भाग 1
संघ और उसका राज्यक्षेत्र
⇒इस भाग में कुल 4 अनुच्छेद है |
अनुच्छेद 1. संघ का नाम और राज्यक्षेत्र -
अनुच्छेद 1(1) भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा ।
स्पष्टीकरण – इस अनुच्छेद से 2 बातें इंगित होती है, एक देश का नाम और दूसरा शासन का स्वरुप –
अनुछेद 1(2) राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं ।
स्पष्टीकरण – इस अनुच्छेद से यह इंगित होता है की भारत के 28 राज्यों तथा 8 केंद्र शासित प्रदेश की सूची अनुसूची 1 में लिखा गया है |
अनुछेद 1(3) भारत के राज्यक्षेत्र में –
स्पष्टीकरण – भारत राज्यों का संघ और भारत के राज्यक्षेत्र दोनों में अंतर है -
जिसमे राज्यों की संख्या 28 है |
संघ शासित प्रदेशों की संख्या 8 है |
तथा अर्जित क्षेत्रों की संख्या 0 है|
अनुच्छेद 2 नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना - संसद्, विधि द्वारा, ऐसे निर्बधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी ।
स्पष्टीकरण – भारत संघ में कोई नया प्रदेश( जो पहले से भारत संघ का हिस्सा नहीं है) को शामिल करना हो तो उसकी प्रक्रिया का उल्लेख है| संसद विधि बनाकर ऐसा कर सकती है चाहे तो कुछ निर्बन्धन और शर्त जैसे संधि, उपहार,लीज , व्यापर एवं वाणिज्य जो संसद ठीक समझे रख सकती है, लेकिन संसद कोई ऐसा निर्बन्धन और शर्त नहीं रखेगी जो मूलभूत ढांचा को प्रभावित करता हो|
मुख्य रूप से इस अनुच्छेद के दो निहितार्थ हैं –
•उदाहरण के लिए सिक्किम को लें सकते हैं यह भारतीय संघ का हिस्सा नहीं था, इसे 1975 में भारतीय संघ में प्रवेश कराया गया।
सिक्किम को 35वा संविधान संशोधन द्वार अनुच्छेद 2A जोड़कर सहयोगी राज्य बनाया गया
फिर 35वा संविधान संशोधन द्वारा सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया तथा अनुच्छेद 2A को हटा दिया गया |
अनुच्छेद 3 नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन - संसद्, विधि द्वारा ये पाँच चीजें कर सकती है –
(क) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी;
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;
(घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी;
(ङ) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी :
स्पष्टीकरण – इस प्रकार संसद किसी भी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ा या घटा सकती है या किसी राज्य की सीमाओं या नामों में परिवर्तन कर सकती है। संसद इस संबंध में निम्नलिखित प्रक्रियाओं का पालन करती है।
चरण-1: संसद का कोई भी सदन, केवल राष्ट्रपति की सिफारिश पर, ऊपर बताए गए किसी भी या सभी परिवर्तनों को प्रभावी करने वाला विधेयक पेश कर सकता है।
चरण-2: यदि ऐसा कोई विधेयक किसी राज्य की सीमा या नाम को प्रभावित करता है, तो राष्ट्रपति विधेयक को संसद में पेश करने से पहले संबंधित राज्य विधानमंडल को उनकी राय जानने के लिए भेजेंगे।
चरण-3: यदि राज्य विधानमंडल दी गई समय सीमा के भीतर कोई राय व्यक्त करने में विफल रहता है तो यह माना जाएगा कि उसने अपना विचार व्यक्त कर दिया है। संसद राज्य विधानमंडल के विचारों को स्वीकार करने या उन पर कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है, भले ही राज्य ने समय अवधि के भीतर अपने विचार प्रस्तुत कर दिए हों।
अनुच्छेद 4 यदि अनुच्छेद 2 तथा अनुच्छेद 3 के पालन में संसद कोई विधि बनाती है तो इसे संविधान संशोधन नहीं माना जायेगा अर्थात यह अनुच्छेद 368 से बाहर होगा|
02:59 am | Admin
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