छत्तीसगढ़ के पर्व एवं त्यौहार भाग-5
⇒दोस्तो छत्तीसगढ़ के प्रत्येक माह के पर्व एवं त्यौहार पर अब हम विस्तृत चर्चा करेंगे, अब हम भाद्र – कुवांर माह के प्रमुख त्यौहार को समझते है |
भाद्र/भादो माह ( अगस्त – सितम्बर )
- करमा पर्व : - छत्तीसगढ़ के रायगढ़, कोरबा, चंपा,आदि जिलों की जनजातियों के अनुसार राजा कर्म सेन ने अपने ऊपर विपत्ति पड़ने पर इष्ट देवता को मनाने के लिए रात भर नृत्य किया। जिससे उनकी विपत्ति दूर हुई तब से राजा क्रमसेन के नाम पर कर्मा का पर्व एवं करमा नृत्य प्रचलित है।
वहीं छत्तीसगढ़ के मध्य व पश्चिमी क्षेत्र की जनजातियां यह भी मानती है कि कर्मी नामक वृक्ष पर कर्मी सैनी देवी का वास होता है।उन्हें खुश करने के लिए कर्मी वृक्ष की डाल को आंगन में विधि पूर्वक स्थापित कर पूजा की जाती है और रात भर नृत्य किया जाता है।
- यह पर्व भाद्र माह में मनाया जाता है, भाद्र माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम या द्वितीय दिन औरते करम सेनी देवी माता की पूजा के लिए धान, मूंग व उड़द का जावा देती है।
- यह पर्व धान रोपने से लेकर फसल कटाई के मध्य भाद्र माह में मनाया जाता है |
- गाँव के लोग उपवास रखते है व करमा पेड़ के डंगाल काटकर उसमे सफ़ेद धागा बांधकर पर्व स्थल में स्थापित करते है व उसकी पूजा करते है। यह कार्य एकादशी के दिन होता है।
- गाँव के लड़के-लड़कियां भी अपनी दिली चाहत माता के सामने रखते हुए अपने भावीजीवनसाथी की कामना करते है।
- रात्रि में वयोवृद्ध कथावाचक द्वारा करम सेनी की कथा सुनायीं जाती है।
- यह मुख्यतः सरगुजा अंचल का पर्व है |
- यह पर्व मुख्य रूप से उरांव जनजाति के लोग मनाते है, लेकिन बिंझवार, बैगा, गोंड़ कंडरा जनजाति के लोग भी मना लेते है|
- यह कृषि संबधित तथा किसानो का पर्व है |
- इस पर्व में कर्म की प्रधानता तथा श्रम साधना को बताया गया है |
- इस पर्व में कर्मा नृत्य किया जाता है |
- धनकुल : - धनकुल को बस्तर का तीजा भी कहा जाता है। सामान्यतः इसका आयोजन भाद्र माह के शुक्ल तृतीय (तीजा) के दिन ही होता है।
- इस पर्व का दूसरा नाम तीजा जगार है |
- यह पर्व मुख्य रूप से हल्बा, भतरा जनजाति के द्वारा मनाया जाता है |
- महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए गौरी या लक्ष्मी की आराधना करते हुए गुरूमाय से धनकुल कथा या जगार गीत सुनती हैं।
- इस दिन विवाहित स्त्रियाँ ग्रामदेवी की पूजा करती है।
- धनकुल के आयोजन के लिए एक स्थल तैयार किया जाता है तथा उस स्थल में स्त्रियों द्वारा तीन वस्तुएं ले जाना अनिवार्य होता है - 1). घड़ा 2). सुपा 3). धनुष
- धनकुल के दिन स्त्रियाँ धनकुल की कथाएं सुनती है, यह कथाएं पाट गुरुमायें द्वारा सुनाई जाती है तथा चेली गुरुमायें द्वारा धनकुल वादन किया जाता है।
- धनकुल नामक वाद्ययंत्र का आविष्कार हलबा जनजाति ने किया था ।
- जगार अर्थात् सांस्कृतिक जागरण, हल्बा जनजातियों के द्वारा मुख्य रूप से चार प्रकार के पर्व जगार पर्व मनाए जाते हैं-
• 1) तीजा जगार (तीजा त्यौहार के अवसर पर)
• 2) आटठे जगार (कृष्णजन्माष्टमी पर)
• 3) लक्ष्मी जगार (लक्ष्मी पूजा के अवसर पर)
• 4) बाली जगार (थान की बालियाँ आने पर)
- नवाखाई : - नवाखाई का त्यौहार गोंड़ जनजाति का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह त्यौहार भाद्र शुक्ल नवमीं से भाद्र पूर्णिमा के मध्य मनाया जाता है।
- इस पर्व को नयी फसल की पहली उपज की प्राप्ति की खुशी में मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाये बिना गोंड आदिवासी में नयी फसल का उपभोग प्रतिबंधित है।
