राजनीति और केंद्र व राज्यों के फैसले से सम्बंधित प्रश्न
QUESTION : 1 NCERT की उच्च स्तरीय कमेटी ने 12वीं क्लास तक के सामाजिक विज्ञान की पुस्तकों में 'इंडिया' की जगह किस नाम के इस्तेमाल करने का सुझाव दिया?
a. आर्यावर्त
b. भारत
c. हिन्दुस्तान
d. जम्बूद्वीप
उत्तर : - b. भारत
EXPLANATION:-
•स्कूलों के लिए सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए NCERT (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) ने कई कमेटी गठित की गई थी।
⇒इनमें से एक है 2022 सामाजिक विज्ञान समिति।
• इस कमेटी ने सुझाव दिया है कि 12वीं कक्षा तक की सभी सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में 'इंडिया' को 'भारत' कहा जाना चाहिए।
• समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर सीआई इस्साक ने मीडिया से कहा कि "हम उम्मीद कर रहे हैं कि इसे अगले शैक्षणिक वर्ष से लागू किया जाएगा, लेकिन यह सब एनसीईआरटी पर निर्भर करता है।"
- बाद में मीडिया के सवालों पर एनसीईआरटी ने कहा कि इस मुद्दे पर टिप्पणी करना अभी " बहुत जल्दबाजी " होगी।
⇒ क्या सिफारिश है?
- कमेटी ने किताबों में 'हिंदू विक्ट्रीज' को उजागर करने की सिफारिश भी की है।
- कमेटी का कहना है कि इतिहास में भारतीय राजाओं और उनके परिचय को भी जगह मिलनी चाहिए।
- इसके अलावा 'एंशिएंट हिस्ट्री' को भी 'क्लासिकल हिस्ट्री' से बदलने की सिफारिश पेश की गई है।
⇒देश के नाम की संवैधानिक स्थिति
- भारतीय संवधान के अनुच्छेद-1 की पहली लाइन में लिखा है - "इंडिया, यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा ।" (India, that is, Bharat, shall be a Union of States)
⇒इंडिया बनाम भारत क्यों?
- दरअसल, जी20 समिट के दौरान राष्ट्रपति द्वारा आयोजित रात्रिभोज के निमंत्रण पत्र में 'द प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' की जगह 'द प्रेसिडेंट ऑफ भारत' का उल्लख किया गया था।
- तब से मीडिया में इंडिया नाम को बदलकर सिर्फ भारत रखने की अटकलें लगाई जाने लगी हैं।
- इसके बाद अक्टूबर 2023 में ही संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था – “नमस्ते फ्रॉम भारत"
⇒सबसे पहले 'भारत' नाम कहां से आया?
"भारत", "भरत" या "भारतवर्ष" की जड़ें पौराणिक साहित्य और महाकाव्य महाभारत में पाई जाती हैं। में
- पुराणों में भारत का वर्णन "दक्षिण में समुद्र और उत्तर में बर्फ के निवास" के बीच की भूमि के रूप में किया गया है।
भरत पौराणिक कथाओं के प्राचीन राजा का नाम भी है, जो भरत की ऋग्वैदिक ट्राइब के पूर्वज थे, और विस्तार से, उपमहाद्वीप के सभी लोगों के पूर्वज थे।
QUESTION : 2 सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अथॉरिटी को सीवर सफाई के दौरान कर्मचारी की मौत होने पर परिजनों को कितने रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया?
a. 15 लाख रुपए
b. 30 लाख रुपए
c. 20 लाख रुपए
d. 35 लाख रुपए
उत्तर : b. 30 लाख रुपए
EXPLANATION:-
•सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने यह फैसला 20 अक्टूबर 2023 को सुनाया।
⇒किस स्थिति में कितना मुआवजा देने का आदेश
- सीवर सफाई के दौरान मौत : 30 लाख रुपए
- सीवर सफाई के दौरान स्थाई विकलांगता : 20 लाख रुपए
- सीवर सफाई के दौरान अन्य विकलांगता : 10 लाख रुपए
⇒सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या आदेश दिए
- कोर्ट ने सरकारों से कहा कि उन्हें तय करना होगा कि हाथ से मैला सफाई रुके।
•सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई है, कि अभी तक यह पुरानी रीति चली आ रही है।
• कोर्ट ने कहा है कि यह पैसे की लड़ाई नहीं है, बल्कि मानवीय व्यक्तित्व के स्वतंत्रता को बहाल करने की लड़ाई है।
- न्यायमूर्ति भट ने कहा, "यदि आपको वास्तव में सभी मामलों में समान होना है, तो संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 15(2) जैसे मुक्तिदायक प्रावधानों को लागू करके समाज के सभी वर्गों की जो प्रतिबद्धता दी है, उस पर हममें से प्रत्येक को अपने वादे पर खरा उतरना होगा। केंद्र और राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि हाथ से मैला साफ करने (manual scavenging)
पूरी तरह खत्म हो। संविधान के अनुच्छेद 15(2) में कहा गया है कि सरकार किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी।"
QUESTION : 3 सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से मना करते हुए ,किस अधिनियम के बारे में कहा कि बदलाव करना संसद का काम है?
