भारतीय राष्ट्रवाद
⇒19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में राष्ट्रीय चेतना विकसित हुई। इस राष्ट्रीय चेतना से उपजे राष्ट्रीय आन्दोलन से ही अन्ततः भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। भारत में राष्ट्रवाद का उदय किसी एक कारण या परिस्थिति से उत्पन्न न होकर विभिन्न कारकों का सम्मिलित प्रतिफल था। प्रारंभिक रूप से राष्ट्रवाद ब्रिटिश शासन की चुनौती के रूप में उभरा। स्वयं ब्रिटिश शासन की परिस्थितियों ने भारतीय जनता में राष्ट्रीय भावना विकसित करने में सहायता की।
भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव के कारण : -
1) राजनीतिक एवं प्रशासनिक एकीकरण : - भारत में ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत कार्यपालिका, संगठित न्यायपालिका तथा संहिताबद्ध फौजदारी एवं दीवानी कानूनों को लागू किया गया, इसके साथ ही रेल, डाक-तार की व्यवस्था ने भी एकीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कार्य ने भारत की परम्परागत सांस्कृतिक एकता को एक नये प्रकार की राजनीतिक एकता प्रदान की।
2) आर्थिक शोषण : - राष्ट्रीयता के उदय में आर्थिक कारणों का भी महत्वपूर्ण योगदान था। अंग्रेजों की निरंतर आर्थिक शोषण की नीतियों ने जनसाधारण को अत्यधिक प्रभावित किया। मुक्त व्यापार की अंग्रेजों की नीति ने भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को नष्ट कर दिया तथा कृषि के वाणिज्यिक एवं भूमि बंदोबस्त व्यवस्था ने लाखों लोगों को भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया। ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति से भारत में अकाल, शिल्प उद्योगों का पतन, धन निष्कासन जैसी आर्थिक समस्याओं का जन्म हुआ। ब्रिटिश आर्थिक शोषण के कारण कृषक, जमींदार, मजदूर, पूंजीपति, बुद्धिजीवी वर्गों में तीव्र असंतोष था।
3) नस्लीय भेदभाव की नीति : - अंग्रेज स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे तथा भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव को अपनाया जाता था। इस प्रजातीय विभेद की नीति से भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा तथा एकता व राष्ट्रीयता की भावना ने जन्म लिया।
4) सामाजिक-धार्मिक सुधार आन्दोलन : - राष्ट्रीय चेतना की उत्पत्ति में सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों का विशेष महत्व है। राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द आदि ने भारतीय धर्म एवं संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया तथा आम जनता को यह बताया कि हमें पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। इन सुधार आन्दोलनों ने भारतीयों में आत्म सम्मान, गौरव एवं राष्ट्रीयता की भावना विकसित की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने स्वदेशी राज्य को सर्वोपरि एवं सर्वोत्तम बताया तथा 'भारत भारतीयों के लिए है' का नारा दिया।
5) आधुनिक शिक्षा : - अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार स्वार्थवश किया था, किन्तु 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी शिक्षा व पाश्चात् विचारधारा ने भारतीयों को तर्कसंगत एवं विवेकपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान किया। भारतीय भी अब स्वतंत्रता, समानता, प्रतिनिधित्व जैसे सिद्धान्तों का महत्व समझने लगे। अमेरिका, फ्रांस की क्रान्ति तथा मिल्टन, शैली, वाईरन, वाल्टेयर, रूसो, मेजिनी आदि विद्वानों के विचारों ने भारतीयों में राष्ट्रवादी तत्व को जन्म दिया।