- इस पर्व में आदिशक्ति बूढ़ादेव की विधि विधान से पूजा-अर्चना कर उन्हें नई फसल धान की बालियाँ अर्पित की जाती है।
- नवाखाई में प्रसाद के रूप में नए चावल की खीर व महुआ दिया जाता है।
- किसान विशेष रूप से नवाँखानी को ध्यान में रख कर साठ दिनों में पक जाने वाले "साटकाधान" की खेती अलग से कर रखते हैं। नया धान घर में लाने के बाद उसका चिवड़ा (पोहा) बना लेते हैं। चिवड़ा बनाने के लिये नई हंडी का उपयोग आवश्यक होता है।
- नवाखाई के अगले दिन बासी त्यौहार होता है इस दिन समाज के सभी लोग मुखिया के घर एकत्रित होते है व एक दूसरे को बधाई देते है।
कुंवार/अश्विन माह ( सितम्बर – अक्टूबर)
- पितर पाख/ पितृ पक्ष /श्राद्ध पर्व : - छत्तीसगढ़ में धार्मिक रीति-रिवाजों और परम्पराओं को मनाने की संस्कृति सदियों से चली आ रही है। अपने पूर्वजों को श्राद्ध-तर्पण देने का ऐसा ही पर्व है 'पितर पाख |
- यह क्वाँर कृष्ण पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होता है और अमावश्या तक चलता है |इसमें पंद्रह दिनों तक पितरों को पिंडदान और तिल सहित जल का तर्पण दिया जाता है । प्रथम दिवस 'पितर बइसकी' कहलाता है ।
- पुरुष पितर जिस दिन दिवंगत होते है उसी तिथि में उन्हें तर्पण दिया जाता है ।
- नवमीं के दिन माताओं को, पंचमी के दिन बच्चों व कुंवारों को तथा अकाल मृत्यु प्राप्त पितरों को चतुर्दशी के दिन तर्पण दिया जाता है।
- पितर को तर्पण देने वाला व्यक्ति जल तर्पण के समय दूब, कुश, तरोई पान, उड़द दाल व चावल का उपयोग कर पितरों को स्मरण करता है ।
- इस दौरान बरा, सोहारी व खीर आदि व्यंजन बनायें जाते है तथा तरोई सब्जी खाते है|
- पूर्वजों की पसंद के अनुरूप पकवान बनाकर ब्राम्हणों, गायों और कौओं को खिलाते हैं
- आखिरी दिन पीतरखेदा का पर्व होता है।
- जिवतिया पर्व /बेटाजूतिया : - यह पर्व अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूरी आस्था के साथ सरगुजा व कोरिया में मनाया जाता है|
- मातायें अपनी संतान के कुशल मंगल व दीर्घायु प्राप्ति की कामना हेतु व्रत रखती है ।
- इस दिन शिव-पार्वती की पूजा की जाती है।
- इस दिन चिटचिटा(एक पौधा) की दातुन की जाती है|
- सास के जीवित रहते तक बहु को बेताजुतिया उपवास करना आवश्यक नहीं होता है| सास के मरते ही बेटाजुतिया व्रत निभाना पड़ता है|
- जंवारा : - छत्तीसगढ़ में जंवारा शक्ति या देवी का प्रतीक है।इसे वर्ष में दो बार चैत्र व अश्विन माह में बोया जाता है ।
- चरु-जातरा : - यह पर्व अश्विन-कार्तिक माह में फसल कट जाने के बाद इस पर्व को मनाया जाता है, यह पर्व मुख्य रूप से बस्तर में मनाया जाता है ।
- चरु शब्द का अर्थ हवन के लिए पकाया हुआ भोजन होता है।
- चरु जातरा अपनी – अपनी कृषि भूमि पर करते है अर्थात कृषि भूमि की पूजा की जाती है|
- फिर माटी-पुजारी द्वारा किसी मंगलवार का दिन तय कर किसी खेत में अच्छी जगह देखकर वहां गोबरपानी का छिड़काव करता है और वहां चावल के आटे से चौक पुरता है ।
- ग्रामीण वहां बकरा, मुर्गा व कबूतर लेके आते है | सम्पूर्ण पूजा सम्पन्न होने के पश्चात उनकी बलि दी जाती है ।
- पकी हुई सामग्री घर ले जाना भी निषिद्ध है।
- इस पर्व में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है। अर्थात पुरुष प्रधान पर्व है|
- चरु जातरा धरती माता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का एक वनवाशी ढंग है|
- कोरा पर्व : - यह पर्व कुवांर माह में यह पर्व कोरवा जनजाति के द्वारा कोदो व गोंदली की फसल काटने के बाद मनाते है ।
03:03 am | Admin