यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड आजकल चर्चा का विषय है केंद्र सरकार इसे लागू करने के लिए ऐक्शन मोड में है बीजेपी के घोषणा पत्र का यह एक अहम बिंदु है अगले लोकसभा चुनाव से पहले इसे हर हाल मे पारित करने की कोशिश करेगी, लेकिन इसके लिए जनता को विश्वास मे लेना जरूरी है इसलिए लोगो से राय भी मांगी जा रही है लोगो़ तक इसके फायदे बताए जा रहे हैं कुछ लोगों को इसके बारे मे पता है जबकि अधिकांश लोगो को इसके बारे मे पता नही है आइए जानते है UCC क्या है ::-
U-Uniform अर्थात एकसमान ,जब नियम ,कानून सभी लोगों के लिए बिना भेदभाव के एकसमान हो तो उसे यूनिफॉर्म कहते हैं
C-Civil सामान्यतः Civil व Criminal दो तरह के मामले होते है UCC मे सिविल का अर्थ सभी धर्मों,संप्रदायों के लिए विवाह, तलाक, वसीयत,उत्तराधिकार ,गोद लेना जैसे मुद्दे से है।।
C-Code अर्थात नियमों ,कानूनों को एक संग्रह , जैसे IPC,CrpC
भारत में चुनावों के लिए पूरे देश मे एक ही संहिताCode है कही.भी चुनाव हो एक जैसे नियम लागू होते है ,आपराधिक मामलों मे चाहे वो देश के किसी भी कोने मे किसी भी धर्म,संप्रदाय द्वारा हो एकसमान सजा का प्रावधान है लेकिन सिविल मामलो में ऐसा नही है अलग -अलग धर्म ,संप्रदाय के लिए अलग कानून है ऐसे मे विवाद की स्थिति मे न्यायपालिका पर दबाव बढ़ता है लेकिन स्पष्ट नियम न होने से केस लटक जाते हैं ऐसे एकसमान कानून की जरूरत है जिसे यूनिफॉर्म सिविल कोड कहते हैं भारत मे गोवा एक मात्र राज्य है जहाँ UCC लागू है चूंकि गोवा 1861से पुर्तगाल के अधीन रहा और पुर्तगाल मे 1867 मे सिविल कोड लागू किया और 1870 मे उपनिवेश होंने के कारण यह गोवा मे भी लागू हो गया और वर्तमान में भी पुर्तगाली सिविल कोड लागू है।।गोवा मे कोई व्यक्ति किसी भी धर्म का हो उसे वह़ा के सिविल कोड को मानना पड़ता है
डॉ. बी आर अम्बेडकर ने संविधान को बनाते समय कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड वांछनीय है लेकिन फिलहाल यह स्वैच्छिक रहना चाहिए, और इस प्रकार संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 35 को भाग IV में राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के एक भाग के रूप में जोड़ा गया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के रूप में यूनिफॉर्म सिविल कोड उल्लेखित किया गया है अनुच्छेद 44 कहता है कि "राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।" यह कोड (Uniform Civil Code) विवाह, तलाक, रखरखाव, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को कवर करते हैं।
इतिहास मे जाकर देखें तो ब्रिटिशर्स ने 1833 के एक्ट से भारत मे नियमों,कानूनों के संहिताकरण की शुरुआत की लेकिन इसमे लोगों के धार्मिक मामलो,सिविल मामलों से खुद को दूर रखा ,हालांकि हिंदुओं मे चल रहे धार्मिक सुधार आंदोलनों की वजह से वे कुछ सुधार कर सकें इसलिए हिंदुओं में कुछ रूढिवादिता,कुरीतियां समय के साथ धीरे -धीरे कम या खत्म होती गई जैसे 1829 मे राजाराममोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा का अंत हुआ ,1856 में ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों से लार्ड केनिंग के काल में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया इसके अलावा भी कई अधिनियम पारित किए गये लेकिन अंग्रेजो ने खुद को मुस्लिमों से दूर रखा।
मौजूदा वक्त में देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक, जायदाद का बंटवारा और बच्चों को गोद लेने जैसे मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के हिसाब से करते हैं. मुस्लिम, ईसाई और पारसी ,यहूदी का पर्सनल लॉ है जिसके अनुसार इनके सिविल मामलो का निपटारा होता है लेकिन इसमे न्यायपालिका का कही उल्लेख नही है जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौध आते हैं
हिन्दू नियम में चार प्रमुख नियम अधिनियम बनाए गए
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
हिन्दू अप्राप्तवयता तथा संरक्षकता अधिनियम, 1956, हिन्दू दत्त और भरण - पोषण अधिनियम, 1956
समय-समय पर न्यायालय द्वारा इसमे कुछ संशोधन किए जाते रहे हैं अंतर्जातीय व अंतर्धार्मिक विवाह के लिए विशेष विवाह अधिनियम 1954 बनाया गया ,वर्तमान मे जितने भी अंतर्जातीय व अंतर्धार्मिक विवाह होते.हैं इसी के अंतर्गत होते है ,कोर्ट मैरिज इसी के अंतर्गत आती है उसी प्रकार गोद लेने का अधिकार सिर्फ हिंदुओं को था जिसे किशोर न्याय अधिनियम 2000 के तहत सभी धर्मों के लिए कर दिया गया।
◆भारत मे मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम (Shariat Application Act) वर्ष 1937 में भारतीय मुसलमानों के लिये इस्लामी कानून सहिंता तैयार करने के उद्देश्य से पारित किया गया था।वर्ष 1937 के बाद से शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम मुस्लिम सामाजिक जीवन के पहलुओं, जैसे शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक संबंधों को अनिवार्य करता है। अधिनियम के अनुसार, व्यक्तिगत विवाद के मामलों में राज्य हस्तक्षेप नहीं करेगा।
