हड़प्पा सभ्यता : 2500-1800 ई. पू.
⇒हड़प्पा सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल से सम्बन्धित है। 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खोज ने भारत के इतिहास को 2000 वर्ष पीछे ढ़केल दिया। इससे पूर्व भारत के इतिहास का प्रारंभ वैदिक काल से माना जाता था, किन्तु हड़प्पा सभ्यता की खोज ने भारत के इतिहास को मेसोपोटामिया, मिस्र तथा चीन के इतिहास के समान ही प्राचीन एवं गौरवशाली बना दिया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग
खोज
नामकरण
विस्तार
हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किमी तथा आकार त्रिभुजाकार था। यह सभ्यता पूर्व से पश्चिम 1600 किमी तथा उत्तर से दक्षिण 1400 किमी तक विस्तृत थी। इस सभ्यता का विस्तार उत्तर में चिनाब नदी के किनारे स्थित माण्डा (कश्मीर), दक्षिण में प्रवरा नदी के किनारे स्थित दायमाबाद (महाराष्ट्र), पश्चिम में दाश्क नदी के किनारे स्थित सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान) तथा पूर्व में हिण्डन नदी के किनारे स्थित आलमगीरपुर (उ. प्र.) तक था।
नगर नियोजन
⇒हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका व्यवस्थित एवं सुनियोजित नगरीकरण था। इस सभ्यता के नगरों की विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत देखा जा सकता है -
1) हड़प्पा सभ्यता के नगर प्रायः 02 भागों में विभाजित थे पश्चिमी टीला (दुर्ग टीला) तथा पूर्वी टीला (आवास क्षेत्र)। पश्चिमी टीला में दुर्ग स्थित होता था, जहाँ शासक वर्ग से सम्बन्धित लोग रहते थे, जबकि पूर्वी टीला में निचला शहर होता था, जहाँ सामान्य नागरिक, व्यापारी, कारीगर, श्रमिक आदि रहते थे।
2) सामान्यतः पश्चिमी टीला एक रक्षा प्राचीर से घिरा होता था, जबकि पूर्वी टीला नहीं। यद्यपि इसके कुछ अपवाद भी थे, जैसे-
1) कालीबंगा में दुर्ग तथा नगर क्षेत्र दोनों अलग-अलग रक्षा प्राचीर से घिरे थे।
ii) लोथल तथा सुरकोटदा का संपूर्ण क्षेत्र एक ही रक्षा प्राचीर से घिरा था।
iii) धौलावीरा का नगर तीन भागों में विभाजित था।
iv) चन्हूदड़ो दुर्गीकृत नहीं था।
3) इस सभ्यता के भवन प्रायः द्विमंजला होते थे। नीचे की मंजिल से ऊपर जाने हेतु सीढ़ियों का निर्माण किया जाता था।
4) भवनों में प्रायः पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था, अपवाद कालीबंगा। ईंटों की जुड़ाई इंग्लिश बॉण्ड स्टाईल में की जाती थी। ईंटों का आकार 4/2 / 1 था। भवनों के कोनों में L आकार की ईंटों का प्रयोग किया जाता था।
5) भवनों में ईंटों को प्रायः गीली मिट्टी के गारे से जोड़ा जाता था। नालियों की जुड़ाई में जिप्सम का तथा मोहनजोदड़ो के वृहदस्नानागार (महास्नानागार) में बिटुमिनस का प्रयोग हुआ था।
6) भवनों के स्तम्भ प्रायः वर्गाकार होते थे। फर्श प्रायः कच्चा होता था, अपवाद कालीबंगा। कालीबंगा का एक फर्श अलंकृत ईंटों से बना है, जिस पर प्रतिच्छेदी वृत्त का अलंकरण है।
7) इस सभ्यता के प्रायः प्रत्येक घरों में स्नानागार, शौचालय एवं रसोई का निर्माण किया जाता था।
8) सड़कें शतरंज की विसात (चेसबोर्ड) की तरह व्यवस्थित होती थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण तथा दूसरे मार्ग पूरब से पश्चिम
परस्पर समकोण पर काटते थे। सड़कें प्रायः कच्ची होती थीं, अपवाद कालीबंगा।
9) सड़कों के किनारे ग्रिड पद्धति पर नाली की व्यवस्था थी, जिसमें कुड़ा-करकट एकत्रित करने के लिए जगह-जगह ढक्कनयुक्त मेनहोल बने थे।
10) इस सभ्यता के घरों के दरवाजे एवं खिड़कियां प्रायः मुख्य सड़क की ओर न खुलकर गलियों की ओर खुलती थीं, अपवाद लोथल।
11) घरों के दरवाजे किनारे की ओर बनाए जाते थे तथा खिड़कियों का निर्माण बहुत कम होता था। खिड़कियों का साक्ष्य केवल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ है।
12) हड़प्पा सभ्यता में पक्की ईंटों से निर्मित सबसे बड़ी इमारत लोथल स्थित गोदीवाडा था, जबकि मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार था।
निष्कर्ष
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन अभूतपूर्व था, जो वर्तमान भारत की 'स्मार्ट सिटी योजना' के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करता है।
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