स्पिनोजा का द्रव्य विचार
द्रव्य क्या है ? ⇒ स्वतंत्र, निरपेक्ष और अद्वितीय सत्ता ही द्रव्य है। अर्थात एक ऐसी सत्ता जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, जो स्वयं से उत्पन्न हो ( स्वयंभू ) हो द्रव्य कहलाता है | जैसे :- ईश्वर
स्पिनोजा के द्रव्य विचार के द्रव्य का स्वरुप क्या है ? ⇒ द्रव्य विशिष्टताद्वैत स्वरुप है , जहाँ ईश्वर द्रव्य है तथा चित् एवं अचित् ईश्वर के गुण है |
क्या स्पिनोजा ने, द्रव्य को निर्गुण माना है? ⇒ स्पिनोजा ने द्रव्य को निर्गुण माना है, यहाँ निर्गुण का अर्थ है कि बुद्धि द्वारा कल्पित कोई भी अवधारणा ईश्वर पर लागू नहीं हो सकती है। इसलिये स्पिनोजा ने द्रव्य को अनिर्वचनीय मानते हुये " निर्वाचन मात्र निषेधात्मक है" का प्रतिपादन किया।
स्पिनोजा ने द्रव्य के सम्बध में "निर्वचन मात्र निषेधात्मक है" का प्रतिपादन क्यों किया?⇒ क्योंकि द्रव्य निर्गुण है और निराकार है। यहाँ निर्गुण का अर्थ है कि बुद्धि द्वारा कल्पित कोई भी अवधारणा ईश्वर पर लागू नहीं होती है। यदि ईश्वर का निर्वाचन किया जाय तो ईश्वर का खंडन हो जाऐगा क्योंकि ईश्वर का निर्वाचन करने का अर्थ है कि ईश्वर को गुणों से सीमित कर देना है। सीमित ईश्वर एक दृष्टि से ईश्वर का खंडन है। जैसे- यदि यह कहा जाए कि ईश्वर लाल है तो इसका अर्थ है कि ईश्वर काला, पीला नहीं होता अतः ईश्वर लाल नामक गुण से सीमित हो जायेगा।
द्रव्य ( ईश्वर) को कैसे जानते है? ⇒ ईश्वर निर्गुण है फिर भी हम ईश्वर को गुणों के माध्यम से जानते हैं। यहाँ निर्गुण कहने का अर्थ है कि बुद्धि द्वारा कल्पित कोई भी अवधारणा ईश्वर पर लागू नहीं हो सकती है। वस्तुतः ईश्वर के अनन्त धर्म है किन्तु मानव को दो गुण चित् व अचित् का' ज्ञान होता है।
क्या दो गुणों को जान लेने से द्रव्य को जाना जा सकता है?⇒ वस्तुतः प्रत्येक गुण में ईश्वर की पूर्ण अभिव्यक्ति है अतः एक गुण को जान लेने पर द्रव्य को पूर्ण रूप से जाना जा सकता है। किन्तु गुणों के बीच सम्बध को जानने के लिए एक से अधिक गुण की आवश्यकता होती है।
गुणों के बीच सम्बध कैसा होता है?⇒ स्पिनोजा के अनुसार गुणों में समानान्तर का सम्बध होता है जैसे चित एवं अचित दोनों ईश्वर के गुण है दोनों को सत्ता ईश्वर से मिलती है अतः दोनों समानान्तर प्रवाहित होते हैं।
स्पिनोजा के द्रव्य विचार से सर्वेश्वरवाद कैसे निकला?⇒ स्पिनोजा ने केवल द्रव्य (ईश्वर) को माना। प्रश्न यह उठता है कि यदि केवल द्रव्य ही सत्य है तो जगत क्या है? स्पिनोजा ने द्रव्य की एकता एवं जगत की अनेकता के बीच तर्कसंगत सम्बध स्थापित करने के लिए जगत को द्रव्य (ईश्वर) की अभिव्यक्ति माना जिससे सर्वेश्वरवाद का आगमन हुआ।
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