What is Electoral bond ,why Supreme court declared electoral bond as unconstitutional

1602,2024

क्या.है चुनावी बांड ,सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक. क्यों करार दिया ,What is Electoral Bond why Supreme Court declared as Unconstitutional

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी  को एक एतिहासिक फैसले में विवादास्पद चुनावी बॉन्ड को(Electoral Bond ) असंवैधानिक करार दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि

किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से बदले में उपकार करने की संभावना बन सकती है।

● राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे वाली चुनावी बॉन्ड योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। 

◆ “इस बात की भी वैध संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से धन और राजनीति के बीच बंद संबंध के कारण प्रति-उपकार की व्यवस्था हो जाएगी। 

◆यह नीति में बदलाव लाने या सत्ता में राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंस देने के रूप में हो सकती है।" यह कहते हुए कि राजनीतिक चंदा योगदानकर्ता को मेज पर एक जगह देता है, यानी यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है और यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है।

◆सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी मतदान का विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए आवश्यक है। 

◆ ''आर्थिक असमानता के कारण धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण राजनीतिक जुड़ाव के स्तर में गिरावट आती है।''

क्या है चुनावी बॉन्ड:::::::::----

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◆चुनावी बॉन्ड की घोषणा 2017 के केंद्रीय बजट में की गई थी और इन्हें लागू 29 जनवरी, 2018 में किया गया था। 

◆यह एक  वित्तीय इंस्ट्रूमेंट है, जिसके जरिये कोई भी राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से चंदा दे सकता था। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया था

●यह एक वचन पत्र की तरह होता था, जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता था और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता था। 

◆इन पर कोई ब्याज भी नहीं लगता था। यह 1,000, 10,000, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपयों के मूल्य में उपलब्ध थे। इन्हें सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से खरीदा जा सकता था। 

◆चंदा देने वाले को बॉन्ड के मूल्य के बराबर की धनराशि एसबीआई की अधिकृत शाखा में जमा करवानी होती थी। यह भुगतान सिर्फ चेक या डिजिटल प्रक्रिया के जरिए ही किया जा सकता था। बॉन्ड कोई भी व्यक्ति और कोई भी कंपनी खरीद सकती थी। 

●◆यह.कितनी.ही  बार बॉन्ड खरीदा जा  सकता था, इसकी कोई सीमा नहीं थी। चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती थी, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता था। 

◆केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता था, जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम 1% हासिल किया हो। 

◆योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते थे। इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जाता था।

चुनावी बॉन्ड पॉलिटिकल पार्टियों को दिए जाने वाले दान की तरह है। इससे 80जीजी 80जीजीबी (ection 80 GG and Section 80 GGB) के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।

चुनावी बॉन्ड एक तरह की रसीद होती है। इसमें चंदा देने वाले का नाम नहीं होता। इस बॉन्ड को खरीदकर, आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसका नाम लिखते हैं। इस बॉन्ड का पैसा संबंधित राजनीतिक दल को मिल जाता है। इस बॉन्ड पर कोई रिटर्न नहीं मिलता। आप इस बॉन्ड को बैंक को वापस कर सकते हैं और अपना पैसा वापस ले सकते हैं लेकिन उसकी एक अवधि तय होती है।

क्या असर होगा::::::::::------
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केंद्र सरकार का कहना है कि पारदर्शिता के लिए चुनावी बॉन्ड जरूरी है। काले धन पर रोक लगेगी। चुनाव आयोग का कहना है कि इससे पारदर्शिता खत्म होगी और फर्जी कंपनियां खुलेंगी। 

रिजर्व बैंक का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना से मनी लॉन्ड्रिंग का खतरा है। ब्लैक मनी को भी बढ़ावा मिलेगा। इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे। यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे। 

√सरकार ने 2016 और 2017 के वित्त अधिनियम के माध्यम से चुनावी बांड योजना शुरू करने के लिए चार अधिनियमों में संशोधन किया था। 

 

◆ये संशोधन अधिनियम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम , 1951, (आरपीए), कंपनी अधिनियम, 2013, आयकर अधिनियम, 1961, और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 (एफसीआरए), 2016 और 2017 के वित्त अधिनियमों के माध्यम से थे। 

◆2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को वित्त विधेयक के रूप में सदन में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना जारी की गई

 

 आम चुनाव से ठीक पहले चुनावी बॉन्ड पर रोक लग गई है। ऐसे में चुनावी चंदे लेने के प्लान पर राजनीतिक दलों को झटका लगा है। राजनीतिक दलों को चंदे की समस्या से जूझना होगा।

 चुनाव में खर्च के लिए अन्य सोर्स पर बात करनी होगी। आगे चंदा कैसे लिया जाएगा, इसका विकल्प तलाशना होगा। चुनाव आयोग से राय-मशविरा करनी होगी। कोर्ट से भी विकल्प देने की मांग की जा सकती है।।

लेकिन काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।"

अब देखना यह होगा कि राजनीतिक पार्टियां इसका क्या विकल्प तलाश करती है।।

DeshRaj Agrawal 

06:57 am | Admin


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