Important festival of chhattisgarh part 3

2711,2023

  छत्तीसगढ़ के पर्व एवं त्यौहार भाग-3

दोस्तो छत्तीसगढ़ के प्रत्येक माह के पर्व एवं त्यौहार पर अब हम विस्तृत चर्चा करेंगेअब हम आषाढ़ – सावन माह के प्रमुख त्यौहार को समझते है |

                आषाढ़ माह ( जून – जलाई )

  1. रथदुतिया-रथयात्रा : - भारतीय संस्कृति समन्वय की संस्कृति रही है। यही विशेषता छत्तीसगढ़ की संस्कृति में भी दिखाई पड़ती है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति ने अपनी सीमा से लगे हुए राज्यों की संस्कृति को भी अपने आप में समाहित कर लिया है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण रथ दुतिया अर्थात रथ यात्रा है। रथ यात्रा जगन्नाथ पुरी का महापर्व है, जिसका प्रभाव छत्तीसगढ़ के ग्राम्यांचल व नगरों में दिखाई देता है।
  • रथ-दुतिया का पर्व आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।
  • गन्नाथ पुरी में मनाए जाने वाले महापर्व की तरह यहां भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा को एक साथ रथ में बिठाकर श्रद्धापूर्वक उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है।
  • रथयात्रा का आशय लोक कल्याण से है।
  • रथयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को प्रसाद के रुप में गजामूंग का वितरण किया जाता है।
  • गजामूंग, मूंग व चनादाल को गुड़ या शक्कर के घोल में भिगाकर तैयार किया जाता है।
  • रथयात्रा में वितरित प्रसाद 'गजामूंग' मित्रता का भी प्रतीक है। लोग परस्पर गजामूंग खिलाकर गजामूंग (मितान) बदते हैं।
  • इस प्रकार रथ दुतिया का पर्व आस्था के साथ-साथ पारस्परिक प्रेम, मित्रता व स्नेहशीलता का पर्व है।
  • यह पर्व छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से मैदानी क्षेत्र में मनाया जाता है |
  1. गोंचा पर्व : -  बस्तर के वनवासी अंचल में श्री जगन्नाथ रथ यात्रा या "गुण्डिचा महोत्सव" को श्री पुरुषोत्तम देव ने विशिष्टता के साथ शुरू किया था। बस्तर का यह "गोंचा-तिहार" श्री जगन्नाथ रथयात्रा या "गुण्डिचा महोत्सव" का वनवासी संस्करण है।
  • "गुण्डिचा" शब्द ही बस्तर में "गोन्चा" बन कर रह गया है
  • आषाढ़ शुक्ल द्वितीय से आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक बस्तर जिला के जगदलपुर में आयोजन किया जाता है |
  • यह पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है |
  • श्री जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियाँ रथारूढ़ करायी जाती हैं। रथ चलते हैं और गोल बाजार से लगती घुमावदार सड़क से होते हुए "सीरासार" के "गुण्डिचा-मंडप" पर मूर्तियाँ 9 दिन के लिए स्थापित कर दी जाती हैं। भजन-पूजन के कार्यक्रम इस बीच लगातार चलते रहते हैं। दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। दसवें दिन भगवान श्री जगत्राथ अपने मंदिर में सुभद्रा और बलभद्र के साथ रथारूढ़ होकर लौटते हैं। मंदिर में भजन-पूजन का समापन कार्यक्रम चलता है। इसी के साथ "गोंचा तिहार" संपन्न हो जाता है।
  • जगन्नाथ की सहित कुल 22 प्रतिमाओं का एक साथ एक ही मंदिर में स्थापित होना, पूजित होना भी महत्वपूर्ण है। 22 प्रतिमाओं की एक साथ रथयात्रा भी भारत के किसी भी क्षेत्र में नही होती, जैसा कि जगदलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर में होता है।
  • इस पर्व में  रथयात्रा के दौरान 3 फूल रथ  का प्रयोग किया जाता है |
  • पर्व के प्रथम चरण को "सिरी गोंचा" तथा अंतिम चरण को "बोहड़ती गोंचा" (लौटती गोंचा) कहा जाता है।
  • इस अवसर पर  आदिवासी जनता मन की प्रसन्नता को व्यक्त करने तथा भगवान को सलामी देने के लिये जिस उपकरण का उपयोग करती है, उसे "तुपकी"( बस्तरिया बन्दूक) कहते हैं। "तुपक" का परिवर्तित नाम है तुपकी। तुपकियों की आवाजें उत्सव की शोभा बढ़ाती हैं।
  • तुपकी चलाने के लिए जिन गोलियों का प्रयोग किया जाता है ये गोलियाँ  "मालकांगिनी" नामक एक जंगली लता के गोल-गोल फल हैं, जो चने के दानों से कुछ ही बड़े होते हैं। चिकित्सकों के अनुसार "मालकांगिनी" एक आयुर्वेदिक औषधि है। इसका तेल वात रोग को दूर करता है। "मालकांगिनी" के फलों को बस्तरांचल में "पेंग" कहते हैं।
  • गोंचा तिहार में जगन्नाथजी को जो विशेष प्रसाद बँटता है, उसे "गजामूँग" कहते हैं।
  • ग्रामवासी, "गोंचा-तिहार" के उपलक्ष्य में "गजामूँग" को साक्षी रख कर मैत्रीभाव का संकल्प करते हैं। परस्पर "गजामूँग" बद कर जोहारते और प्रसन्नता पूर्वक अपने अपने गाँवों को लौट जाते
  1. बीज बोहनी पर्व : -  यह पर्व आषाढ़ माह में कोरवा जनजाति के द्वारा मनाया जाता है |
  • बीज बोने से पूर्व मनाया जाने वाला त्यौहार है
  • मुख्यतः कृषि के दौरान आयोजित की जाती है अर्थात कृषि आधारित पर्व है |
  • यह पर्व मुख्य रूप से सरगुजा अंचल, कोरबा क्षेत्र में मनाया जाता है |

