छग में आदिवासियों व मित्रता का पर्व भोजली

3108,2023

भोजली पर्व छत्तीसगढ़ मे मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है.इसमे सभी वर्ग की महिलाए,बच्चे, बुजुर्ग शामिल होते हैं अलग-अलग जगहों मे अलग नियम से भी यह बनाया जाता है।भोजली असल में गेहूं से निकला हुआ पौधा होता है। सभी लोग भोजली को देवी का रूप मानते हैं। भोजली पर्व में इस पौधे की पूजा अच्छे सेहत के लिए की जाती है।।

छत्तीसगढ़ में भोजली का त्योहार रक्षा बंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है।   छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं परम्पराओं के मूल में अध्यात्म एवं विज्ञान है । 

भोजली के लोकगीत है जो श्रावण शुक्‍ल नवमी से रक्षाबंधन के दुसरे दिन तक छत्तीसगढ़ के गांव गांव में गूंजते है और भोजली माई के याद में पूरे वर्ष भर गाए जाते है । छत्तीसगढ़ में बारिस के रिमझिम के साथ कुंआरी लडकियां एवं नवविवाहिताएं औरतें भोजली गाती है

 

भादो कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को भोजली का विसर्जन किया जाता है । भोजली सेराने की यह प्रक्रिया बहुत ही सौहार्द्र पूर्ण वातावरण में अत्यन्त भाव पूर्ण ढंग से सम्पन्न होती है । मातायें-बहनें और बेटियाँ भोजली को अपने सिर पर रखकर विसर्जन के लिए धारण करती हैं और भजन मण्डली के साथ, बाजे-गाजे के साथ करते.है

 

नौ दिनों तक भोजली के रूप में देवी-देवताओं की पूजा और प्रार्थना करते हैं। लोग मानते हैं कि भोजली के नौ दिनों तक पूजा करने से देवी-देवताएं गाँव की रक्षा करेंगे।नौ दिनों के भजन-कीर्तन में लोक गीत गाए जाते हैं। इन्हें भोजली गीत कहते हैं और ये कुछ इस तरह से होते हैं

 
देवी गंगा देवी गंगा लहर तिरंगा हो लहर तिरंगा
हमरो भोजली दाई के भिगे आठों अंगा आहो देवी गंगा गाना।

07:19 am | Admin


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