Indus Valley Civilization PART 2

0204,2024

सिन्धु घाटी सभ्यता 

राजनीतिक जीवन : -

⇒लगभग 13 लाख वर्ग किमी में फैली हड़प्पा सभ्यता 700 वर्षों तक निरंतर कायम रही। इस तथ्य से यह स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता में कोई न कोई शासन प्रणाली अवश्य रही होगी, किन्तु हड़प्पा सभ्यता में शासन प्रणाली का स्वरूप क्या था? यह विद्वानों के बीच विवाद का विषय है।

कुछ विद्वानों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता के अलग-अलग नगरों में अलग-अलग राजनीतिक संगठन रहा होगा। किन्तु हमें हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों की बसावट, भवनों, सड़कों, मुहरों, मृदभाण्डों एवं लिपि में प्रायः एकरूपता दिखाई देती है। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों में अलग-अलग शासक नहीं, बल्कि सम्पूर्ण हड़प्पा सभ्यता का कोई एक ही केन्द्रीय शासक रहा होगा।

हड़प्पा सभ्यता की राजनीतिक प्रणाली के सम्बन्ध में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं, जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-

1) मार्टीमर व्हीलर, स्टुअर्ड पिग्गट, ए. एल. बाशम तथा क्रेमर के अनुसार हड़प्पा सभ्यता में मेसोपोटामिया तथा मिस्र के समान पुरोहितों का शासन था। स्टुअर्ट पिग्गट के अनुसार "हड़प्पाई राज्य एक केन्द्रीकृत साम्राज्य था, जो निरंकुश पुरोहित वर्ग द्वारा संचालित था।" स्टुअर्ट पिग्गट ने मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा को इस विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां कहा है। उसी प्रकार ए. एल. बाशम ने इस मत के समर्थन में मोहनजोदड़ो से प्राप्त प्रस्तर मूर्ति, सभागार तथा बलूचिस्तान से प्राप्त टीलों की ओर संकेत किया है। उन्होंने प्रस्तर मूर्ति को पुरोहित की मूर्ति, सभागार को पुरोहित आवास तथा टीलों को मंदिरों के रूप में बताने का प्रयास किया है। किन्तु आधुनिक अनुसंधानों से यह स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। अतः वर्तमान में इस मत को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है।

2) हण्टर महोदय के अनुसार हड़प्पा सभ्यता में जनतांत्रिक पद्धति रही होगी।

3) अर्नेस्ट मैके के अनुसार हड़प्पा सभ्यता में जनप्रतिनिधियों का शासन रहा होगा।

4) पोसैल ने हड़प्पा सभ्यता में नगर परिषद् (नगर पालिका) का शासन स्वीकार किया है।

5) डॉ. आर. एस. शर्मा के अनुसार हड़प्पा सभ्यता में वणिक वर्ग का शासन रहा होगा।

 निष्कर्ष

उपर्युक्त सभी मतों में डॉ. आर. एस. शर्मा का मत सर्वाधिक तार्किक प्रतीत होता है। वस्तुतः हड़प्पा सभ्यता अपने नगरीकरण के लिए प्रसिद्ध थी तथा यहाँ के नगरीकरण का प्रमुख आधार उन्नत वाणिज्य-व्यापार था। अतः वाणिज्य व्यापार की उन्नति में वणिक वर्ग की शासन में महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी। फिर भी हड़प्पा सभ्यता की राजनीतिक प्रणाली के सम्बन्ध में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने हेतु अभी और भी पुरातात्विक खोजों एवं अनुसंधानों की आवश्यकता है।

सामाजिक जीवन : -

यद्यपि साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में हड़प्पा सभ्यता के सामाजिक जीवन के विषय में जानना अत्यधिक दुष्कर कार्य है। फिर भी उपलब्ध पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर हड़प्पा सभ्यता के सामाजिक जीवन की विशेषताओं को निम्नलिखित विन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-

1) हड़प्पाई समाज समतामूलक समाज था। समाज में छुआछूत एवं जाति-प्रथा के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।

2) सम्पूर्ण समाज 04 वर्षों विद्वान, योद्धा, व्यापारी एवं श्रमिक में विभाजित था।

3) हड़प्पाई समाज एक बहुप्रजातीय समाज था, जिसमें प्रोटोआस्ट्रेलायड, भू-मध्यसागरीय, मंगोलायड एवं अलपाइन प्रजाति के लोग निवास करते थे।

4) समाज में वर्गीय विभाजन के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं। प्रायः शासक वर्ग पश्चिम दिशा में स्थित दुर्ग में, जबकि आम जनता पूर्व दिशा में स्थिति निचले शहर में निवास करती थी। लोथल से 13 कमरों का मकान प्राप्त हुआ है, जो कि संभवतः किसी धनी व्यापारी का रहा होगा। उसी प्रकार हड़प्पा से श्रमिक आवास के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

5) हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्त्री मृण्मूर्तियों की अत्यधिक संख्या के आधार पर माना जाता है कि हड़प्पाई समाज मातृसत्तात्मक समाज था। समाज में स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी। हड़प्पा सभ्यता में बाल विवाह एवं पर्दा प्रथा के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।

6) हड़प्पाई समाज उपयोगितावादी समाज था। समाज में प्रदर्शन व दिखावे की बजाय जरूरत एवं उपयोगिता को अधिक महत्व दिया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के भवनों के दरवाजों व दीवारों में किसी प्रकार की कलाकारी दिखाई नहीं देती है। यद्यपि कुछ स्थलों से सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुएं, जैसे चहून्दड़ो से लिपिस्टिक, इत्र व काजल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, किन्तु यह तथ्य मेसोपोटामियाई प्रभाव को ही दर्शाता है।

7) हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त लिपि एवं मानक माप-तौल के पैमाने के साक्ष्य इस बात की ओर संकेत करते हैं कि हड़प्पाई समाज सुशिक्षित समाज था।

8) हड़प्पाई समाज को एक शांति-प्रिय समाज के रूप में स्वीकार किया जाता है, क्योंकि इस सभ्यता से आक्रामक अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति बहुत कम हुई है। साथ ही हड़प्पा सभ्यता में दुर्गों का अत्यधिक महत्व था। इससे यह प्रमाणित होता है कि इस सभ्यता के निवासी आक्रमण की बजाय सुरक्षा को अधिक महत्व देते थे।

9) हड़प्पा सभ्यता के निवासी शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों

10) इस सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन शिकार करना, मछली पकड़ना, पशु-पक्षियों को लड़ाना, चौपड़ व पांसा खेलना, ढोल व वीणा बजाना, नृत्य व संगीत का आनन्द लेना आदि थे।

 निष्कर्ष

इस प्रकार हम देखते हैं कि बहुवर्षीय, बहुवर्गीय एवं बहुप्रजातीय समाज होने के बावजूद भी हड़प्पाई समाज में वर्तमान समाज की कई बुराइयां एवं कुरूतियां, जैसे छुआछूत, जाति-भेद, लिंग भेद आदि का अभाव था। इस रूप में हड़प्पाई समाज वर्तमान समाज के समक्ष एक समतामूलक समाज का आदर्श प्रस्तुत करता है।

आर्थिक जीवन

 कृषि

हड़प्पा सभ्यता नदियों के आस-पास विकसित हुई थी। अतः यहाँ की कृषि विकसित अवस्था में थी। कृषि अधिशेष को अन्नागारों में सुरक्षित रखा जाता था, जो कृषि के विकसित होने का प्रमाण है। अन्नागार के साक्ष्य मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा एवं लोथल से प्राप्त होते हैं।

कृषि कार्य में पत्थर, ताँबे तथा काँसे के उपकरणों का प्रयोग होता था। खेतों की जुताई प्रायः हल से की जाती थी। कालीबंगा से जुते हुए खेत का साक्ष्य तथा बनावली से मिट्टी के हल का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। सिंचाई हेतु बांधों का निर्माण किया जाता था। मोहनजोदड़ो में निर्मित बांध सबसे विशाल था। मोहनजोदड़ो के घरों से कुंओं के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं। नहर सिंचाई के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं।

हड़प्पा सभ्यता में सामान्यतः फसलें नवम्बर में बोई तथा अप्रैल में काटी जाती थीं। फसलों में गेहूं की 03, जौ की 02 प्रजाति के साक्ष्य मिले हैं। इसके अतिरिक्त मटर, राई, तिल, चना, सरसो, तरबूज, खरबूज आदि की खेती भी की जाती थी, किन्तु दाल एवं ईख के साक्ष्य नहीं मिले हैं। चावल की खेती गुजरात तथा संभवतः राजस्थान में होती थी। लोथल एवं रंगपुर से मृण्मूर्ति में धान की भूसी लिपटी मिली है। रागी की फसल उत्तर भारत के किसी भी स्थल से प्राप्त नहीं हुई है। मेहरगढ़ से कपास की कृषि के विश्व के प्राचीनतम् साक्ष्य

 पशुपालन

प्राप्त होते हैं। हड़प्पा सभ्यता में पशुपालन का भी महत्व था। मुख्यतः कूबड़ वाले सांड, बिना कूबड़ वाले बैल, भैंस, गाय, भेड़, बकरी, कुत्ते,

गधे, खच्चर, सुअर आदि पशुओं को पालतू बनाया जाता था। गुजरात के लोग हाथी पालते थे। लोथल से हाथी दाँत का स्केल प्राप्त हुआ है। कालीबंगा से ऊँट की हड्डियां, राणाघुंडई से घोड़े के दाँत, सुरकोटदा से घोड़े की अस्थियां व मोहनजोदड़ो से घोड़े की मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। हड़प्पा सभ्यता में घोड़ा, शेर, बाघ आदि को पालतू नहीं बनाया जाता था।

