What is the main idea of cogito ergo sum?

1403,2024

देकार्ट का आत्म-विचार / मैं सोचता हूँ अत: मैं हूँ 

⇒संशय विधि द्वारा देकार्ट इस निष्कर्ष पहुँचा कि आत्मा पर संशय नहीं किया जा सकता क्योंकि आत्मा, पर संशय करने से संशयकर्ता  के रूप में  आत्मा की सत्ता सिद्ध होती है। इसलिए देकार्ट ने यह कहा कि  "मैं सोचता हूँ  अत! मैं हूँ"।

•मैं सोचता हूँ  अत! मैं हूँ" को डेकार्ट ने कैसे सिद्ध किया ?⇒  इसके लिए देकार्ट ने निम्न  तर्क दिए 

1.  चिंतन करना या सोचना  एक क्रिया है  जो कर्ता के बिना संभव नहीं है। अतः चिंतन, चितंक की ओर संकेत करता है जो आत्म स्वरुप  है |

2. मैं सोचता हूँ  अत! मैं हूँ" का अर्थ है कि मेरी सत्ता चिंतन करने पर निर्भर है, चिंतन के अनेक रूप जैसे:- संदेह करना , इच्छा करना इत्यादि है |यह सभी मानसिक क्रियाएँ है | अतः इनकी सत्ता मेरी आत्मा पर निर्भर है, यदि मैं नहीं तो अन्य क्रियाएँ भी नहीं होगी 

3. मैं सोचता हूँ  अत! मैं हूँ" अर्थात आत्मा ज्ञाता होने के कारण स्वतः सिद्ध है , यदि ज्ञान को स्वीकार किया जाता है तो आत्मा को स्वीकार करना पड़ेगा क्योंकि ज्ञान आत्मा का गुण है |

क्या देकार्ट की आत्मा  ज्ञाता है? ⇒ देकार्ट ने आत्मा को ज्ञाता माना है आत्मा को अपना ज्ञान होने के साथ 'अन्य प्रत्ययों का भी ज्ञान होता है। जैसे : -

a.आगंतुक प्रत्यय - बाह्य वस्तुओं का ज्ञान 

b.काल्पनिक प्रत्यय - आत्मा स्वयं विचारों की कल्पना करती है।

c. जन्मजात प्रत्यय -  आत्मा के अन्दर जन्म से कुछ प्रत्यय है निसका ज्ञान होता है।

देकार्ट ने एक आत्मा को माना है या अनेक आत्मा को माना है ⇒  देकार्ट ने अनेक आत्मा को माना है। "मैं सोचता है, अतः मैं हूँ" वाक्य  से यह सिद्ध नहीं होता है कि आत्मा एक है।

गैसेंडी ने देकार्ट पर दो आरोप लगाये: - 

1. यदि  सोचने से आत्मा की सत्ता सिद्ध होती है, तो चलने से भी आत्मा की सत्ता सिद्ध होनी चाहिए। इसलिए गैसेंडी ने कहा कि मैं सोचता हूँ  अत! मैं हूँ" सत्य है, तो मैं चलता हूँ, अतः मैं हूँ भी सत्य होना चाहिए।

2. मैं सोचता हूँ, अत! मैं हूँ, वाक्य में मैं हूँ निष्कर्ष है जिसे तभी सत्य माना जा सकता है जब यह सिद्ध कर दिया जाए कि जो सोचता है, उसका अस्तित्व है।

मैं सोचता हूँ  अत! मैं हूँ" पर गैसेंडी के आरोप का जवाब देकार्ट ने कैसे दिया  ? ⇒

पहला जवाब : - देकार्ट का मत है कि चलना; खाना पीना यह शरीर का गुण है। इससे शरीर की सत्ता सिद्ध हो रही है किन्तु चलने की चेतना हो तो आत्मा की सत्ता सिद्ध होगी क्योंकि चिंतन करना आत्मा का गुण है |

दूसरा जवाब : -  मैं सोचता हूँ  अत! मैं हूँ" वाक्य में "मैं हूँ" निष्कर्ष नहीं है बल्कि एक सरल वाक्य है । वस्तुतः आत्मा का ज्ञान अन्त्तः प्रज्ञा (Intuition) से होता है।

02:52 am | Admin


Comments


Recommend

Jd civils,Chhattisgarh, current affairs ,cgpsc preparation ,Current affairs in Hindi ,Online exam for cgpsc

Serious situation of unemployment in India

current affairs

भारत में बेरोजगारी की गंभीर स्थिति ⇒अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और मानव विकास संस्थान (IHD) द्वारा जारी 'भारत रोजगार रिपोर्ट-2024' क...

0
Jd civils,Chhattisgarh, current affairs ,cgpsc preparation ,Current affairs in Hindi ,Online exam for cgpsc

Cgpsc Needs to ReEvaluate their Working System

Cgpsc main 2022,Mistake

छग लोक सेवा आयोग ने अपने उपर लग रहे लगातार आरोपो को देखते हुए  कुछ अच्छे कदम उठाए इस क्रम मे मुख्य परीक्षा की कॉपी को ऑनलाइन अपलोड किय...

0

Subscribe to our newsletter