जब भारत आजाद हुआ तब भारत के सामने कई चुनौतियां थी ,अंग्रेज देश को खोखला छोड़ गये थे,खाद्यान्न का संकट ,सिंचाई के लिए पानी का संकट हो गया था,राजनीतिक उथल पुथल भी थी।।
बंगाल में भीषण अकाल पड़ा और लाखों लोगों की मौत हो गई । देश में चारों तरफ खाद्यान्न संकट बढ़ता जा रहा था। उस समय एक साइंटिस्ट ने धान की ज्यादा उपज देने वाली किस्में विकसित कीं। इससे कम आय वाले किसानों के लिए अधिक पैदावार करने का जरिया मिल गया। भारत में वही हरित क्रांति थी। इसके बाद देश के किसानों ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। तमिलनाडु के उस साइंटिस्ट को आज पूरा देश भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है।MS स्वामीनाथन का 98 वर्ष की आयु मे निधन हो गया।।।
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी में साल 1925 में हुआ था। स्वामीनाथन 11 साल के ही थे जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। उनके परिजन उन्हें मेडिकल की पढ़ाई कराना चाहते थे लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत प्राणि विज्ञान से की। इसी बीच दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा जिसने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इसके बाद स्वामीनाथन ने तय किया कि देश में खाने की कमी नहीं हो इस उद्देश्य से कृषि की पढ़ाई की। 1944 में उन्होंने मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की।
भारतीय पुलिस सेवा में चयन हुआ लेकिन कृषि से जुड़ा रास्ता अपनायाः1947 में वह आनुवंशिकी और पादप प्रजनन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आ गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की।
प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन एक प्रसिद्ध कृषिविज्ञानी और पौधों के आनुवंशिक विज्ञानी (plant genticist) थे. उन्होंने धान की ज़्यादा उपजाऊ क़िस्मों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई थी. स्वामीनाथन ने 'हरित क्रांति' की सफलता के लिए दो केंद्रीय कृषि मंत्रियों - सी. सुब्रमण्यम और जगजीवन राम - के साथ मिलकर काम किया था और 60 के दशक में भारत को अकाल से बचाने के लिए स्वामीनाथन और उनके अमेरिकी वैज्ञानिक साथी नॉर्मन बोरलॉग को ही श्रेय दिया जाता है.।। उन्होंने 1966 में मेक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ हाइब्रिड करके हाई क्वालिटी वाले गेहूं के बीज विकसित किए थे।
1987 में प्रोफेसर स्वामीनाथन को प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जिसे कृषि के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है. उन्हें कई अन्य पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे. जिनमें 1971 में प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1986 में विज्ञान के लिए अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व पुरस्कार शामिल है. प्रोफेसर स्वामीनाथन को टाइम पत्रिका द्वारा 20वीं सदी के बीस सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में से एक बताया गया था.पद्मश्री (1967), पद्मभूषण (1972), पद्मविभूषण (1989)
किसानों के हालात पर सिफारिशें देने के लिए(राष्ट्रीय किसान आयोग) स्वामीनाथन आयोग का गठन 18 नवंबर 2004 को किया गया था।
उन्होंने किसानों के हालात सुधारने सिफारिशें की थीं, लेकिन अब तक उनकी ये सिफारिशें लागू नहीं की गई हैं। किसान बार-बार आंदोलनों के जरिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग करते रहे हैं।
रोजगार सुधार: आयोग ने खेती से जुड़े रोजगारों को बढ़ाने की बात कही थी। आयोग ने कहा था कि साल 1961 में कृषि से जुड़े रोजगार में 75 फीसदी लोग लगे थे जो कि 1999 से 2000 तक घटकर 59 फीसदी हो गया। आयोग ने किसानों के लिए ‘नेट टेक होम इनकम’ को भी तय करने की बात कही थी।
भूमि बंटवारा: 1991-92 में 50 फीसदी ग्रामीण लोगों के पास देश की सिर्फ तीन फीसदी जमीन थी, जबकि कुछ लोगों के पास ज्यादा जमीन थी। आयोग ने इसके लिए एक सही व्यवस्था की जरूरत बताई थी।
सिंचाई सुधार: सिंचाई के पानी की उपलब्धता सभी के पास होनी चाहिए। इसके साथ ही पानी की सप्लाई और वर्षा-जल के संचय पर भी जोर दिया गया था। आयोग ने पानी के स्तर को सुधारने पर जोर देने के साथ ही 'कुआं शोध कार्यक्रम' शुरू करने की बात भी कही थी।
भूमि सुधार: बेकार पड़ी और अतिरिक्त जमीनों की सीलिंग और बंटवारे की भी सिफारिश की गई थी। इसके साथ ही खेतीहर जमीनों के गैर कृषि इस्तेमाल पर भी चिंता जताई गई थी। जंगलों और आदिवासियों को लेकर भी विशेष नियम बनाने की बात कही गई थी।
खाद्य सुरक्षा: आयोग ने समान जन वितरण योजना की सिफारिश की थी। साथ ही पंचायत की मदद से पोषण योजना को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने की भी बात कही थी। इसके अलावा स्वयं सहायक समूह बनाकर खाद्य एवं जल बैंक बनाने की बात भी कही गई थी।
ऋण और बीमा: आयोग का कहना था कि ऋण प्रणाली की पहुंच सभी तक होनी चाहिए। फसल बीमा की ब्याज-दर 4 फीसदी होनी चाहिए। कर्ज वसूली पर रोक लगाई जाए। साथ ही कृषि जोखिम फंड भी बनाने की बात आयोग ने की थी।
प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाना: आयोग ने किसानों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की बात भी कही है। इसके साथ ही अलग-अलग फसलों को लेकर उनकी गुणवत्ता और वितरण पर विशेष नीति बनाने को कहा था।
किसान आत्महत्या रोकना: किसानों की बढ़ती आत्महत्या को लेकर भी आयोग ने चिंता जताई थी। आयोग ने ज्यादा आत्महत्या वाले स्थानों को चिह्नित कर वहां विशेष सुधार कार्यक्रम चलाने की बात कही थी।
Published by DeshRaj Agrawal
08:14 am | Admin
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