1857 कि कांति और छत्तीसगढ़
1.उदयपुर का विद्रोह (1857)
⇒1852 उदयपुर के तत्कालीन जमीदार 'कल्याण सिंह' थे जिनके दो भाई शिवराज सिंह व धीराज सिंह ।
अंग्रेज उदयपुर कि जमीदारी को हड़पना चाहते थे इसलिए उन्होने कल्याण सिंह व उनके भाईयों में 'मानव वध' का मुकदमा लगाकर व उन्हे पकड़कर, रॉची जेल में डाल दिया गया ।1857 कि कांति के समय रॉची के स्थानीय लोगो ने अंग्रेजो को रॉची से भगा दिया और कल्याण सिंह व उनके भाइयो को रॉची जेल से रिहा किया ।
> अंग्रेजो ने इस समय उदयपुर में शासन करने हेतू एक व्यक्ति को नियुक्त किया था, कल्याण सिंह वहां पहुंचते ही उस व्यक्ति को पद से हटाकर स्वंय शासक बने परंतु वह ज्यादा दिन शासन नही कर सके और कुछ दिनो पश्चात् ही उनकी मृत्यु हो गयी ।
> फिर धीराज सिंह को वहाँ का शासक बनाया, उनकी भी मृत्यु होने के पश्चात् शिवराज सिंह शासक बने । वह 1859 तक शासक बने रहे ।
अंग्रेजो ने रायगढ़ के जमीदार 'देवनाथ सिंह' कि सहायता से शिवराज सिंह को पकड़ लिया और उन्हे कालापानी कि सजा सुनायी गयी और उदयपुर कि जमीदारी सरगुजा के जमीदार 'बिन्दे वरी प्रसाद' सिंहदेव को सौंप दी ।
2.सम्बलपुर का विद्रोह (1857)
1827 में सम्बलपुर के शासक 'महाराज साय' कि मृत्यु हुयी, जिसका उत्तराधिकारी चौहान वंश कि परम्परा के अनुसार 'सुरेन्द्र साय' को होना था। पर अंग्रेजो ने षड़यंत्र पूर्वक महाराज साय कि विधवा 'मोहन कुमारी' को सम्बलपुर कि सत्ता सौंप दी ।
जब मोहन कुमारी का विरोध होने लगा तब अंग्रेजो ने मोहन कुमारी को पद से हटाकर उन्ही के रि तेदार व अपने भक्त 'नारायण सिंह' को सम्बलपुर कि जमीदारी सौंप दी ।
सुरेन्द्र साय ने अपने साथियो के साथ मिलकर नारायण सिंह का विरोध करना प्रांरभ किया, तब नारायण सिंह ने सुरेन्द्र साय के समर्थक लखनपुर जमीदारी के जमीदार 'बलभ्रद देव' कि हत्या की ।
तब सुरेन्द्र साय ने बदला लेने हेतु नारायण सिंह के समर्थक रायपुर के 'दुर्जय सिंह' कि हत्या की ।
अंग्रेजो ने सुरेन्द्र साय व उनके साथियो को पकड़कर हजारीबाग जेल मे डाल दिया ।
31 अक्टुबर 1857 को सुरेन्द्र साय व उनके साथी हजारीबाग जेल से भाग ये व सम्बलपुर पहुंचकर वापस अपनी सत्ता स्थापित कि और वह रायपुर कि ओर निकल पड़े ।
सुरेन्द्र साय व वीरनारायण सिंह के पुत्र गोविंद सिंह ने मिलकर देवरी के जमीदार महाराज साय कि हत्या की ।
परंतु वह अंग्रेजो के घेरो में फँस गये गोविंद सिंह ने आत्म समर्पण कर दिया परंतु सुरेन्द्र साय वहाँ से भाग गये ।
> 23 जनवरी 1864 में सुरेन्द्रसाय को गिरफ्तार किया गया जहाँ असीरगढ़ के किले में उन्हे नजरबंद करके रखा गया ।
> 18 फरवरी 1884 में वहाँ उनकी मृत्यु हो गयी ।
3.सेहागपुर का विद्रोह
> 15 अक्टुबर 1857 को 'गुरूर सिंह रणमत' तथा अन्य जमीदारो ने आपस में मिलकर अंग्रेजो का विरोध
करना प्रारंभ किया, जब यह सूचना डिप्टी कमि नर इलियट को लगी तो उन्होने एक सैनिक टुकड़ी तैयार कर सोहागपुर एम. पी. क्षेत्र में भेजा ।
> जमीदारों ने अंग्रेजो का डटकर सामना किया, जिसमें अंग्रेजो के कुछ सैनिक व घोड़े मारे गए ।
अंगेजो ने 17 लोगो को गिरफ्तार किया परंतु उनके साथियों ने उनको छुड़ा लिया, अंततः अंग्रेज अपनी हार को स्वीकार कर वंहा से वापस लौट आए ।
नोट :- इस विद्रोह का वास्तविक नेता सतारा राजा के भूतपूर्व वकील रंगा जी बापू थे ।
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