Indus Valley Civilization part 1

3003,2024

हड़प्पा सभ्यता : 2500-1800 ई. पू.

⇒हड़प्पा सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल से सम्बन्धित है। 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खोज ने भारत के इतिहास को 2000 वर्ष पीछे ढ़केल दिया। इससे पूर्व भारत के इतिहास का प्रारंभ वैदिक काल से माना जाता था, किन्तु हड़प्पा सभ्यता की खोज ने भारत के इतिहास को मेसोपोटामिया, मिस्र तथा चीन के इतिहास के समान ही प्राचीन एवं गौरवशाली बना दिया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग

  • भारत में पुरातात्विक स्थलों की खोज, उत्खनन एवं संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा किया जाता है। वर्तमान में यह विभाग संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और इसका मुख्यालय दिल्ली में है।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1861 ई. में वायसराय लॉर्ड कैनिंग के समय सर अलेक्जेंडर कनिंघम के द्वारा की गई थी, इसलिए
  • सर अलेक्जेंडर कनिंघम को 'भारतीय पुरातत्व का जन्मदाता' भी कहा जाता है। किन्तु शीघ्र ही इस विभाग को धन के अभाव के कारण बंद कर दिया गया था। 1871 ई. में वायसराय लॉर्ड मियो के द्वारा पुनः इस विभाग की स्थापना की गई तथा इसका प्रथम महासचिव सर अलेक्जेंडर कनिंघम को ही बनाया गया।
  • 1904 ई. में वायसराय लॉर्ड कर्जन के समय 'प्राचीन स्मारक परिरक्षण अधिनियम' पारित हुआ, जिसके अन्तर्गत 1906 ई. में जॉन मॉर्शल के प्रयासों से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को एक स्थायी विभाग बना दिया गया।

खोज

  • सर्वप्रथम 1826 ई. में चार्ल्स मैंसन ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के साहीवाल (मोन्टगोमरी) जिले में स्थित एक गांव के टीले का अवलोकन किया था तथा यहाँ एक प्राचीन सभ्यता के दबे होने की बात लिखी थी। चार्ल्स मैंसन का मानना था कि इसी स्थान पर 326 ई. पू. में सिकन्दर और पोरस के मध्य युद्ध लड़ा गया था।
  • 1853 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य अभियंता सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस टीले की यात्रा की, किन्तु वे इसके ऐतिहासिक महत्व को नहीं समझ सके। 1856 ई. में जॉन ब्रन्टन एवं विलियम ब्रन्टन ने कराची से लाहौर तक रेल पटरियां बिछाए जाने हेतु इस पुरातात्विक टीले से प्राप्त ईंटों का प्रयोग किया, किन्तु ब्रन्टन बंधु भी इसका महत्व नहीं समझ सके।
  • 1872 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के नवनियुक्त प्रथम महानिदेशक सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने दूसरी बार इस टीले की यात्रा की। इस बार कनिंघम ने यहाँ से प्रस्तर उपकरण, मृदद्भाण्ड तथा वृषभ अंकित मुहर भी प्राप्त की, किन्तु उन्होंने वृषभ अंकित मुहर को विदेशी मुहर मानकर पुनः इस टीले के पुरातात्विक महत्व से मुँह मोड़ लिया। 1921 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तृतीय अध्यक्ष जॉन मार्शल के निर्देशन में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा
  • नामक इस टीले की खोज की। 1922 ई. में जॉन मॉर्शल के निर्देशन में ही राखालदास बेनर्जी ने मोहनजोदड़ो नामक टीले की खोज की।
  • 20 सितम्बर, 1924 ई. को The Illustrated London News में प्रकाशित जॉन मॉर्शल के लेख में हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खोज की घोषणा की गई।

नामकरण

  • जॉन मार्शल ने इस सभ्यता को 'सिन्धु घाटी सभ्यता' नाम दिया था, क्योंकि इस सभ्यता से सम्बन्धित प्रारंभिक स्थलों की खोज
  • सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियों के किनारे हुई थी। कुछ इतिहासकारों ने इस सभ्यता को 'सिन्धु-सरस्वती सभ्यता' नाम दिया है, क्योंकि
  • इस सभ्यता के स्थलों का सर्वाधिक लगभग 80 प्रतिशत संकेन्द्रण घग्गर-हाकरा (प्राचीन सरस्वती) नदी के किनारे था।
  • गॉर्डन चाइल्ड ने इस सभ्यता को 'प्रथम नगरीय सभ्यता' कहा है तथा इसे 'प्रथम नगरीय क्रांति' की संज्ञा दी है। कुछ अन्य इतिहासकारों ने इस सभ्यता को 'काँस्ययुगीन सभ्यता' नाम दिया है, क्योंकि उनका मानना है कि इसी सभ्यता के लोगों ने सर्वप्रथम काँसे का उपयोग किया था।
  • उपर्युक्त सभी मतों में सर्वाधिक मान्य मत यह है कि इस सभ्यता का सबसे उपयुक्त नाम 'हड़प्पा सभ्यता' होना चाहिए, क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा नामक स्थल को ही खोजा गया था।

