Important festival of chhattisgarh part 6

3011,2023

  छत्तीसगढ़ के पर्व एवं त्यौहार भाग-6

दोस्तो छत्तीसगढ़ के प्रत्येक माह के पर्व एवं त्यौहार पर अब हम विस्तृत चर्चा करेंगेअब हम कार्तिक माह के प्रमुख त्यौहार को समझते है |

                  कार्तिक माह ( अक्टूबर नवम्बर )

  1. धनतेरस : - छत्तीसगढ़ में दीपावली की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। खेतों में धान की बालियाँ पकने लगती हैं, तब किसान का हृदय उसे देखकर पुलकित होने लगता है और जीवन की देहरी में उजास भरने लगता है । धनतेरस के दिन घर की मुहाटी में तेरह दीप जलाकर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
  • यह पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष तेरस को मनाया जाता है |
  1. नरक चौदस : - दूसरे दिन चतुदर्शी होती है, जिसे नरकचौदस कहा जाता है। इस दिन यम के नाम पर गोबर से बने चौदह दीप प्रज्जवलित कर यम को प्रसन्न किया जाता है ।
  2. दीपावली/देवारी/ सुरहुति : -  दीपावली को छत्तीसगढ़ में 'देवारी' कहा जाता है। यह पर्व कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है।
  • रावण का वध कर लंका विजय के बाद जब श्रीराम चंद्र जी अयोध्या पधारे थे, तब अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनके स्वागत- सत्कार में खुशियाँ मनाई थी। उसी की स्मृति में दीपावली मनाने की परंपरा आज भी कायम है।
  • किन्तु छत्तीसगढ़ में इसका रंग चोखा है, अनोखा है। क्योंकि दीपावली लक्ष्मी का पर्व है और छत्तीसगढ़ की लक्ष्मी है धान। धान कृषि संस्कृति का प्रबोधक है। धान की बाली को ही यहाँ लक्ष्मी का रूप माना गया है।
  • सुरहुती - कार्तिक अमावस्या के दिन लक्ष्मी पूजन होता है । छत्तीसगढ़ में लक्ष्मी पूजन को 'सुरहुती' कहा जाता है।
  1. गौरा गौरी पर्व : - गौरा पूजा कार्तिक अमावस्या अर्थात सुरहुती के दिन ही मध्यरात्रि  में संपन्न होती है| किन्तु उसकी भूमिका एक सप्ताह पहले प्रारंभ कर दी जाती है |
  • यह पर्व मुख्य रूप से गोंड़ जनजाति के द्वारा मनाया जाता है, लेकिन इस कार्य में गाँव के सभी लोगों की सहभागिता होती है |
  • इस दिन गौरा-गौरी की मिट्टी की मूर्तियाँ बनायीं जाती है जिस पर पीले रंग के चमकीले कागज़ कलात्मक ढंग से चिपकायें जाते हैं।
  • गौरा देवता को बैल पर सवार तथा गौरी देवी को कछुए की पीठ पर बैठी बनायीं जाती है।
  • यह पर गौरा व गौरी के विवाह संपन्न किया जाता है ।लौकिक रीति के अनुसार विवाह के सारे नेग सम्पन्न किए जाते
  • दूसरे दिन गौरा-चौरा में प्रातः विधि-विधान से गौरा की पूजा-अर्चना कर विसर्जन किया जाता है
  • इसी दौरान महिलाएं गौरा जगी, डड़ैया गीत, विसर्जन गीत गाती हैं । गौरा गीतों के प्रभाव से लोग देव रूप मे आवेशित हो जाते हैं, जिसे देवता चढ़ना, डड़ैया चढ़ना व सत्ती आना कहते हैं ।
  • गौरा विसर्जन के पश्चात मूर्तियों में लिपटी चमकदार पन्नी को एक दूसरे के कान में खोंचकर 'पना' बदते हैं। यह पना अटूट मित्रता का प्रतीक है ।
  1. गोवर्धन पूजा : -  गौरा विसर्जन के बाद इसी दिन गोवर्धन पूजा का कार्य संपन्न होता है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा को मनाया जाता है।
  • इस दिन कोठा (गौशाला) में गोबर से श्रीकृष्ण की प्रतीकात्मक मूर्ति बनाई जाती है।
  • गोबर की विशेष आकृतियां बनाकर उसे पशुओं के खुर से कुचलवाया जाता है।
  • गोधन की समृद्धि की कामना में यह पर्व मनाया जाता है।
  • गोवर्धन पूजा का यह पर्व पशुधन व कृषि संस्कृति का संपोषक है ।
  • राऊत जाति का परंपरागत पर्व है |
  • ग्रामीण लोग परस्पर एक दूसरे के माथे पर गोबर का तिलक लगाकर अभिवादन करते हैं। जिसे गोवर्धन बदना कहते है|
