे राजाधिकार मिले।।प्रवीर भजदेव आदिवासियों के लिए पूरे दिल से काम करने मे जूट गये,जल जंगल जमीन पर आदिवासियों का हक का उन्होने नारा दिया।।सरकार जो कोयला,लोहा की माइनिंग करना चाहती थी उसके लिए इन्होने आदिवासी के साथ विरोध प्रदर्शन किया।।
इन्होने अनशन भी किया ,हालांकि इनको गिरफ्तार भी कर लिया गया था ,लेकिन इन्होने ठान लिया था कि वो जनता के लिए ही जीवन न्यौछावर कर देंगे.।।
1953 मे Court of Wards के अंतर्गत उनकी सारी संपत्ति ले ली गई जो 1963 मे लौटाई गई.।फिर भी वे लगातार जंनता के लिए काम करते रहे।
वे आदिवासियों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे 1955 में उन्होने एक संघ का गठन किया जिसका नाम था बस्तर जिला आदिवासी किसान-मजदूर सेवा संघ ।
जो बस्तर जिले में रहने वाले आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक विकास को लेकर सरकार तक अपनी बात पहुंचाता था।।
1956 मे कांग्रेस सरकार ने उन्हे पागल घोषित कर दिया और इलाज के लिए लंदन भेज दिया लेकिन चूंकि वे बिल्कुल ठीक थे इसलिए डॉक्टर ने इन्हे स्वस्थ घोषित किया और इन्हे वापस भेज दिया गया।।
अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे 1957 में बस्तर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे
मध्य प्रदेश विधान सभा में बस्तर का प्रतिनिधित्व भी किया था । मगर राजनीतिक उथल पुथल के चलते विधान सभा की सदस्यता से 2 सालों के अन्दर ही त्यागपत्र दे दिया ।।कांग्रेस इन्हे पसंद नही करती थी।।
1961 में इनसे सत्ता लेकर इनके अनुज विजय भंजदेव को दे दी गई लेकिन फिर भी जनता इन्हे ही राजा मानती थी।इसका प्रमाण ये था कि 1961-66 के बीच बस्तर का दशहरा जो शासन के खर्चे से बनना था वो आदिवासियों ने मिलकर इसका खर्चा उठाया।।
जब इन्होने देखा कि इनकी कोई बात नही सुन रहा तब इन्होने बस्तर विधानसभा से 10 सीटों पर चुनाव लड़ा ।जनता का इन पर अभूतपूर्व विश्वास दिखा और 10 मे से 9 सीटों पर इनकी पार्टी ने जीत हासिल की।
सरकार को पता चल गया था.जब तक प्रवीरचंद्र भंजदेव है बस्तर मे कोई आर्थिक कार्य नही होने देंगे,इसलिए उन्हे सत्ता.से.बेदखल भी किया लेकिन इसका भी कोई प्रभाव नही पड़ा।
इनकी दो प्रसिद्ध ग्रंथ हैं – 1.लोहानडीगुड़ा तरंगिनी–में स्वयं को काकतीय कहा है।
2. आई प्रवीर द आदिवासी गॉड
. छतीसगढ़ के रियासतों के विलीनीकरण के समय बस्तर रियासत के इस शासक ने समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
25 मार्च 1966 को जगदलपुर राजमहल में पुलिस द्वारा गोली चलाने से प्रवीरचंद्र भंजदेव समेत अनेक आदिवासियों की मृत्यु हो गई।जनता इनसे अत्यधिक प्यार करती थी ,प्रवीर भंजदेव जनता के बीच रहते थे उनकी समस्याओं को सुनते थे।
इनके नाम पर छतीसगढ शासन द्वारा तीरंदाजी खेल के क्षेत्र में पुरस्कार दिया जाता है।
प्रवीरचंद भंजदेव की हत्या क्यों की गई ,क्या इसके पीछे राजनीतिक वजह थी ,इसे हम अगली पोस्ट मे जानेंगे
Admin::--DeshRaj Agrawal
09:02 am | Admin
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