Important festival of chhattisgarh part 4

2811,2023

 छत्तीसगढ़ के पर्व एवं त्यौहार भाग-4

दोस्तो छत्तीसगढ़ के प्रत्येक माह के पर्व एवं त्यौहार पर अब हम विस्तृत चर्चा करेंगेअब हम भाद्र माह के प्रमुख त्यौहार को समझते है |

  1. भोजली पर्व : -  भोजली मूलतः ग्रामीण जीवन की संस्कृति की उपज है। भोजली उस प्रकृति के प्रारंभिक सौंदर्य की सुखानुभूति की अभिव्यक्ति है, जिसमें कोई बीज अंकुरित होकर अपने अलौकिक रुप से सृष्टि का श्रृंगार करता है। सावन माह के शुक्ल पक्ष में आठे या नवमीं के दिन कंडरा घर से लाई गई टोकरियों व परी में कुम्हार आवा की काली मिट्टी डालकर किशोरियों द्वारा गेंहूं के दाने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ बोये जाते हैं। ये उगे हुए पौधे ही भोजली देवी के रुप में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। यही है भोजली, यही है गंगा। अर्थात भोजली गंगा।
  • भोजली विसर्जन भाद्र माह के कृष्ण प्रथम को मनाया जाता है।
  • भोजली प्रकृति पूजा का प्रतीक है।
  • भोजली प्रकृति पूजा का वह उपक्रम है, जिसमें लोक द्वारा भू-जली अर्थात भूमि की जलयुक्त होने की कामना की गई है।
  • यह पर्व मित्रता का प्रतीक है |
  • भाई – बहन का त्यौहार है |
  • राखी के दिन राखी बांधी जाती है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन गांव भर की बालिकाएं एकत्रित होती हैं। गड़वा बाजा के साथ पंक्तिबद्ध होकर भोजली को नदी या तालाब में विसर्जित करती हैं।
  • बालिकाएं भोजली की जड़ों को प्रवाहित कर भोजली घर ले आती हैं। नदी-तालाब के तट पर व गांव में आकर सुवा- नृत्य करती हैं।
  • भोजली को एक-दूसरे के कान में खोंचकर परस्पर भोजली बदते हैं और जीवन पर्यन्त मित्रता के सूत्र में बंध जाते हैं।
  • भोजली विसर्जन को छत्तीसगढ़ी में सराना या उजेना कहते है |
  • भोजली गीत - " देवी गंगा, देवी गंगा, लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा हमरो भोजली देवी के भींजे आठो अंगा "
  1. बहुरा चौथ : -  'बहुर' का अर्थ है वापस आना। यह व्रत भादो माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इसलिए कहलाया बहुरा चौथ। बहुरा चौथ में वचन पालन, मां की ममता, पुत्र की कर्तव्य परायणता व मनुष्य का पशुओं के प्रति प्रेम तथा दायित्व बोध का संदेश छुपा है।
  • 'बहुरा चौथ', जिसमें माएं अपनी संतान की हितकामना के लिए व्रत रखती है।
  • इस दिन माँ मिट्टी से बने, सिंह व गाय-बछड़े की मूर्ति की पूजा करती हैं।
  • इस दिन भगवान गणेश एवं बहुरा नामक धर्म परायण गाय की पूजा की जाती है |
  1.  हलषष्ठी/कमरछठ  : -  यह पर्व भाद्र माह की कृष्ण षष्ठी को मनाया जाता है ।कथा के अनुसार इसी दिन भगवान बलभद्र का जन्म हुआ था उनके शस्त्र के रूप में हल को मान्यता मिली थी इसलिए इसे हलषष्ठी व्रत कहा जाता है | इस व्रत को पुत्रेष्ठी व्रत भी कहा जाता है।
  • संतानवती महिलाएं ही इस व्रत का पालन करती है।
  • माताएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं।
  • कमरछठ के दिन गांव-कस्बों व नगरों में मंदिर या उपयुक्त स्थान पर दो गड्ढे खोदकर उसे 'सगरी' अर्थात तालाब का रूप दिया जाता है। उसे कांस के फूलों, पलाश व बेर की शाखाओं से सजाया जाता है|
  • शंकर- पार्वती की पूजा की जाती है। माताएं मिट्टी के बांटी, भाँरा बनाकर सगरी में डालती हैं। लाई व छः प्रकार के भुने हुए खाद्यान्न जैसे गेहूं, चना, मसूर, लाखड़ी, महुआ आदि चढ़ाती हैं।
  •  छः प्रकार की भाजी व भैंस की दही का सेवन करती हैं।
  • बिना हल जुते जमीन में उत्पन्न उपज का फलाहार किया जाता है।
  • महुए के पत्तों से बने दोने पत्तल पर पसहर चांवल / अक्षत चांवल का भात खाती हैं।
  • छठ के दिन महिलाएं अपने बच्चों को सगरी तालाब में पोतनी डुबाकर छह-छह बार मारती हैं और उसके बाद भोजन कराती हैं।
  • भोजन में नमक के स्थान पर सेंधा नमक तथा मिर्च के स्थान पर धन मिचीं या ठड़ मिचीं का उपयोग किया जाता है। मुनगा भाजी का विशेष उपयोग किया जाता है।