  • इसी दिन 2019 से गौठान दिवस मनाया जाता है|
  • बस्तर अंचल में इस दिन फसल की पूजा कर दियारी त्यौहार मनाया जाता है।
  • सोहई बांधना - संध्या के समय राऊत अपनी नृत्य टोली के साथ अपने मालिक के घर जाकर गायों को सोहई व भैसों को भागर बाँधता है ।
  1. दियारी पर्व : - यह पर्व मुख्यरूप से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन अर्थात गोवर्धन पूजा के दिन बस्तर अंचल में मनाया जाता है।
  • दियारी-तिहार के अंतर्गत लक्ष्मी पूजन नहीं होता। उनका लक्ष्मी पूजन अलग होता है। धान की तैयार फसल को वे लोग लक्ष्मी मानते हैं, और धूम-धाम के साथ धान की बालियों को खेत से लाकर उस फसल लक्ष्मी का विधि पूर्वक विवाह नरायन राजा के साथ सम्पन्न करते है, इस प्रथा को "लछमी जगार" कहते हैं।
  • नयी फसल की उपलब्धि ही दियारी तिहार का निमित्त बनती है
  • बस्तर अंचल में चरवाहे को "धोरई" कहते हैं। घोरई किसी भी जाति का हो सकता है, परंतु वह अक्सर जाति का माहरा होता है। दियारी-तिहार में धोरई केंद्र-बिंदु बन जाता है। पूरा दियारी-तिहार उसी के इर्द गिर्द घूमता है।
  • धुरई, पशुमालिकों को एक निश्चित स्थान पर आमंत्रित करते है और अपनी हैसियत के हिसाब से उन्हें खिलाते – पिलाते है |
  • पशु-धन को माल्यार्पण : - इस दिन धुरई द्वारा बैलों को जो माला पहनाई जाती है उसे जेठा कहा जाता है जबकि गाय को जो माला पहनाई जाती है उसे छुई कहते है।
  • इस दिन पशुधन मालिक अपने पशुधन को खिचड़ी खिलाते है तथा पशु के माथे पर तिलक लगाकर उसकी पूजा की जाती है।
  1. भाई दूज : - गोवर्धन पूजा के अगले दिन अर्थात कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के द्वितीया दिन भाई दूज मनाने की भी परम्परा है । जिसमें बहन अपने भाई की पूजा कर, तिलक लगाकर उसकी लंबी आयु की कामना करती है।
  2. मातर पर्व : - यह पर्व भाई दूज के दिन अर्थात दीपावली के तीसरे दिन मनाया जाता है। मातर का शाब्दिक अर्थ मातृशक्ति होता है।
  • यह राउत जाति (यादव) का सामूहिक पर्व है, इस दिन राउत जाति अपने ईष्ट देव खोड़हर देव जोकि श्रीकृष्ण का एक रूप है जो लकड़ी से बनायें जाते है। की पूजा करते है |
  • इस दिन गौ-माता की पूजा की जाती है।
  • मातर पर्व तीन चरणों में होता है -1. कांछन आना 2. कुम्हड़ा बुलाना 3. दोहा पढ़कर नृत्य करना
  • मातर में प्रमुख वाद्य यन्त्र गुदुम, टिमकी, मोहरी, डमरू और गड़वा बाजा होता है।
  • गड़वा बाजा के साथ दोहों का उच्चारण किया जाता है।
  • नृत्य के दौरान हाथ में लाठी, माथे पर पगड़ी तथा रंगीन वेशभूषा पहनी जाती है।
  • इस पर्व में लाठी झोकना परम्परा, सोहई बाँधने की परंपरा, हाँथा भित्ति चित्र लिखना (राउत की पत्नी द्वारा मालिक की समृद्धि के लिए) आदि परम्परा निभाई जाती है|
  • इस दिन अखाड़ा प्रदर्शन किया जाता है|
  1. देवउठनी/तुलसी विवाह /जेठउनी : - यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है । इस पर्व को शास्त्रों में प्रबोधनी एकादशी कहा गया है। तथा देवउठनी को छत्तीसगढ़ में छोटी देवारी भी कहा जाता है।
  • इस दिन घर- घर में तुलसी विवाह सम्पन्न किया जाता है।
  • इस दिन ईख (गन्ने) से मंडप तैयार किया जाता है एवम चनाभाजी, बेर आदि चढ़ाया जाता है एवम विवाह के सारे नेंग पूरे कियें जाते है।
  • इस दिन उपवास रखने वाले लोग सिंघाड़ा का फलाहार लेते है।
  • इस समय राउत नृत्य अपने चरम पर होता है।
  • इसके बाद ही लोग विवाह हेतु वर-वधू की तलाश करना प्रारंभ करते है।
  • इस पर्व के बाद छत्तीसगढ़ में धान की कटाई प्रारंभ हो जाती है।
  1. कार्तिक स्नान : - कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन किया जाता है|

 

 

03:18 am | Admin


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