डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र:- छग के महान साहित्यकार व्यक्तित्व व.रचनाएं
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र(Baldev prasad mishra ) जी का जन्म 12 सितम्बर 1898 को राजनांदगांव (छग) में हुआ था । उनके पिता पं. नारायण प्रसाद मिश्र एवं माता श्रीमती जानकी देवी थीं । स्कूली जीवन मे इन्होंने 1914 में स्टेट स्कूल से मैट्रिक, किया इसके पश्चात 1918 में हिस्लाप कॉलेज नागपुर से BA व 1920 में MA मनोविज्ञान, 1921 में LLB तथा 1939 में शोध प्रबंध तुलसी दर्शन पर. डी. लिट् की उपाधि अर्जित की ।
रायपुर में वकालत करने के उपरांत वे 1923 से 1940 तक रायगढ़ रियासत में क्रमशः नायब दीवान, दीवान व एक वर्ष न्यायाधीश के पद पर रहे, डॉ. मिश्र भारत के ऐसे प्रथम शोधकर्ता थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन कल में अंग्रेजी के बदले हिंदी में अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत कर डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की । वे नागपुर विद्यापीठ में हिंदी के मानसेवी विभागाध्यक्ष, रायपुर के एस.बी.आर. कॉलेज एवं दुर्गा आर्ट्स कॉलेज के प्रथम प्राचार्य, , पुराने मध्यप्रदेश एवं महाकौशल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हिंदी पाठ्यक्रम समिति के संयोजक भी रहे ।
प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें भारत सेवक समाज की केन्द्रीय समिति में मनोनीत किया, खैरागढ़ विश्वविद्यालय में उप कुलपति रहे । मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के तुलसी जयंती समारोह के भी अध्यक्ष रहे ।
डॉ. बल्देव प्रसाद मिश्र साहित्य के साथ-साथ वे रायगढ़, खरसिया तथा राजनांदगांव की नगर पालिकाओं के अध्यक्ष रहे तथा रायपुर नगर पालिका के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे । अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व प्रगति में इनका योगदान रहा है ।
जीव विज्ञान, कौशल किशोर, राम राज्य, साकेत संत, (भूमिका-श्री मैथिलीशरण गुप्त) , तुलसी दर्शन, भारतीय संस्कृति, मानस में राम कथा, मानस माधुरी (भूमिका- प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद), जीवन संगीत, उदात्त संगीत आदि शताधिक कृतियों के साथ-साथ डॉ. मिश्र ने संपादन व अनुवाद के माध्यम से भी साहित्य जगत को गौरवान्वित किया है । 4 सितम्बर 1975 को राजनांदगांव में उनका निधन हुआ ।
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र आधुनिक युग के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। डॉ. मिश्र की कालजयी कृतियां खड़ी बोली हिन्दी की समृद्ध धरोहर हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा ने लिखा है कि - ''पं. बलदेव प्रसाद मिश्र हिन्दी की उन विभूतियों में हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रकाश अज्ञात रूप से विकीर्ण किया है।गद्य और पद्य पर उनका असामान्य अधिकार था, डॉ. मिश्र मूलतः दार्शनिक थे, फिर भी उनका कवि व्यक्तित्व ही सर्वोपरि रहा है। यह अवश्य है कि उनकी कृतियों में उनके दार्शनिक व्यक्तित्व की आभा सर्वत्र विद्यमान रही है। गद्य और पद्य दोनों में ही उनकी दार्शनिक चेतना अत्यंत सरल रही है। जिसे प्रबुद्ध पाठकवर्ग से लेकर आमजन भी सरलता से समझ लेता है।
सन् 1939 में 'तुलसी दर्शन' नामक शोध-प्रबंध पर नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें शिक्षा विषयक सर्वोच्च उपाधि डी.लिट्. प्रदान की गई। इस शोध कार्य की यह भी विशेषता रही है कि मिश्र जी ने परंपरा को तोड़कर अंग्रेजी के स्थान पर अपना शोध-प्रबंध हिन्दी में प्रस्तुत किया था
राजनीतिक जीवन::::----
डॉ. मिश्र को सन् 1952 से 1959 तक केन्द्रीय मंत्रिमण्डल का सदस्य मनोनीत किया गया। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र के राजनीतिक जीवन की शुरूआत सन् 1920 में हो गई थी। जब उन्होंने ठाकुर प्यारेलाल सिंह के सहयोग से राजनाँदगाँव में राष्ट्रीय माध्यमिक शाला की स्थापना की थी। सन् 1948 में सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से राजनाँदगाँव का विलीनीकरण हुआ। उसी समय राजनाँदगाँव को जिला केन्द्र घोषित करने की माँग के लिए एक 'जिला निर्माण समिति' का गठन डॉ. मिश्र की अध्यक्षता में हुआ था। डॉ. मिश्र रायगढ़ तथा 1972 में सम्पन्न आम चुनाव में डॉ. मिश्र खुज्जी-खेरथा (राजनाँदगाँव) क्षेत्र से विधायक चुने गये। राजनीति के माध्यम से उन्होंने समाज सेवा ही की।
Published by DeshRaj Agrawal
12:37 pm | Admin
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