What happened in Jallianwala Bagh 1919?

1304,2024

जलियाँवाला बाग हत्याकांड क्या है ?

⇒ रॉलेट एक्ट के तहत पंजाब में दो प्रसिद्ध नेताओं डॉक्टर सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। इनकी गिरफ्तारी के विरोध में कई प्रदर्शन और रैलियां निकाली गई। विरोध प्रदर्शन के चलते ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर सभी सार्वजनिक सभाओं और रैलियों पर रोक लगा दी गई। तथा 13 अप्रैल, 1919 बैशाखी का दिन सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी तथा रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए जलियाँवाला बाग (अमृतसर) में लगभग 10,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हुई। ब्रिगेडियर जनरल डायर ने अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचकर सभा को घेर लिया और वहाँ से बाहर जाने के एकमात्र मार्ग को अवरुद्ध कर अपने सिपाहियों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस हत्याकांड में लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 लोग घायल हुए। इतिहास में यह घटना जलियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से प्रसिद्ध है |

जलियाँवाला बाग हत्याकांड का विरोध

  •  जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि को त्याग दिया।
  • महात्मा गांधी ने कैसर-ए-हिंद की उपाधि वापस कर दी, जिसे बोअर युद्ध के दौरान अंग्रेज़ों द्वारा दिया गया था।
  •  वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के भारतीय सदस्य शंकर नायर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में कार्यकारिणी परिषद् से इस्तीफा दे दिया।

⇒ भारत सरकार ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने के लिए डिसऑर्डर इन्क्वायरी कमेटी के गठन की घोषणा की गई

  •  14 अक्तूबर, 1919 को
  • कमेटी में भारतीय सदस्य भी शामिल थे।
  •  इस समिति के अध्यक्ष लॉर्ड विलियम हंटर थे (हंटर कमीशन)

हंटर कमीशन द्वारा मार्च, 1920 में प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट

  •  समिति ने सर्वसम्मति से जनरल डायर के कृत्यों की निंदा की
  •  जनरल डायर को अपने पद से इस्तीफा देने का निर्देश दिया।
  • इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई, परन्तु 'ब्रिटिश हाउस ऑफ़ लाडर्स' में जनरल डायर की प्रशंसा की गई।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने के लिए अपनी गैर-आधिकारिक समिति नियुक्त की थी। समिति में मोतीलाल नेहरू, सीआर दास, अब्बास तैयब जी, एम.आर. जयकर और महात्मा गांधी को शामिल थे।

रॉलेट एक्टः एक नजर

  •  यह एक्ट 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया।
  • उद्देश्य : भारतीयों को स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार से वंचित करना तथा औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध भारतीयों के विरोध प्रदर्शन को रोकना
  • यह कानून सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था।
  •  एक्ट का मूल नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 था।
  •  इस एक्ट के अनुसार, ब्रिटिश सरकार के पास यह शक्ति थी कि वह बिना ट्रायल चलाए किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल में डाल सकती थी।
  • इसके अंतर्गत राजद्रोह के मुकद्दमे की सुनवाई के लिए एक अलग न्यायालय स्थापित किया गया। मुकद्दमे के फैसले के बाद किसी उच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं दिया गया था।

01:07 am | Admin


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