  • व्रत रखने वाली महिलाओं का जुती हुई जमीन पर चलना निषिद्ध रहता है।
  • उपवास रखने बाली महिलाएं डोरी की खली में अपने बालों को धोती हैं।
  • पूजन पश्चात छः प्रकार लोक कथाएं सुनने-सुनाने की परंपरा है। इन कथाओं में मां की ममता का विशेष उल्लेख रहता है।
  • गेड़ी को सगरी में नहलाया जाता है।
  • उपवास रखने बाली महिलाएं डोरी की खली में अपने बालों को धोती हैं।
  1. जन्माष्टमी- आठे कन्हैया : - 'आठे कन्हैया' अर्थात जन्माष्टमी भादो महीने के कृष्ण पक्ष में अष्टमी को मनाया जाता है। संयोग देखिए कि श्रीकृष्ण देवकी के गर्भ से जन्म लेने वाली आठवी संतान थे और उनका लोक अवरण भी अष्टमी को हुआ। लोक को इन दोनों कारणों ने प्रभावित किया। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को छत्तीसगढ़ के लोकमानस ने आठे कन्हैया के रूप में स्वीकार किया।
  • आठे कन्हैया (भित्ति चित्र) की पूजा करते हैं। आठे कन्हैया घर में सुलभ संसाधन जैसे चूड़ी रंग, स्याही, सेमी, भँगरा या तरोई पत्ते के कच्चे रंग से बने चित्र होते हैं। ये चित्र आठ की संख्या में होते हैं और श्रीकृष्ण जन्म के प्रतीक हैं।
  • छत्तीसगढ़ में रामसप्ताह का भी आयोजन होता है, जिसमें निर्वाध रूप से भजन कीर्तन गाए जाते हैं।
  • दुसरे दिन रामधुनी दल के साथ दही लूट का आयोजन किया जाता है |
  • रायगढ़ के गौरीशंकर मंदिर में मेला का आयोजन होता है |
  1. पोला : - पोला' पर्व भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है। पोला भी हरेली की तरह कृषि कर्म से प्रेरित पर्व है। जिस प्रकार हरेली में कृषि औजारों की पूजा होती है, पशु धन के लिए स्वास्थ्य की मंगलकामना की जाती है। ठीक उसी प्रकार पोला में भी धन-धान्य, लक्ष्मी व कृषि कर्म के सहयोगी बैल की पूजा की जाती है।
  • इस समय खेतों में अंतिम निंदाई लगभग पूरी हो जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि पोला के दिन धान की फसल 'गभोट' में आती है, अर्थात गर्भ धारण करती है। इसलिए लोक मर्यादा के अनुरूप इस दिन खेत जाना वर्जित रहता है।
  • पोला के दिन छत्तीसगढ़ में 'नंदी' अर्थात मिट्टी से बने नाँदिया बैल की पूजा की परंपरा है। नंदी शिव का वाहन है और बैल रूप में कृषि कार्य का सहायक।
  • नाँदिया बैलों के साथ पूजित जाता-पोरा, चूल्हा- चुकिया व मिट्टी के बने बर्तनों की खेल सामग्री से लड़कियाँ सगा-पहुना खेलकर बालपन में ही पारिवारिक जीवन की जिम्मेदारी का अभिनय करती हैं।
  • पोला मूलतः कृषि संस्कृति से प्रेरित पर्व है।
  • गाँव-कस्बों में बैल-दौड़ का आयोजन भी किया जाता है।
  • इस दिन छत्तीसगढ़ी पकवान  ठेठरी जिसकी आकृति जलहरी (प्रतीक रुप में पार्वती) और खुरमी शिवलिंग (शिव) रूप में प्रतीत होती है|
  • इस दिन गेडी का विसर्जन किया जाता है |
  1. हरतालिका / तीजा : -  तीजा भादो मास के शुक्ल पक्ष में तृतीया को मनाया जाता है। इसे सामान्यतः हरितालिका व्रत भी कहा जाता है। तीजा व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य की कामना से रखा जाता है। कुंवारी लड़कियां भी सुयोग्य वर की कामना कर उपवास रखती हैं।
  • इस दिन पत्नी अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है ।
  • तीजा के समय बेटी व बहनों को पिता या भाई द्वारा लिवाकर लाया जाता है।
  • तीजा उपवास के एक दिन पहले करू भात खाए जाने की परंपरा है।  इसमें करेले की सब्जी की अनिवार्यता होती है।
  • तीज के दिन मौनी स्नान करती हैं।
  • आठों पहर निर्जला उपवास कर महिलाएं छत्तीसगढ़ी व्यंजन ठेठरी-खुरमी, सोहारी, गुछिया आदि बनाती हैं।
  • इस दिन नीम या सरफोंक के दातून का अपना वैज्ञानिक महत्व है।
  • रात्रि में जाग कर फुल्हेरा सजाना :- गौरा-गौरी की सज्जा/ पूजा करती है |
  • तीजा का बासी खाना :- पानी में डुबोया चावल
  • छत्तीसगढ़ में सुहाग का सबसे बड़ा व्रत है|
  • तीजा उपवास रखने के बाद महिलाएं सफर नहीं करती हैं।
  • हरतालिका चित्रकारी भी किया जाता है |

 

05:00 am | Admin


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