मंदिर निर्माण की बेसर शैली
⇒ इस शैली के मंदिर विंध्याचल पर्वत से लेकर कृष्णा नदी तक पाए जाते हैं। नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहते हैं।
• कई इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि वेसर शैली की उत्पत्ति आज के कर्नाटक में हुई थी।
• माना जाता है कि वेसार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द विश्रा से हुई है जिसका अर्थ है लंबी सैर करने वाला क्षेत्र।
⇒बेसर शैली के मंदिरों का आकार आधार से शिखर तक गोलाकार (वृत्ताकार) या अर्द्ध गोलाकार होता है।
• इस शैली में संरचनाओं को बारीक रूप से तैयार किया गया है, आकृतियों को बहुत अधिक सजाया गया है और अच्छी तरह से पॉलिश किया गया है।
• इसमें द्रविड़ शैली के अनुरूप विमान होते हैं पर ये विमान एक-दूसरे से द्रविड़ शैली की तुलना में कम दूरी पर होते हैं जिसके फलस्वरूप मंदिर की ऊँचाई कुछ कम रहती है।
• विमान शिखर छोटा, फ़ैले कलश, मूर्तियों का आधिक्य, अलंकरण परम्परा का बाहुल्य ही इनकी विशेषता है।
• इस शैली की शुरुआत बादामी के चालुक्यों (500-753AD) द्वारा की गई थी, जिन्होंने इस शैली में मंदिरों का निर्माण किया था।
• इसे चालुक्य शैली भी कहा जाता है। होयसल के अंतर्गत यह शैली अपने उच्चतम स्तर पर पहुंची।
• बेलूर, हलेबिदु और सोमनाथपुरा के होयसला मंदिर इस शैली के प्रमुख उदाहरण हैं।
• होयलेश्वर मंदिर, विजयेश्वर मंदिर, विरूपाक्ष मंदिर, कल्लेश्वर मंदिर, कुक्कनूर; रामलिंगेश्वर मंदिर, गुडूर; महादेव मंदिर, इट्टागी: काशीविश्वेश्वर मंदिर आदि इस शैली के अन्य उदाहरण हैं।
12:27 pm | Adminनेहरू युग: आधुनिक भारत के निर्माण में योगदान व्यक्तिगत जीवन- नेहरू का व्यक्तिगत जीवन बेहद गरिमापूर्ण था। उनका जन्म 14 नवम्बर 1889 ...
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