गोथिक वास्तुकला
⇒गोथिक कला से अभिप्राय तिकोने मेहराबों वाली यूरोपीय शैली से है, जिससे इमारत के विशाल होने का आभास होता है।यह मध्ययुगीन यूरोपीय वास्तु की एक शैली थी।
इस शैली का बोलबाला प्रायः 12वीं से 15वीं सदी तक बना रहा और अंत में पुनर्जागरण काल में इसका स्थान क्लासिकल शैली ने ले लिया।
* यह शैली ब्रिटिशों के शासनकाल के दौरान यूरोप से भारत आई।
* इसे विक्टोरियन शैली भी कहा जाता है।
* भारत में इंडो-गोथिक शैली का विकास हुआ जोकि हिन्दुस्तानी, फारसी और गोथिक शैलियों का शानदार मिश्रण है।
* इंडो-गोथिक शैली की दीवारें बहुत पतली होती हैं। इस शैली में मेहराबें नुकीली होती थी।
* इस शैली की सबसे शानदार विशेषताओं में एक है, मकान में बड़ी- बड़ी खिड़कियों का होना।
* यह ब्रिटेन के उन्नत संरचनात्मक इंजीनियरिंग मानक का पालन करने वाली शैली है।
* पहली बार इसी शैली में मकान निर्माण में स्टील, लोहा और कंक्रीट-गारे का इस्तेमाल शुरू हुआ।
* छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस और मुंबई के विक्टोरियन और आर्ट डेको एन्सेम्बल को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
01:17 am | Adminएस. नंबी नारायणन का जन्म 12 दिसंबर 1941 को एक तमिल फैमिली में हुआ। उन्होंने नागरकोल के डीवीडी स्कूल से अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी की...
0भारत में दयामृत्यु की अवधारणा ⇒ यह अनुच्छेद 21 से सम्बन्धित मुद्दा है जिसको सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णय के माध्यम से समझेंगे |...
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