a. आईपीसी
b. स्पेशल मैरेज एक्ट
d. मुस्लिम मैरेज एक्ट
c. हिन्दू मैरेज एक्ट
उत्तर : b. स्पेशल मैरेज एक्ट, 1954
EXPLANATION:-
- सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया।
- 17 अक्टूबर को 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि कोर्ट स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव नहीं कर सकता।
- कोर्ट सिर्फ कानून की व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है।
- चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है।
- अदालत ने शादी को मौलिक अधिकार नहीं माना।
- फैसले के अनुसार समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने का कोई अधिकार नहीं है।
⇒क्या था मामला
- सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि "भारत एक विवाह- आधारित संस्कृति है" और एलजीबीटी (समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर) जोड़ों को वही अधिकार दिए जाने चाहिए जो किसी भी विषमलैंगिक जोड़ों के पास हैं, जैसे कि "पति/पत्नी" का दर्जा।
- वित्त और बीमा मुद्दे; औसत दर्जे विरासत और उत्तराधिकार के फैसले, और यहाँ तक कि गोद लेने और सरोगेसी के मामलों में भी।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत LGBTQIA+ विवाहों को शामिल न करना अनुच्छेद 14 के तहत भेदभाव के समान है।
- हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने विवाद के मामले को खारिज कर दिया।
⇒सुप्रीम कोर्ट का केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश
- सुनिश्चित करें कि समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव न हो।
- लोगों को उनके प्रति जागरूक करें। उनकी सहायता के लिए हेल्पलाइन बनाए जाएं।
. किसी बच्चे का सेक्स चेंज ऑपरेशन तभी हो, जब वह इसके बारे समझने योग्य हो।
- किसी को जबरन सेक्स प्रवृत्ति में बदलाव वाला हार्मोन न दिया जाए।
- उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ परिवार के पास लौटने के लिए मजबूर न किया जाए।
- ऐसे जोड़ों के खिलाफ FIR, प्राथमिक जांच के बाद ही दर्ज हो।
⇒सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा- समलैंगिकों के अधिकार के लिए कमेटी बने
- केंद्र सरकार समलैंगिक लोगों के अधिकार के लिए कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाए ।
- यह कमेटी सेम-सेक्स कपल की परेशानियां देखेगी, लेकिन ये उनकी शादी की मान्यता के मामले में दखल नहीं देगी।
- यह कमेटी राशन कार्ड में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि पर विचार करेगी|
- समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा।
नोट - भारत में पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से मुक्त है।
LGBTQ : लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर (होमोसेक्सुअल)
QUESTION :4 केंद्र सरकार ने रबी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि की, तो 2024-25 सीज़न के लिए गेहूं का MSP क्या है ?
a. 2275 रुपए प्रति क्विंटल
b. 5440 रुपए प्रति क्विंटल
c. 1850 रुपए प्रति क्विंटल
d. 6425 रुपए प्रति क्विंटल
उत्तर : a. 2275 रुपए प्रति क्विंटल
EXPLANATION:-
- PM नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 19 अक्टूबर 2023 को 6 रबी फसलों की MSP (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) में बढ़ोत्तरी की
- नया MSP रबी विपणन वर्ष (Rabi Marketing Year) 2023- 24 के लिए है।
फसल : 2023-24, 2024- 25
- गेहूं : 2125, 2275
- जौ 1735, 1850
चना : 5335, 5440
- दाल (मसूर) : 6000, 6425
- रेपसीड एवं सरसों : 5450, 5650
- कुसुम : 5650, 5800
⇒न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या है?
- एक फसल के लिए MSP वह मूल्य है, जिस पर सरकार उस फसल को किसानों से खरीदती है।
-MSP, मार्केट प्राइस के विकल्प के तौर पर काम करता है और सुनिश्चित करता कि किसानों को उनका मेहनताना प्राप्त हो सके। ताकि उनकी खेती की लागत (और कुछ लाभ) की वसूली की हो सके।
- सरकार MSP तय करके कुछ फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देती है।
- हालांकि नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि देश के सिर्फ 6% किसान ही MSP का फायदा ले पाते हैं। क्योंकि ज्यादातर राज्यों में MSP पर अनाज की खरीद नहीं होती है।
⇒क्या सरकार सभी कृषि उत्पादों को MSP पर खरीदती है?
- सरकार सभी कृषि उत्पादों को MSP पर नहीं खरीदती है।
- सरकार कुल 23 फसलों (खरीफ और रबी मिलाकर) पर MSP की घोषणा करती है।
- केंद्र सरकार देश की खाद्य सुरक्षा को देखते हुए इन अनाज को खरीदती है। ताकि पूरे साल देश में अनाज की कमी न हो।
⇒MSP में कितने फसल शामिल हैं?
- सात प्रकार के अनाज (धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ)
• पांच प्रकार की दालें (चना, अरहर/ तूर, उड़द, मूंग और मसूर)
- सात तरह की तिलहन (रेपसीड - सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, रामतिल)
चार व्यावसायिक फसलें (कपास, गन्ना, गोला, कच्चा जूट)
⇒MSP कैसे तय किया जाता है?
