1857 कि कांति और छत्तीसगढ़
1.सोनाखान का विद्रोह 1857
⇒ लगभग 1500 ई. में छ.ग. के कल्चुरी वंश के शासक 'बाहरेन्द्र / बाहरसाय' जिनका सेना में 'बिस्सैया ठाकुर' नामक व्यक्ति कार्य करते थे, बिस्सैया ठाकुर कि सेवा से प्रसन्न होकर बाहरेन्द्र साय ने सोनाखान का क्षेत्र बिस्सैया ठाकुर को दे दिया। तब से लेकर ब्रिटिश काल के प्रारंभ तक सोनाखान कि जमीदारी पूर्ण रूप से कर मुक्त थी ।
•वीर नारायण सिंह के पिता रामराय जब इस क्षेत्र में जमीदार बने तो वह खालसा क्षेत्र कि भूमि भी हड़पने लगे, ब्रिटिश अधीक्षक 'एग्नयू' ने रामराय से संधि कि और उनके द्वारा हड़पी गयी खालसा भूमि को भी प्राप्त किया ।
•वीर नारायण सिंह 1830 में सोनाखान के जमीदार बने ।
•1856 में जब सोनाखान क्षेत्र में अकाल पड़ा तब वीरनारायण सिंह ने खरौद के 'माखन बनिया' को उनके गोदाम में पड़े अनाज को जनता में बॉटने को कहा, परंतु जब वह नही माने तो उन्होंने माखन बनिया के गोदाम को लूटकर अनाज जनता में बाँट दिया ।
माखन बनिया ने इसकी सूचना डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स इलियट को दी, और उनके निर्देशानुसार रायपुर जेल के प्रमुख 'स्मिथ' ने वीरनारायण सिंह को गिरफ्तार कर सम्बलपुर से रायपुर लाया गया ।
जब इस क्षेत्र में 1857 कि कांति आयी तो वीरनारायण सिंह अपने तीन साथियों के साथ रायपुर जेल में
सुरंग बनाकर 28 अगस्त 1857 (दस माह 04 दिन) रायपुर जेल से फरार हो गये ।
और सोनाखान पहुंचकर स्थानीय लोगों को इकट्ठा कर एक सैनिक टुकड़ी बनाने का प्रयास किया ।
रायपुर जेल के प्रमुख स्मिथ अपने सहायक 'नेपियर' के साथ सोनाखान कि ओर बढ़े जिसमे उनका साथ देवरी के जमीदार 'महाराज साय' ने दिया ।
नोट :- अन्य जमीदारी जिसने स्मिथ का साथ दिया :- बिलईगढ़, कटंगी व भटगांव, देवरी ।
01 दिसबंर 1857 को स्मिथ सोनाखान पहुँचे ।
02 दिसबंर 1857 को वीरनारायण सिंह ने स्मिथ के सामने आत्मसर्मपण किया ।
05 दिसबंर 1857 को चार्ल्स इलियट कि अदालत में वीर नारायण सिंह को प्रस्तुत किया गया जहाँ उन्हे फॉसी कि सजा सुनायी गयी ।
10 दिसबंर 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक में वीरनारायण सिंह को फॉसी पर लटकाया गया और उनके मृत शरीर को तोप से उड़ा दिया गया ।
1857 कि कांति का प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह को ही माना जाता है ।
देवरी के जमीदार को अंग्रेजो का साथ देने के कारण सोनाखान कि जमीदारी उपहार स्वरूप दे दी गयी ।
नोट :- रायपुर डाकघर के प्रमुख स्मिथ ही थे । वीरनारायण सिंह बिंझवार जनजाति के थे
2.रायपुर का सैन्य विद्रोह (1858)
⇒ रायपुर की विशेष स्थिति को देखते हुए नागपुर से एक सैनिक टुकड़ी रायपुर बुलायी गयी, जिसमें 'हनुमान सिंह' भी भाामिल थे ।
> हनुमान सिंह ने अंग्रेजो का विरोध सिर्फ इसलिए किया क्योंकि वे विदेशी थे ।
> 18 जनवरी 1858 को हनुमान सिंह ने चाकू के 09 वार से सैन्य अधिकारी 'मेजर सिडवेल' कि हत्या कर दी ।
> 20 जनवरी 1858 को उन्होने छ.ग. के डिप्टी कमिश्नर 'चार्ल्स इलियट' की भी हत्या का प्रयास किया, परंतु उनके कमरे का दरवाजा मजबूत होने के कारण व सैन्य पहरा होने के कारण वह इलियट को मार नही सके ।
> 18 जनवरी 1858 को जिन सैनिको ने मेजर सिडवेल कि हत्या करने में हनुमान सिंह का साथ दिया उन्हे फांसी कि सजा सुनायी गयी ।
सैनिको के नाम :- गाजी खॉ, अब्दुल खॉ, पन्ना लाल, दुर्गा प्रसाद ।
> हनुमान सिंह को छ.ग. का मंगल पाण्डे भी कहा जाता है ।
12:43 pm | Admin
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