Diffrence between Constitution and Polity

2110,2023

संविधान और राज्यव्यवस्था में अंतर  

⇒दोस्तों आपके पाठ्यक्रम में संविधान और राज्यव्यवस्था दोनों दिया होता है, जबकि हम अध्ययन के दौरान दोनों को एक मान लेते है| जो की एक सही रणनीति नहीं है, क्योंकि संविधान और राज्यव्यवस्था में अंतर होता है| तो आइये इस अंतर को समझते है, पहले हम समझते है संविधान क्या होता है?

संविधान :- ऐसा दस्तावेज जिसमे सरकार के अधिकार एवं कर्तव्य तथा नागरिको के अधिकार एवं कर्त्तव्य का उल्लेख होता है तथा जितने भी संवैधानिक संस्थाएँ है, उनके अधिकार एवं कर्तव्य का वर्णन करने वाली सैद्धांतिक किताब को ही संविधान कहा जाता है|

संविधान ही किसी भी देश का सर्वोच्च कानून(supream of law) होता है, जिसके अधीन राज्य के प्रमुख, सरकार के प्रमुख तथा विधायिका एवं न्यायपालिका कार्य करते है|

राज्यव्यवस्था :- यह संविधान का व्यवहारिक स्वरुप होता है| अर्थात दैनिक जीवन में संविधान को व्यवहार में लागू करना ही राज्यव्यवस्था है| इसके अंतर्गत हम मूलतः 3 तत्व का अध्ययन करते है:-

  1. संसद के कानून/अधिनियम या संविधान संसोधन
  2. न्यायलय के महत्वपूर्ण निर्णय
  3. गैर संविधानिक संस्थाएँ

⇒दोस्तों ध्यान रहे संसद के सभी कानून/अधिनियम को नहीं पढना है, सिर्फ उसी कानून/अधिनियम को पढना है जो संविधान के किसी न किसी अनुच्छेद से सम्बंधित हो तथा करेंट में चर्चित कानून को |

उदहारण के लिए एक अनुच्छेद के माध्यम से समझते है, जैसे:-

      अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत - "अस्पृश्यताका अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप आचरण निषिद्ध किया जाता है । अस्पृश्यता" से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा ।

-उपरोक्त अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता अर्थात छुआछुत को परिभाषित नहीं किया गया है, और न ही दंड को बताया गया है की कितना दंड होना चाहिए| इसलिए इस अनुच्छेद के अनुपालन के लिए एक कानून नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम1955बनाया गया है जिसमे छुआछूत को परिभाषित तथा छुआछूत का आचरण करने वाले को दंड देने का प्रावधान है |

इसलिए यह कानून पढना महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह राज्यव्यवस्था का भाग है|

तथा करेंट में चर्चित कानून को भी पढना रहता है जैसे की महिला आरक्षण सम्बंधित अधिनियम, सामान नागरिक सहिंता आदि |

⇒दूसरा हमको पढना होता है न्यायलय के महत्वपूर्ण निर्णय जैसे की :-

  • संविधान के व्याख्या सम्बंधित निर्णय जैसे: केशवानंद भारती 1973 केस, गोलकनाथ केस तथा 
  • करेंट में चर्चित निर्णय जैसे: समलैंगिक विवाह का निर्णय

⇒तीसरा हमें पढना रहता है विभिन्न संस्थाएं के बारे से जो मूलतः 3 प्रकार के होते है :-

  1. संवैधानिक संस्थाएँ( constitutional body) –  ऐसी संस्था जिसका गठन संविधान द्वारा अर्थान जिसका उल्लेख संविधान में हो संवैधानिक संस्थाएँ कहलाती है |

जैसे: संसद, राज्य विधानमंडल, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, वित्त आयोग, st/sc/obc  आयोग आदि

  1. असंवैधानिक संस्थाएँ(unconstitutional body) – यह ऐसी संथाएँ है, जिसका उल्लेख संविधान में नहीं होता तथा यह संविधान के उद्देश्यों के विरुद्ध कार्य करते है |

जैसे: आतंकवाद संगठन, नक्सलवाद संगठन

  1. गैर संवैधानिक संथाएँ(Extra constitutional body) ऐसी संस्थाएँ जिसका उल्लेख संविधान में तो नहीं होता लेकिन या संविधान के विरुद्ध भी नहीं होता अर्थात संविधान के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए गठन किया जाता है| यह भी 2 प्रकार का होता है|
    1. सांविधिक संस्था(statutory body) -  ऐसी संस्थाएँ जिसका उल्लेख संविधान में तो नहीं है तथा संविधान के उद्द्स्यों को पूरा करने के लिए संसदीय अधिनियम से गठन किया जाता है |
      • जैसे: रास्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, रास्ट्रीय महिला आयोग, विधि आयोग, अल्पसंख्यक आयोग आदि |
    2. कार्यकारी संस्थाएँ(Executive body) -  ऐसी संस्थाएँ जिसका उल्लेख न तो संविधान में है और न ही किसी संसदीय कानून में | इसका गठन संविधान के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मत्रिपरिषद के सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा एक कार्यकारी आदेस से किया जाता है |
      • जैसे: नीति आयोग

 

03:35 am | Admin


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