Who is Dada Saheb Phalke ,Why he is called father of indian cinema

2709,2023

दोस्तों दादासाहेब फाल्के का नाम सभी ने सुना होगा ,हर साल दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिये जाते है लेकिन इनके बारे मे कम ही लोगों को पता होगा ,आइए डिटेल मे जानते हैं इनके बारे मे कि इन्हे दादासाहेब क्यों कहा जाता है

फिल्मी इंडस्ट्री में उनका नाम बड़े ही अदब के साथ लिया जाता है। उन्हें भारतीय सिनेमा का पितामह भी कहा जाता है। उन्होंने फिल्म बनाने के लिए अपनी पत्नी की गहने तक दांव पर लगा दिए थे। इसके अलावा वह अपनी फिल्म की नायिका की तलाश में रेड लाइट एयिया तक भी पहुंच गए थे।  फिल्मों के लिए उन्होंने वह सब कुछ किया।।।

दादा साहेब का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था। उनका जन्म 30 अप्रैल 1870 में हुआ था। उनके पिता  गोविंद सदाशिव फाल्के संस्कृत के विद्धान और मंदिर में पुजारी थे। साल 1913 में उन्होंने 'राजा हरिशचंद्र' नाम की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म बनाई थी। दादा साहेब सिर्फ एक निर्देशक ही नहीं बल्कि एक जाने माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे। उन्होंने 19 साल के फिल्मी करियर में 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाईं। 

दादा साहेब फाल्के को फिल्म बनाने का ख्याल द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखने के बाद आया। इस फिल्म ने उन पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि उन्होंने ठान ली कि अब उन्हें भी फिल्म बनानी है। हालांकि, यह काम आसान नहीं था। इसके लिए वह एक दिन में चार-पांच घंटे सिनेमा देखा करते थे, ताकि वह फिल्म मेकिंग की बारीकियां सीख सके। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनकी पहली फिल्म का बजट 15 हजार रुपये था, जिसके लिए उन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था। 

समय फिल्म बनाने के जरूरी उपकरण केवल इंग्लैंड में मिलते थे, जहां जाने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी की सारी जमा-पूंजी लगा दी थी। पहली फिल्म बनाने में उन्हें लगभग 6 महीने का समय लगा था। दादा साहेब की आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी। दादा साहेब ने 16 फरवरी 1944 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था

 

15 वर्ष की उम्र मे इन्होने  बम्बई के J. J. School of Art में दाखिला लिया जो उस समय कला का बड़ा शिक्षा केंद्र था | 1890 में J. J. School of Art से चित्रकला सीखने के बाद फाल्के ने बडौदा के  Maharaja Sayajirao University के कला भवन में दाखिला लिया जहा से उन्होंने चित्रकला के साथ साथ फोटोग्राफी और स्थापत्य कला का भी अध्ययन किया |

 उनकी पत्नी और बच्चे की प्लेग में मौत हो गयी थी | वो इस सदमे को बर्दाश्त नही कर पाए और गोधरा में नौकरी छोड़ दी |1913 की फिल्म राजा हरीशचंद्र से उन्होने अपने फिल्मी करियर की शुरुवात की थी और आज लगभग हर तरह की फिल्म वे कर चुके है, 1937 तक उन्होने 95 फिल्में और 26 लघु फिल्में अपने करियर के 19 सालो में बनाई. उनके सम्मान में 1969 में भारत सरकार ने दादा  साहेब फालके अवॉर्ड  घोषित किया गया.

 फाल्के ने 1912 में अपनी पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई, जो एक मूक फिल्म और देश की पहली फीचर फिल्म थी। फिल्म के निर्माण में लगभग 15 हजार रुपये खर्च हुए। उस समय यह एक बहुत बड़ी राशि थी। मूक फिल्म होने के कारण परदे के पीछे से पात्रों का परिचय और संवाद आदि बोले जाते थे। उस समय महिलाओं के किरदार पुरुष ही किया करते थे,  वर्ष 1932 में प्रदर्शित हुई 'सेतुबंधन' फाल्के की अंतिम मूक फिल्म थी। इसके बाद वह एक तरह से फिल्मी दुनिया से बाहर रहने लगे। संकल्प के धनी फाल्के ने एक बार फिर सवाक फिल्म 'गंगावतरण' (1937) से सिनेमा जगत में लौटने का प्रयास किया। लेकिन उनका जादू नहीं चल सका। 'गंगावतरण' उनकी पहली और अंतिम सवाक फिल्म थी।

दादासाहेब फालके की कुछ प्रसिद्ध फिल्में :

• राजा हरीशचंद्र (1913),
• मोहिनी भस्मासुर (1913),
• सत्यवान सावित्री (1914),
• लंका दहन (1917),
• श्री कृष्णा जन्म (1918) ,
• कालिया मर्दन (1919).

 उन्होंने भी अपनी पहली लघु फ़िल्म Growth Of A Pea Plant बनाई.मूक फिल्मो से बोलती फिल्मो की ओर ले जाने का श्रेय दादा साहेब फाल्के को ही जाता है | दादा ने भारत की पहली स्वदेशी फीचर फिल्म का निर्माण किया | वस्तुत : वे फिल्मो के जनक है | उनके फिल्म क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए “दादा साहेब फाल्के” नामक पुरूस्कार की घोषणा की |

Published by DeshRaj Agrawal 

04:58 am | Admin


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