6) प्रेस एवं साहित्य : - भारतीयों में राष्ट्रीयता एवं एकता की भावना जगाने में अमृत बाजार पत्रिका, हिन्दू पैट्रियट, इंडियन मिरर, बंगाल, राफ्गोफ्तार, मराठा, केसरी आदि समाचार पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। प्रेस ने आधुनिक विचारों एवं व्यवस्था जैसे स्वशासन, लोकतंत्र, अधिकार एवं औद्योगीकरण आदि के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में विभिन्न प्रकार के साहित्य जैसे कविताओं, निबंधों, कथाओं, उपन्यासों एवं गीतों से लोगों में देशभक्ति तथा राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत हुई। हिन्दी में भारतेंदु हरिशचंद्र, बांग्ला में रवीन्द्रनाथ टैगोर, राजा राममोहन राय, बंकिमचंद्र चटर्जी, मराठी में विष्णु शास्त्री चिपलूणकर, असमिया में लक्ष्मीनाथ बेजबरूआ आदि उस काल के प्रख्यात राष्ट्रवादी साहित्यकार थे।
7) मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का उत्थान : - अंग्रेजों की प्रशासनिक तथा आर्थिक प्रक्रिया से एक मध्यवर्गीय नागरिकों की श्रेणी उत्पन्न हुई। यह नवीन श्रेणी अपनी शिक्षा, समाज में उच्च स्थान तथा प्रशासक वर्ग के समीप होने के कारण आगे आ गई। यह मध्यवर्ग भारत की नवीन आत्मा बन गया तथा इसने समस्त देश में नई शक्ति का संचार किया। इसी वर्ग ने राष्ट्रीय आन्दोलन को उसके सभी चरणों में नेतृत्व प्रदान किया।
8) समकालीन घटनाओं का विश्वव्यापी प्रभाव : - दक्षिण अमेरिका में स्पेनी एवं पुर्तगाली उपनिवेशी शासन की समाप्ति से अनेक नये राष्ट्रों का उदय हुआ। इसके अतिरिक्त यूनान एवं इटली के स्वतंत्रता आन्दोलनों एवं आयरलैण्ड की घटनाओं ने भारतीयों को अत्यंत प्रभावित किया।
9) लॉर्ड लिटन की नीति : - लिटन की प्रतिक्रियावादी नीति जैसे वर्नाक्लूयर प्रेस एक्ट (1878 ई.), आर्म्स एक्ट (1878 ई.), द्वितीय अफगान युद्ध, भारतीय खर्च पर दिल्ली दरबार का आयोजन (1877 ई.), आईसीएस परीक्षा की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करना आदि ने राष्ट्रीयता के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।
10) इल्बर्ट बिल विवाद (1883-1884 ई.) : - वायसराय रिपन के समय पारित इल्बर्ट बिल में जनपद सेवा के भारतीय जिला व सत्र न्यायाधीशों को भी यूरोपीय न्यायाधीशों के बराबर शक्तियां प्रदान कर दी गई थीं, किन्तु यूरोपीय लोगों की प्रतिक्रियास्वरूप इस बिल को रद्द करना पड़ा। इससे भारतीय यह समझ गए कि जहां यूरोपीय लोगों के विशेषाधिकार का प्रश्न होगा, वहां उन्हें न्याय नहीं मिल सका। इस घटना ने भी राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया।
11) राजनीतिक संस्थाओं का योगदान : - लैण्ड होल्डर सोसायटी (1838 ई.), इंडियन एसोसिएशन (1876 ई.), बंबई प्रेसिडेंसी एसोसिएशन (1885 ई.), मद्रास महाजन सभा (1884 ई.) आदि राजनीतिक संगठनों ने भी ब्रिटिश नीतियों का विरोध कर भारतीयों में राष्ट्रीय भावना के विकास में योगदान दिया।
निष्कर्ष : - इस प्रकार उपर्युक्त समस्त कारणों से भारतीयों में राष्ट्रवाद का विकास हुआ। इस राष्ट्रवाद की सर्वोच्च अभिव्यक्ति कांग्रेस की स्थापना एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के रूप में हुई। आगे कांग्रेस के नेतृत्व में चलाए गए राष्ट्रीय आन्दोलन के परिणामस्वरूप ही भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
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