शिल्प एवं उद्योग

हड़प्पा सभ्यता में शिल्प एवं उद्योग विकसित अवस्था में थे। सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्त्र उद्योग था। सूती तथा ऊनी वस्त्रों का प्रचलन था। मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्र का साक्ष्य प्राप्त होता है। शिल्प उद्योग में शंख, सीप, हाथी दाँत, गोमेद, फिरोजा, सेलखड़ी, मिट्टी, धातु

तथा प्रस्तर की वस्तुएं बनाई जाती थीं। इनसे न केवल बर्तन एवं मृदभाण्ड, बल्कि मनके तथा मुहरें भी बनाई जाती थीं।

वाणिज्य-व्यापार

हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः वाणिज्य-व्यापार पर आधारित थी। आंतरिक व्यापार हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों एवं राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि के मध्य होता था, जबकि बाह्य व्यापार मुख्यतः मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान, फारस की खाड़ी आदि से होता था।

पुरातात्विक साक्ष्यों से भी बाह्य व्यापार की पुष्टि होती है। उदाहरणार्थ हड़प्पाकालीन मुहरें मेसोपोटामिया तथा फारस की खाड़ी से प्राप्त हुई हैं। उसी प्रकार मोहनजोदड़ो से मेसोपोटामिया की एक बड़ी बेलनाकार मुहर तथा लोथल से फारस की खाड़ी की छोटी बेलनाकार मुहर प्राप्त हुई है।

मेसोपोटामिया स्थित अक्काड़ के प्रसिद्ध सम्राट सारगौन के अभिलेख (2350 ई. पू.) से भी बाह्य व्यापार की पुष्टि होती है। इस अभिलेख में उल्लेखित है कि मेसोपोटामिया का व्यापार दिलबन (बहरीन), माकन (मकरान अर्थात् बलूचिस्तान) तथा मेलूहा (हड़प्पा

सभ्यता) से होता था।

बाह्य व्यापार में रोजनामचे की वस्तुओं की जगह मुख्यतः समृद्ध लोगों की विलासिता सम्बन्धी वस्तुओं को शामिल किया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के किसी भी स्थल से मेसोपोटामिया की वस्तुओं का न पाया जाना इस बात का संकेत है कि मेसोपोटामिया से मुख्यतः कपड़े, ऊन, खुशबूदार तेल तथा चमड़े का आयात किया जाता था। चूंकि ये वस्तुएं जल्दी नष्ट हो जाती थीं, अतः ये वस्तुएं हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त नहीं होती हैं।

यातायात संचार व्यवस्था

वाणिज्य-व्यापार स्थल तथा जल दोनों मार्गों से किया जाता था। आंतरिक व्यापार में मुख्यतः इक्कागाड़ी व बैलगाड़ी, जबकि बाह्य व्यापार में नावों का उपयोग किया जाता था। हड़प्पा व चन्हूदडो से काँसे की इक्कागाड़ी का साक्ष्य, लोथल से पक्की मिट्टी की नाव तथा मोहनजोदड़ो से मुहर में अंकित नाव का साक्ष्य प्राप्त होता है।

बाह्य व्यापार में बंदरगाहों का प्रमुख स्थान था। गुजरात स्थित लोथल, रंगपुर, प्रभासपाटन तथा बलूचिस्तान स्थित सुत्कांगेडोर, सुत्काकोह, बालाकोट, अल्लाहदिनो आदि महत्वपूर्ण बंदरगाह थे। हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण बंदरगाह लोथल था, जो एक ज्वारीय बंदरगाह था।

माप-तौल के पैमाने

वाणिज्य-व्यापार में माप-तौल के पैमानों में सीप के बाँट तथा हाथी दाँत के स्केल का प्रयोग किया जाता था। मोहनजोदड़ो से सीप का बाँट तथा लोथल से हाथी दाँत का स्केल प्राप्त हुआ है। गणना में मुख्यतः 16 की संख्या तथा उसके गुणक का प्रयोग किया जाता था।

 मुद्रा व्यवस्था

हड़प्पा सभ्यता का वाणिज्य व्यापार मुख्यतः वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था। हालांकि इस सभ्यता में हमें अत्यधिक संख्या में मुहरों के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि वस्तु विनिमय प्रणाली के अतिरिक्त छोटे स्तर पर मुहरों का प्रयोग मुद्राओं के रूप में भी किया जाता रहा होगा।

नगरीकरण

हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था विकसित अवस्था में थी। यही कारण है कि इस सभ्यता के अन्तर्गत कई नगरों का विकास हुआ था, जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धौलावीरा, राखीगढ़ी, लोथल, कालीबंगा आदि।

निष्कर्ष

इस प्रकार भारत की प्रथम नगरीकृत सभ्यता का प्रमुख आधार उसकी आर्थिक सम्पन्नता थी, जबकि इस आर्थिक सम्पन्नता का आधार उन्नत कृषि, पशुपालन एवं विकसित वाणिज्य-व्यापार था।

12:50 pm | Admin


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