- MSP की घोषणा केंद्र सरकार करती है।
- इसके लिए सरकार बड़े पैमाने पर कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर अपने फैसले को आधार बनाती है।
- इस आयोग (CACP) की स्थापना 1965 में हुई थी।
⇒MSP के लिए CACP निम्नलिखित कारकों को देखता है-
- किसी वस्तु की डिमांड और सप्लाई
- इसकी उत्पादन लागत
- मार्केट प्राइस के बदलते ट्रेंड्स (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों)
- अंतर- फसल मूल्य समता
- कृषि और गैर-कृषि के बीच व्यापार की शर्तें (अर्थात, कृषि आदानों और कृषि उत्पादों की कीमतों का अनुपात)
- उत्पादन की लागत पर मार्जिन के रूप में न्यूनतम 50 प्रतिशत और
- उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर MSP के संभावित प्रभाव
‘दोषपूर्ण उत्पादन अनुमान'
- लगभग 500 कृषि संगठनों के मंच संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र के दावों पर सवाल उठाया और कहा कि नए एमएसपी खेती के
वास्तविक खर्च से जुड़े नहीं हैं।
QUESTION :5 केंद्र सरकार ने विद्रोही गुटों 'नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा' (NLFT) और ‘ऑल इंडिया त्रिपुरा टागर फोर्स' (ATTF) को कितने वक्त के लिए प्रतिबंधित कर दिया?
a. 5 वर्ष
b. 10 वर्ष
c. 8 वर्ष
d. 18 वर्ष
उत्तर : a. 5 वर्ष
EXPLANATION:-
⇒ विद्रोही गुट
- नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT)
• ऑल इंडिया त्रिपुरा टागर फोर्स (ATTF)
केंद्र सरकार ने प्रतिबंध क्यों लगाया
- इन पर देश की एकता और संप्रभुता के खिलाफ गतिविधियों में संलिप्त रहने का आरोप है।
- सरकार की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि NLFT और ATTF का मकसद त्रिपुरा को अलग स्वतंत्र राष्ट्र बनाना है।
- इसको लेकर ये गुट, कई अन्य सशस्त्र अलगाववादी संगठनों की मदद से सालों से सशस्त्र विद्रोह कर रहे हैं।
- तीन अक्टूबर 2023 को इन दोनों गुटों से जुड़े संगठनों को भी 5 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।
QUESTION : 6 जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी करने वाला देश का पहला राज्य कौन है?
a. उत्तर प्रदेश
b. बिहार
c. राजस्थान
d. कर्नाटक
उत्तर : b. बिहार
EXPLANATION:-
बिहार सरकार के डेवलपमेंट कमिश्नर विवेक सिंह ने 2 अक्टूबर 2023 को जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए।
- इस गणना के लिए बिहार विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था। इसमें सभी पार्टियां शामिल थी।
- इसके बाद बिहार सरकार दो चरणों में जाति आधारित सर्वेक्षण करवाया था।
- इसमें जातियों की आबादी का सामाजिक और आर्थिक स्थिति का आंकड़ा जुटाया गया है, हालांकि इस आंकड़े को बाद में जारी किया जाएगा।
- वर्तमान में जातीय, धार्मिक, वर्ग की आबादी का आंकड़ा जारी किया गया है।
⇒देश में पिछली बार जातीय गणना कब हुई?
- वर्ष 1931 में ब्रिटिश इंडिया में पहली जातीय गणना हुई थी।
- इसके बाद जनगणना में जातिगत आबादी का आंकड़ा नहीं जुटाया गया।
- हालांकि वर्ष 2011 में सोशियो - इकोनॉमिक एंड कास्ट सेन्सस (SECC) हुई।
- जनगणना भारतीय आबादी को दर्शाती है। जबकि SECC का उद्देश्य जाति की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को मापना था।
- SECC का अभी तक आधिकारिक डाटा पब्लिश नहीं किया गया है। हालांकि इसके आर्थिक डेटा को जारी किया गया।
- 2021 की जनगणना अभी तक नहीं हो पाई है। कई दलों की मांग है कि इसमें जातीय आंकड़ा जुटाया जाए।
⇒जातीय गणना से क्या फायदा होगा?
- अलग-अलग जातियों के लोगों की शिक्षा, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र के हालातों का पता चल सकेगा।
- इसके अलावा लोगों के लिए सही पॉलिसी लाई जा सकेंगी। वर्ष 1980 में मंडल कमीशन के सामने सबसे बड़ी समस्या ओबीसी की संख्या को लेकर थी। क्योंकि आखिरी बार जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। इसके अनुसार OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) की आबादी देश में 52 प्रतिशत थी।
- तब मंडल कमीशन ने 1931 की जनगणना के आधार पर भी अपनी रिपोर्ट सरकार को दी।
- इसके आधार पर देश में OBC को शैक्षणिक और सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया।
- बहुत सारी सामाजिक और आर्थिक नीति है, जो इस आंकड़े से प्रभावित होगी।
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