डेकार्ट कि संशय विधि
संशय विधि : -
अर्थ - संशय विधि का अर्थ है कि किसी विषयवस्तु पर तब तक संशय करो कि, जब तक कि उसकी प्रामाणिकता सिद्ध नहीं हो जाती है।
संशय विधि का प्रतिपादन क्यों ? - संशय विधि का प्रतिपादन बुद्धि को पूर्वाग्रहों से मुक्त करने के लिए किया गया ताकि बुद्धि निगमनात्मक विधि का प्रयोग करके सत्य का पता लगा सके।
बुद्धि पूर्वाग्रहों से ग्रसित क्यों होती है? ⇒ बुद्धि के पूर्वाग्रहों से ग्रसित होने के तीन कारण
(ⅰ) गलत शिक्षा एवं परम्परा
(ⅱ) मन एवं शरीर का सम्बध
(iii) विचार एवं भाषा का सम्बंध
क्या संशय विधि को उपचार विधि कहा जा सकता है ⇒ हाँ, क्योंकि संशय विधि बुद्धि को पूर्वाग्रहों से मुक्त करती है। पूर्वाग्रह एक रोग है जो बुद्धि की सहीं निर्णय नहीं लेने देती है जिससे अनेक गलत' निर्णय हो जाते हैं।
संशय विधि के नियम क्या है? ⇒ चार नियम है-
(1) जो स्पष्ट और विवेकपूर्ण हो उसे उसे स्वीकार किया जाए। यहाँ स्पष्टता का अर्थ है प्रत्यक्ष होना तथा विवेकपूर्णता का अर्थ है कि उसके सम्बध में जितना ज्ञान है, उसमें उतना ही समाहित है | जो स्पष्ट होगा, जरूरी नहीं कि वह विवेकपूर्ण है किन्तु जो विवेकपूर्ण है, वह अवश्य ही स्पष्ट होगा (वस्तुतः स्पष्टता और विवेकपूर्ण सत्य की कसौटी है।
(2) विश्लेषण का नियम - अर्थात जब कोई समस्या उत्पन्न होती है तो उसे छोटे- छोटे भागों में तोड़ दिया जाए।
(3) संश्लेषण का नियम- समस्या का समाधान होने के बाद सभी भागों को सरलता से जरिलता की ओर बढ़ते हुए आपस में जोड़ दिया जाए।
(4) अन्वेषण का नियम - एक बार ध्यान से देख लिया जाए ताकि कोई पहलु छूट न पाये।
क्या सभी पर संशय किया जा सकता है ? ⇒ नहीं, आत्मा पर संशय नहीं किया जा सकता क्योंकि आत्मा पर संशय करने से संशयकर्ता के रूप में आत्मा की सत्ता सिद्ध होती है।
क्या संशय विधि संदेहवादी है? ⇒ देकार्त का मत है कि संशय विधि संदेहवादी नहीं है। क्योंकि संशय विधि का उद्देश्य बुद्धि को पूर्वाग्रहों से मुफ्त करके सत्य ज्ञान का पता लगाना है। वस्तुतः संशय एक साधन है तथा सत्य ज्ञान कि प्राप्ति साध्य है।
संशय विधि के माध्यम से देकार्ट किस निष्कर्ष पर पहुॅचा? ⇒ संशय विधि द्वारा देकार्ट इस निष्कर्ष पहुँचा कि आत्मा पर संशय नहीं किया जा सकता क्योंकि आत्मा, पर संशय करने से संशयकर्ता की के रूप आत्मा की सत्ता सिद्ध होती है। इसलिए देकार्ट ने यह कहा कि "मैं सोचता हूँ अत! मैं हूँ"।
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