हिंदू धर्म मे कई कुरीतियां थी जिसे दूर करने के लिए सुधार आंदोलन चले और उन्हे दूर किया गया लेकिन मुस्लिमों मे ऐसा नही हुआ ,कुछ प्रथाओं का विरोध हुआ जैसे ट्रिपल तलाक जिसे केंद्र सरकार ने बैन कर दिया उसी प्रकार मुस्लिम महिलाओं द्वारा बहुविवाह, मेहर ,निकाह हलाला पर भी लगातार विरोध किया जा रहा है.शायरा बानो से लेकर शबाना हामशी और वर्तमान मे भी विरोध के स्वर उठते रहे हैं
बहुविवाह:::-शरिया या मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, पुरुषों को बहुविवाह करने की अनुमति दी गई है, जिसका अर्थ है वे एक ही समय में एक से अधिक पत्नियों के साथ रह सकते हैं, विवाह की अधिकतम संख्या 4 निर्धारित की गई है।
'निकाह हलाला::-' एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला को अपने तलाकशुदा पति से दोबारा शादी करने से पूर्व दूसरे व्यक्ति से शादी करनी होती है और फिर उससे तलाक लेना पड़ता है तब वह अपने पहले पति से शादी कर सकती है हालांकि इसे कई मुस्लिम देशों ने भी बैन कर दिया है
कुल मिलाकर इन्हे देखकर कहा जा सकता है इसमेँ सुधार की जरूरत है ताकि महिलाएं अपने अधिकार से वंचित न हो ,इसमे सुधार करना और एक नियम बनाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।।
◆इसी प्रकार भारत मे कई जनजातीय प्रमुख क्षेत्र भी है जहां इनके परंपरागत विधियां है जिन्हे ये हजारों वर्षों से मानते आ रहे हैं ऐसे मे इनको यूनिफॉर्म सिविल कोड के दायरे मे लाना एक बड़ी चुनौती होगी ,ये अन्य धर्मों की तरह शहरी क्षेत्रों मे नही रहे हैं आधुनिक रहन-सहन तौर तरीको से ये बिल्कुल अलग-थलग हैं।।इसलिए कुछ लोग आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने की वकालत कर रहे हैं
भारतीय संविधान मे जनजातियों की रीति रिवाजों की सुरक्षा के प्रावधान किए गये हैं संविधान के अनुच्छेद 371(A) मे नागालैंड व 371(G) में मिजोरम की जनजातियों के रीति रिवाजों की रक्षा के प्रावधान है केंद्र सरकार के कानून को लागू करने से पहले यहां की विधानसभा से भी अनुमति लेनी पड़ती है
इसके अलावा 6वीं अनुसूची मे 10 जनजातीय क्षेत्रों का उल्लेख है जिन्हे विशेष अधिकार दिए गये हैं ताकि जनजातीय रीति रिवाज सुरक्षित हो सके ,इसलिए यूनिफॉर्म सिविल कोड मे इन्हे शामिल करना बड़ी चुनौती होगी
अंत मे निष्कर्ष यही निकाला जा सकता है कि सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहिए लेकिन इसमे सभी धर्मों की भावना का ध्यान रखा जाना चाहिए, बहुत अधिक कठोर भी न बनाया जाए
यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने से सभी समुदाय के लोगो को एक समान अधिकार दिए जायेंगे।
समान नागरिक सहिंता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा।कानूनों में सरलता और स्पष्टता आएगी। सभी नागरिकों के लिए कानून समझने में आसानी होगी।व्यक्तिगत या धर्म कानूनों के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा।
कानून के तहत सभी को सामान अधिकार दिए जायेंगें।
कुछ समुदाय के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित है। महिलाओं का अपने पिता की सम्पति पर अधिकार और गोद लेने से संबंधी सभी मामलों में एक सामान नियम लागू हो जायेंगे।धार्मिक रूढ़ियों के कारण समाज के किसी वर्ग के अधिकारों के हनन को रोका जा सकेगा।
संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म,जाति,लिंग के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है इसे आधार मानकर न्यायालय मे केस आते रहते हैं लेकिन कुछ स्पष्ट नियम न होने की वजह से पेंडिंग केस लगातार बढ़ रहे है आमतौर पर न्यायालय व सरकार धार्मिक मामलों मे हस्तक्षेप करने से स्वयं को दूर रखती है लेकिन अब आधुनिक दौर मे जरूरी है कि सभी को नियम ,कानून का ज्ञान हो किसी के साथ धर्म,जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव न हो
"UCC किसी एक वर्ग के लिए नही वरन सबके लिए है सभी धर्मों मे कुछ अच्छी बाते हैं तो कुछ कुरीतियां भी है सभी से अच्छी चीजों को लेकर एक बेहतर कानून बनाया जा सकता है यूनिफॉर्म सिविल कोड मे सभी का ध्यान रखा जाए तो इसके कोई नुकसान नही ,हां इससे कुछ विशेषाधिकार जरुर खत्म होंगे जैसे हिंदुओं मे HUF खत्म हो जाएगा इससे जो टैक्स छूट मिलती थी वो खत्म हो जाएगी,कुल मिलाकर यह देश के हित में है। "विधि आयोग द्वारा सभी से राय मांगी गई है आप भी अपनी राय दे,सभी सहयोग करेंगे तो एक बेहतर कानून बनकर तैयार होगा,सिर्फ किसी के बोलने से इसका विरोध करने के बजाय इसे पहले समझें फिर अपनी राय बनाएं
जय हिंद,जय भारत
#UniformCivilCode #समाननागरिकसंहिता #uniform
05:14 am | Adminnice info
Very good information
We need UCC
Definitely UCC is the Need of the Hour
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