विस्तार

हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किमी तथा आकार त्रिभुजाकार था। यह सभ्यता पूर्व से पश्चिम 1600 किमी तथा उत्तर से दक्षिण 1400 किमी तक विस्तृत थी। इस सभ्यता का विस्तार उत्तर में चिनाब नदी के किनारे स्थित माण्डा (कश्मीर), दक्षिण में प्रवरा नदी के किनारे स्थित दायमाबाद (महाराष्ट्र), पश्चिम में दाश्क नदी के किनारे स्थित सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान) तथा पूर्व में हिण्डन नदी के किनारे स्थित आलमगीरपुर (उ. प्र.) तक था।

नगर नियोजन

⇒हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका व्यवस्थित एवं सुनियोजित नगरीकरण था। इस सभ्यता के नगरों की विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत देखा जा सकता है -

1) हड़प्पा सभ्यता के नगर प्रायः 02 भागों में विभाजित थे पश्चिमी टीला (दुर्ग टीला) तथा पूर्वी टीला (आवास क्षेत्र)। पश्चिमी टीला में दुर्ग स्थित होता था, जहाँ शासक वर्ग से सम्बन्धित लोग रहते थे, जबकि पूर्वी टीला में निचला शहर होता था, जहाँ सामान्य नागरिक, व्यापारी, कारीगर, श्रमिक आदि रहते थे।

2) सामान्यतः पश्चिमी टीला एक रक्षा प्राचीर से घिरा होता था, जबकि पूर्वी टीला नहीं। यद्यपि इसके कुछ अपवाद भी थे, जैसे-

1) कालीबंगा में दुर्ग तथा नगर क्षेत्र दोनों अलग-अलग रक्षा प्राचीर से घिरे थे।

ii) लोथल तथा सुरकोटदा का संपूर्ण क्षेत्र एक ही रक्षा प्राचीर से घिरा था।

iii) धौलावीरा का नगर तीन भागों में विभाजित था।

iv) चन्हूदड़ो दुर्गीकृत नहीं था।

3) इस सभ्यता के भवन प्रायः द्विमंजला होते थे। नीचे की मंजिल से ऊपर जाने हेतु सीढ़ियों का निर्माण किया जाता था।

4) भवनों में प्रायः पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था, अपवाद कालीबंगा। ईंटों की जुड़ाई इंग्लिश बॉण्ड स्टाईल में की जाती थी। ईंटों का आकार 4/2 / 1 था। भवनों के कोनों में L आकार की ईंटों का प्रयोग किया जाता था।

5) भवनों में ईंटों को प्रायः गीली मिट्टी के गारे से जोड़ा जाता था। नालियों की जुड़ाई में जिप्सम का तथा मोहनजोदड़ो के वृहदस्नानागार (महास्नानागार) में बिटुमिनस का प्रयोग हुआ था।

6) भवनों के स्तम्भ प्रायः वर्गाकार होते थे। फर्श प्रायः कच्चा होता था, अपवाद कालीबंगा। कालीबंगा का एक फर्श अलंकृत ईंटों से बना है, जिस पर प्रतिच्छेदी वृत्त का अलंकरण है।

7) इस सभ्यता के प्रायः प्रत्येक घरों में स्नानागार, शौचालय एवं रसोई का निर्माण किया जाता था।

8) सड़कें शतरंज की विसात (चेसबोर्ड) की तरह व्यवस्थित होती थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण तथा दूसरे मार्ग पूरब से पश्चिम

परस्पर समकोण पर काटते थे। सड़कें प्रायः कच्ची होती थीं, अपवाद कालीबंगा।

9) सड़कों के किनारे ग्रिड पद्धति पर नाली की व्यवस्था थी, जिसमें कुड़ा-करकट एकत्रित करने के लिए जगह-जगह ढक्कनयुक्त मेनहोल बने थे।

10) इस सभ्यता के घरों के दरवाजे एवं खिड़कियां प्रायः मुख्य सड़क की ओर न खुलकर गलियों की ओर खुलती थीं, अपवाद लोथल।

11) घरों के दरवाजे किनारे की ओर बनाए जाते थे तथा खिड़कियों का निर्माण बहुत कम होता था। खिड़कियों का साक्ष्य केवल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ है।

12) हड़प्पा सभ्यता में पक्की ईंटों से निर्मित सबसे बड़ी इमारत लोथल स्थित गोदीवाडा था, जबकि मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार था।

 निष्कर्ष

इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन अभूतपूर्व था, जो वर्तमान भारत की 'स्मार्ट सिटी योजना' के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करता है।

12:53 pm | Admin


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