क्या है लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति ?
⇒हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि इस्लाम का पालन करने वाला कोई भी शादीशुदा व्यक्ति लिव इन रिलेशनशिप में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता
मामला क्या है?
- स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब खान द्वारा रिट याचिका दायर किया गया |
- महिला के परिजनों ने शादाब खान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है कि उसने उनकी बेटी को अगवा कर उससे शादी कर ली
- स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब ने अदालत को बताया था कि वे वयस्क हैं और लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं
- उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) केतहत पुलिस कार्रवाई से सुरक्षा मांगी है।
- शादाब खान पहले से शादीशुदा है उसकी 2020 में फरीदा खातून नाम की महिला से शादी हुई थी
अदालत ने क्या कहा?
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप में अधिकारों का दावा नहीं कर सकता है जब उसका जीवनसाथी जीवित हो।
- अदालत ने इस रिश्ते को इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बताया।
- अदालत के अनुसार वैवाहिक संस्थानों के मामले में संवैधानिक नैतिकता और सामाजिक नैतिकता में संतुलन बनाने की जरूरत है
- उच्च न्यायालय ने उनकी पुलिस कार्रवाई से सुरक्षा की मांग अस्वीकृत कर दी और स्नेहा देवी को उसके माता-पिता के पास भेजने का निर्देश दिया
लिव-इन रिलेशनशिप
- जब कोई कपल शादी किए बिना एक ही घर में पति पत्नी की तरह रहता है तो इस रिश्ते को लिव-इन रिलेशनशिप कहते हैं।
- कोई शादीशुदा व्यक्ति तलाक लिए बिना लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता।
भारत में 'लिव-इन रिलेशनशिप' की कानूनी स्थिति ?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार दो बालिग लोगों को शादी करने के बाद या बिना शादी किए एक साथ रहने का अधिकार
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा-125 के तहत शादीशुदा महिलाओं को भरण- पोषण का अधिकार
- इसके अंतर्गत लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को भी भरण-पोषण का अधिकार
लिव-इन रिलेशनशिप पर अदालत की राय
- वर्ष 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसॉलिडेशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को वैध माना था
- वर्ष 2001 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस में कहा: कि किसी महिला और पुरुष का बिना शादी किए एक साथ रहना गैरकानूनी नहीं है।
- वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने लता सिंह बनाम यूपी राज्य मामले में कहा: कि विपरीत लिंग के दो शख्स अगर एक साथ रह रहे हैं तो ये गैरकानूनी या अपराध नहीं है।
- वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने डी वेलुस्वामी बनाम डी पचैअम्मल मामला - 'लिव-इन रिलेशनशिप' को 'घरेलू संबंध' का दर्जा दिया
- लिव-इन पार्टनर्स भी पति-पत्नी की तरह एक-दूसरे के खिलाफ घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज कर सकते हैं
- सिर्फ ऐसे 'लिव-इन रिलेशनशिप' संबंधों को ही 'घरेलू संबंध' का दर्जा जहां दो अविवाहित और अलग-अलग लिंग के लोगों के बीच रिश्ता हो
- LGBTQ समुदाय या शादी के बावजूद किसी और के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों पर यह निर्णय लागू नहीं
- सुप्रीम कोर्ट ने बालसुब्रमण्यम बनाम सुरत्तयन मामले में लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे को पहली बार वैधता
- कोई महिला या पुरुष काफी सालों तक साथ रहते हैं, तो एविडेंस एक्ट की धारा- 114 के तहत इसे शादी माना जाएगा।
- ऐसे संबंधों में पैदा हुए बच्चे को वैधता और पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त होगा
- वर्ष 2013 में, इंद्रा सरमा बनाम वीकेवी सरमा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि लिव-इन रिलेशनशिप में महिला साथी को घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (PWDV), 2005 के तहत संरक्षण का अधिकार है
- लिव-इन रिलेशनशिप, PWDV अधिनियम, 2005 की धारा 2 (F) के अंतर्गत आता है PWDV अधिनियम, 2005 की धारा 2 (F) घरेलू रिश्ते को परिभाषित करती है
- अजय भारद्वाज बनाम ज्योत्सना मामले में वर्ष 2016 के पंजाब उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं गुजारा भत्ता पाने की पात्र हैं
12:14 pm | Admin