सावन माह (जुलाई - अगस्त )

  1. हरेली त्यौहार/ गेंड़ी पर्व  : - छत्तीसगढ़ के लोगों का जीवन कृषि पर ही अवलंबित है। खेती- बाड़ी का काम इनकी पूजा है। इनका धर्म है, इनकी प्रकृति है। जहां प्रकृति के प्रति लगाव है, वहीं जीवन में हरितिमा है, हरियाली है। हरियाली का लोक रूप ही हरेली है।
  • सावन माह की अमावस्या के दिन यह पर्व मनाया जाता है।
  • छ.ग. का प्रमुख पर्व  एवं प्रथम त्यौहार है |
  • किसानों का प्रमुख त्यौहार, कृषि कार्य समापन पर मनाया जाता है।
  • इस दिन किसान भाई सुबह से ही कुल देवता की पूजा करते है तथा कृषि औजारों की साफ़-सफाई करने के बाद इन औजारों की पूजा की जाती है एवम मंदिरों में मीठा चीला का भोग लगाया जाता है।
  • इस दिन पशुओं के सीगों या खुरों में तेल लगाकर एरंड के पत्तों पर रखकर उन्हें भोजन कराया जाता है।
  • पशुओं के रक्षक देवता गोरइंया देव की पूजा की जाती है |
  • इस दिन कुटकी देवी कि पूजा की जाती है |
  • लुहार अपने मालिकों के द्वार में कील ठोंकते हैं।  यहां के लोगों की मान्यता है कि जिस घर में लुहार का कील गड़ा हो, वहां दुष्ट आत्माएं प्रविष्ट नहीं करती।
  • रावत अपने मालिकों के यहां गोंसाईज या नीम की पत्ती खोंसते हैं। जो निरोग रहने की कामना का प्रतीक है|
  • गाँव में महिलाएं अपने घर के बाहर दीवारों में चित्रकारी भी करती है जिसे सवनाही कहा जाता है।
  • केंवट या निषाद अपनी नाव के मांधी में त्रिशूल का चिन्ह सिंदूर से अंकित कर उसकी पूजा करते हैं।
  • इस दिन से बालकों का गेंड़ी में चढ़ना प्रारंभ हो जाता है।
  • कबड्डी, नारियल फेंक या बैल दौड़ का आयोजन।
  1. अमूंस तिहार : -  बस्तर अंचल के आंतरिक त्यौहारों में 'अमूँस तिहार' का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या को स्थानीय हल्बी भतरी परिवेश में 'अमूँस' कहा जाता है। यह पर्व हरेली अमावस्या (सावन अमावस्या) के दिन बस्तर में मनाया जाता है।
  • इसके अंतर्गत पारंपरिक रूप से पशुचिकित्सा का प्रावधान रहता है। पशुधन के स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने के प्रयास में अमूँस तिहार के अवसर पर औषधि का प्रयोग की प्रथा चली आ रही है।
  • इस क्षेत्र में पशुधन के चरवाहे को 'धोराई' कहा जाता है।
  • त्यौहार के एक दिन पूर्व सुबह-सुबह धोराई पूजन सामग्री व आग लेकर जंगल जाता है और वहाँ 'रसना' और 'शतावरी' के पौधों की पूजा कर उन्हें खोद कर उनसे अपने पशुधन के उपचारार्थ प्रसाद की भांति जड़ियाँ प्राप्त कर लेता है और घर लौटकर औषधि तैयार करता है। धोराई गांव के जितने घरों के पशुओं को चराता है उतने घरों में वह शाम होते ही औषधि की पुड़िया पहुंचा देता है।
  • यह पर्व बस्तर के सभी जनजाति मनाते है लेकिन मुख्य रूप से हल्बा, भतरा जनजाति के लोग मनाते है|
  • आदिवासी समाज में यह पर्व उनका प्रथम पर्व होता है, वे प्रमुख रूप से इस दिन अपनी इष्ट देवी तथा डूमा की पूजा करते है |
  1. नाग पंचमी : -  सावन शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन मनाया जाने वाला त्यौहार ।
  • इस दिन नागों की पूजा की जाती है।
  • इस दिन जांजगीर चांपा के दलहा पहाड़ में मेला आयोजित ।
  • कुश्ती का आयोजन
  • इस दिन बिरौंछा खेलते है|
  1. कजरी त्यौहार  : -  यह त्यौहार सावन शुक्ल नवमीं से लेकर सावन पूर्णिमा तक मनाया जाता है |
  • केवल संतानवती माताएं ही मनाती हैं।
  • यह देवी भगवती के आराधना का त्यौहार है।
  • अच्छे उपज की कामना की जाती है।
  • यह पर्व गेहूं और जौ की बुवाई का मौसम की शुरूवात को इंगित करता है।

04:21 am | Admin


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