छत्तीसगढ़ के पर्व एवं त्यौहार भाग-7
⇒दोस्तो छत्तीसगढ़ के प्रत्येक माह के पर्व एवं त्यौहार पर अब हम विस्तृत चर्चा करेंगे, अब हम कार्तिक माह के प्रमुख त्यौहार को समझते है |
अघ्घन माह ( नवम्बर – दिसंबर )
- अध्घन बृहस्पत : - इस व्रत को माता लक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। प्रत्येक गुरुवार को मनाया जाता है |
- व्रत रखने वाली महिलायें अपने घरों के दरवाजें से लेकर भण्डार गृह व पूजा घर तक आटे से भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी के पद चिन्हों की छाप तैयार करते है।
- इस दिन पैसे खर्च नहीं किये जाते तथा झाडू नहीं लगाते व जमीन में सोया जाता है ।
- इस दिन चावल से बने पकवान बनाये जाते है | तथा माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
- लक्ष्मी जगार : - इसका आयोजन प्रतिवर्ष अध्घन माह में होता है ।
- गाँव के किसानों के लिए लक्ष्मी उनके खेत है अतः खेतो में फसलों के आगमन के समय लगातार 11 दिनों तक यह पर्व मनाते है।
- इस अवसर पर धान की बाली को लक्ष्मी मानकर उन्हें दूल्हे घर में स्थापित किया जाता है तथा नारियल को विष्णु का प्रतीक मानकर उनका विवाह संपन्न कराया जाता है ।
- यह पर्व बस्तर अंचल में मनाया जाता है |
पौष/पूस ( दिसंबर – जनवरी )
- छेरछेरा पर्व : - यह पर्व पौष माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। ऐसा मान्यता है की यह पर्व माता शाकम्भरी को प्रसन्न करने हेतु मनाया जाता है ।
- छेरछेरा को दान का पर्व भी कहा जाता है।
- इस पर्व में बच्चे घर घर जाकर अन्न का दान मांगते है।
- इस दिन तक प्रायः फसल को कृषक घर ले आते है |
- इस पर्व में नर्तक को नकटा और नर्तकी को नकटी कहा जाता है|
छेरिक छेरा छेर बरकनीन छेरछेरा
माई कोठी के धान ल हेर हेरा ।
उपरोक्त पंक्तियों को गाते हुए बच्चों और युवाओं के साथ ही सयानों की अलग-अलग टोली ढोलक, हारमोनियम व झांझ मंजीरों के साथ घर- घर भ्रमण करती है ।
- छेरता पर्व : - यह पर्व बस्तर अंचल में पौष पूर्णिमा को मुख्य रूप से गोंड़, भूमिका, पनका जनजाति के द्वारा मनाया जाता है|
- छेरता का अर्थ धरती होता है |
- किसान इसी दी लेखा और हिसाब का बंदोबस्त करते है |
- इस पर्व में महिलाऐं तारा नृत्य करती है |
माघ माह ( जनवरी – फरवरी )
- बसंत पचमी : - माँघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी मनाया जाता है, इस दिन माँ शारदा की पूजा की जाती है |
- इसी दिन अरंडी की डाली गाड़कर होली के लिए लकड़ी एकत्र करते है |
- सकट पर्व : - सकट देवारों का महत्त्वपूर्ण त्यौहार है, जो प्राकृतिक विपदाओं से सुरक्षा हेतु मनाया जाता है। माघ पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है एवं रात्रि में किसी वन अथवा एकान्त स्थान पर चौक पुरकर अनुष्ठान किया जाता है। वहीं भोजन पकाकर खाते हैं और अपने घर लौट आते हैं।
- धेरसा पर्व : - यह पर्व कोरवा जनजाति के लोग सरसों की फसल काटने के बाद मनाते है ।
- यह पर्व माघ माह में मनाया जाता है|
फाल्गुन माह ( फ़रवरी – मार्च )
- भीमल पंडुम पर्व : - यह पर्व बस्तर की दोरला जनजाति द्वारा फाल्गुन माह में मनाया जाता है।
- भीमल का अर्थ भीमसेन देव से है।
- यह पर्व शिकार से सम्बंधित है। इस पर्व का आयोजन विशेष अवसर पर होता है जिसमे सम्पूर्ण गाँव के लोग भाग लेते है। शिकार के पश्चात उसे भीमदेव व ईष्ट देवता को समर्पित करते है।
- कारे पंडुम पर्व : - यह पर्व फाल्गुन माह में मनाते है। फाल्गुन माह में आदिवासी बांस व कटीली झाड़ियों को काटना प्रारंभ करते है इसी खुशी में यह पर्व मनाया जाता है।
- उराऊ पंडुम पर्व : - यह पर्व फाल्गुन माह से प्रारंभ होकर चैत्र माह तक चलता है। इस अवसर पर आदिवासी महुवा बीनने का काम प्रारंभ करते है ।
- दंतेवाड़ा फागुन मड़ई : - दंतेवाड़ा की ईष्टदेवी माँ दंतेश्वरी के पूजा सम्मान में प्रतिवर्ष दंतेवाड़ा में मड़ई का आयोजन होता है। यह मड़ई फाल्गुन शुक्ल पक्ष के छठवें दिन से लेकर फाल्गुन शुक्ल चौदस तक कुल 9 दिनों तक चलती है
प्रमुख कार्यक्रम : - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी को सर्वप्रथम मंदिर में कलश स्थापना की जाती है।
- फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को खोर-खुदनी का कार्यक्रम होता है इसके तहत माता की डोली को बाहर निकाला जाता है
- अष्टमी के दिन निश्चित स्थान पर नृत्य का आयोजन किया जाता है यह नृत्यकलार व कुम्हार जाति के लोग करते है।
- नवमी, दशमी, एकादशी व द्वादश को क्रमश: लमहामार, कोडरीमार, चीतलमार व गौरमार का आयोजन होता है ।
- त्रयोदशी के दिन मड़ई में आये सभी देवी देवता के छत्रों की रैली निकाली जाती है जिसे देव-खोलनी कहते है ।
- त्रयोदशी के दिन ही शाम को गाली उत्सव मनाया जाता है ।
- चतुर्दशी के दिन पादुका पूजन किया जाता है व रात में होलिका दहन किया जाता है
- मेघनाथ पर्व : - यह पर्व फाल्गुन माह में गोंड जनजाति के लोग मनाते है। कहीं कहीं यह पर्व चैत्र माह में भी मनाया जाता है। गोंड जनजाति, मेघनाथ को अपना देवता मानती है जो उन्हें आपदा से बचाते है । यह पर्व बस्तर क्षेत्र में ज्यादा मनाया जाता है |
- होरी / होली : - बसंत पंचमी के दिन एक निश्चित स्थान पर एरंड का वृक्ष लगाकर उसके बाद लकड़ियां एकत्रित करने का काम प्रारंभ हो जाता है।
- फाल्गुन मास की अमावस्या को होली का त्यौहार मनाया जाता है।
- प्रतिदिन फाग गीत नंगाड़ों की थाप पर गाया जाता है।
- पहली रात्रि को एकत्रित किए हुए लकड़ी का होलिका दहन कर दिया जाता हैं। दूसरे दिन रंग-गुलाल खेला जाता है।
03:21 am | Admin