Sector of economy part 1

3110,2023

          भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र

⇒दोस्तों आर्थिक गतिविधियों के परिणाम स्वरुप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है, जबकि अर्थव्यवस्था का क्षेत्र कुछ मानदंडो के आधार पर वर्गीकृत आर्थिक गतिविधियों का समूह होता है|

भारतीय अर्थव्यवस्था को स्वामित्व, कामकाजी परिस्थितियों और गतिविधियों की प्रकृति के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है|

• प्रारंभिक सभ्यता के दौरान सभी आर्थिक गतिविधियाँ प्राथमिक क्षेत्र में थीं। भोजन के अधिशेष उत्पादन के बाद, लोगों की अन्य उत्पादों की आवश्यकता बढ़ गई जिससे द्वितीयक क्षेत्र का विकास हुआ।

 •उन्नीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति के दौरान द्वितीयक क्षेत्र के विकास ने अपना प्रभाव फैलाया।

 •औद्योगिक गतिविधि को सुविधाजनक बनाने के लिए एक सहायता प्रणाली की आवश्यकता थी। परिवहन और वित्त जैसे कुछ क्षेत्रों ने औद्योगिक गतिविधि को समर्थन देने में सेवा क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

⇒आर्थिक गतिविधियों के आधार पर अर्थव्यवस्था के 3 क्षेत्र है :-

  1. प्राथमिक क्षेत्र
  2. द्वितीयक क्षेत्र
  3. तृतीयक क्षेत्र

आइये एक-एक क्षेत्र को विस्तार से समझतें है –

  1. प्राथमिक क्षेत्र(primary sector) :-  ऐसी आर्थिक गतिविधि जो पर्यावरण पर निर्भर हो अर्थात सीधे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हो |
  • जैसे:-  कृषि, पशुपालन, मछलीपालन, डेयरी, वानिकी, लकड़ी काटना, खनन आदि |
  • इसे कृषि और संबध्द्द क्षेत्र भी कहा जाता है|
  • ध्यान रहे यदि आपके परीक्षा में केवल कृषि और संबध्द क्षेत्र पूछे तो उसमे खनन को शामिल नहीं किया जाता है|
  • प्राथमिक क्षेत्र में लगे लोगों को उनके काम की बाहरी प्रकृति के कारण रेड-कॉलर वर्कर कहा जाता है |
  1. द्वितीयक क्षेत्र(secondary sector):प्राथमिक क्षेत्र में उत्पादित उत्पाद के स्वरुप को बदल देना तथा उसे मूल्यवान बना देना ही द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है| इसके 3 भाग होते है:-
  1. निर्माण
  2. विनिर्माण
  3. प्रसंस्करण
  1. निर्माण( Construction) :निर्माण का अर्थ है कि हर बार अलग-अलग स्थानों पर आर्थिक गतिविधियों का संपन्न होना |

 

  • जैसे :-  सड़क, नहर, मकान, बंदरगाह, आदि|
  • इसमें श्रम संघनता ज्यादा तथा श्रम उत्पादकता कम होती है|
  1. विनिर्माण( Manufacturing) :विनिर्माण का सामान्य अर्थ है कि एक ही स्थान पर बार-बार आर्थिक गतिविधियों का संपन्न होना या उत्पादन होना |
  • जैसेः कंपनी में गाड़ी, फ्रिज, टीवी, AC का निर्माण आदि|
  • इसमें श्रम संघनता कम तथा श्रम उत्पादकता ज्यादा होतो है |
  1. प्रसंस्करण(Procesing) :-   केवल कृषि एवं पशु उत्पादों को खाने योग्य बनाना ही प्रसंस्करण कहलाता है| इसके 3 भाग होते है|
  1. प्राथमिक प्रसंस्करण( Primary processing) :कृषि उत्पाद एवं पशु उत्पाद की सफाई तथा पैकिंग करना |
  • इसमें उत्पादों के भौतिक स्वरुप में परिवर्तन नहीं होता है| तथा उत्पादों के मूल्य में भी कोई परिवर्तन नहीं होता है |
  • जैसेः गेहूं की सफाई एवं पैकिंग , चने की सफाई एवं पैकिंग
  1. द्वितीयक प्रसंस्करण(Secondary processing) :-  इसमें उत्पाद के भौतिक स्वरुप में परिवर्तन हो जाता है तथा मूल्य  में भी वृध्दि हो जाती है|
  • जैसेः गेहूं से आंटा का निर्माण , चने से बेसन निर्माण|
  1. तृतीयक प्रसंस्करण(Tertiary processing) :-  इसमें उत्पाद को तुरंत खाने योग्य बना दिया जाता है तथा उत्पाद के मूल्य में भी वृद्धि हो जाती है|
  • जैसेः दूध से दही निर्माण, चने को भूनना  आदि|

   नोट :-  द्वितीयक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है तथा इसमें लगे लोग को ब्लू-कॉलर जॉब कहा जाता है |

  1. तृतीयक क्षेत्र( Tertiary sector) :-  इस क्षेत्र की गतिविधियाँ प्राथमिक और द्वितीयक  क्षेत्रों के विकास में मदद करती हैं। अपने आप में, तृतीयक क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ किसी वस्तु का उत्पादन नहीं करती हैं बल्कि वे उत्पादन के लिए एक सहायता या समर्थन हैं।
  • सभी तरह की सेवाएं तृतीयक क्षेत्र में आती है जैसेः-
  • ऐसी सेवाएँ जहाँ शारीरिक श्रम की आवश्यकता हो |
  • ऐसी सेवाएँ जहाँ मानसिक श्रम की आवश्यकता हो |
  • ऐसी सेवाएँ जहाँ निर्णय निर्माण की आवश्यकता हो |
  • जैसेः-   बैंक, बीमा, पर्यटन, परिवहन, होटल, अनुसंधान, teaching, IT sector, DM, SP, आदि|
  •  नोट :- इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है |

06:48 am | Admin


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